दिल्ली का दुर्ग तोड़ने पर आमादा किसानों के सामने ढीली पड़ी सरकार, बिना शर्त बातचीत को तैयार

दिल्ली घेर कर बैठे किसानों के संकल्प के आगे आख़िरकार मोदी सरकार के कस-बल ढीले पड़ते नज़र आने लगे हैं। कुछ दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने दंभपूर्वक कहा था कि अगर किसान 3 दिसंबर के पहले बातचीत  करना चाहते हैं तो पहले उन्हें बुराड़ी के निरंकारी मैदान की तय जगह जाना होगा। लेकिन अब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 1 दिसंबर को तीन बजे दिल्ली के विज्ञान भवन में केंद्र सरकार से वार्ता करने के लिए किसान सगठनों के नेताओं को न्योता भेज दिया है।

सरकार की ओर से कहा गया है कोविड के ख़तरे और बढ़ती सर्दी को देखते हुए किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित किया गया है। इस संबंध में उन सभी किसान नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया गया है जो 13 नंवबर की बैठक में शामिल थे।

दिलचस्प बात ये है कि एक दिन पहले यानी 30 नवंबर को बनारस में देव दीपावली मनाने पहुँचे प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों पर किसानों को बरगलाने का आरोप लगाते हुए कृषि क़ानूनों के गुण गाये थे। इसके बावजूद किसानों को वार्ता के लिए बुलाना बताता है कि सरकार किसान आंदोलन सेे हो रहे राजनीतिक नुकसान को लेकर चिंतित है। देश की लगभग सभी पार्टियाँ किसानों का साथ दे रही हैं। शिरोमणि अकाली दल जैसे सबसे पुराने सहयोगी ने इसी मुद्दे पर एनडीए और केंद्रीय मंत्री पद छोड़ दिया, वहीं राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी धमकी दी है कि अगर कृषि क़ानून वापस न हुए तो उनकी पार्टी एनडीए से समर्थन वापस ले लेगी। ज़ाहिर है, इस मुद्दे पर बीजेपी बैकफुट पर आती दिख रही है।

उधर, किसानों का आंदोलन छठें दिन भी जारी है। लाखों किसान दिल्ली बार्डपर डटे हैं। टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर यातायात जाम है और यूपी गेट के पास भारतीय किसान यूनियन से जुड़े लोग गाँव बसा रहे हैं। ज़ाहिर है, देश की राजधानी चारो तरफ से घिर गयी है। दिल्ली के दुर्ग पर किसानों की दस्तक से सरकार का दंभ टूटता नज़र आ रहा है। बहरहाल, किसान नेता सरकार की वार्ता की पेशकश पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, देखना बाक़ी है जो बिना कृषि क़ानून वापस हुए पैर पीछे खींचने को तैयार नहीं हैं। कुछ किसान नेताओं का कहना है कि अगर सरकार सिर्फ कृषि क़ानून का फ़ायदा गिनवाने के लिए मीटिंग बुला रही है तो जाने का कोई लाभ नहीं है। वहीं सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर आंदलन में पाँच सौ संगठन शामिल हैं तो महज़ 32 को बातचीत का न्योता क्यों दिया गया है। इस बीच राहुल गाँधी ने ट्वीट करके सरकार के रवैये की आलोचना की है।

 

 

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इस बीच बार्डर पर धरना दे रहे किसानों के ख़िलाफ़ सरकारी संपत्ति के नुकसान का मुक़दमा दर्ज किया गया है जिससे उनमें ख़ासी नाराज़गी है।

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