झारखंड में मानव तस्करी एक बड़ी समस्या के रूप में वर्षों से है, जिसके तहत छोटे बच्चे-बच्चियों को भी शहरों में दलालों के जरिये बेच दिया जाता है। मानव तस्करी के धंधे में दलालों की एक बड़ी भूमिका होती है, जिसमें भ्रष्ट राजनेता, पुलिस प्रशासन व दलालों का गठजोड़ काम करता है।
ऐसा भी नहीं है कि मानव तस्करी व बाल तस्करी से झारखंड सरकार अनजान है, फिर भी झारखंड सरकार की बाल कल्याण समिति (सीडब्लूसी) व झारखंड पुलिस बाल तस्करी के मामले में काफी सुस्त रहती है। 3 जुलाई 2020 को झारखंड उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस डाॅक्टर रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने 22 जून 2020 को ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ अखबार में प्रकाशित लाॅकडाउन में राज्य में 116 बच्चे गायब होने की खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए इसे गंभीर मामला कहा था। साथ में झारखंड सरकार को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करने का निर्देश भी दिया था।
अदालत ने मुख्य सचिव, महिला और बाल विकास विभाग के सचिव और अन्य संबंधित विभाग को प्रतिवादी बनाते हुए शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया था। अदालत ने साफ-साफ कहा था कि लाॅकडाउन में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का गायब होना यह बताता है कि सरकारी मशीनरी इस मामले में गंभीर नहीं है, जबकि बच्चों की तस्करी रोकने के लिए कोर्ट ने भी कई निर्देश दिये हैं और सरकार इनके लिए कई योजनाएं चलाने का दावा करती है। अदालत ने कहा था कि अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 1 मार्च 2020 से 15 जून 2020 के बीच 116 बच्चे गायब हुए हैं, इनमें 89 लड़कियां हैं। गायब बच्चे मानव तस्करी के शिकार हो सकते हैं।
उस समय झारखंड सरकार के महाधिवक्ता ने अदालत को बताया था कि सरकार इस मामले में गंभीर है और यह एक संवेदनशील मुद्दा है। सरकार इस पर कार्रवाई कर रही है। मानव और बाल तस्करी रोकने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने भी झारखंड सरकार को सतर्क किया था कि लाॅकडाउन में देह व्यापार के लिए लड़कियों की तस्करी की आशंका है।
7 सप्ताह से 10 वर्षीय दलित लड़की गायब, सरकार के दावे पर सवाल
झारखंड सरकार के महाधिवक्ता के द्वारा अदालत में किया गया दावा कि सरकार बाल तस्करी रोकने के लिए प्रतिबद्ध है, जमीनी धरातल पर खड़ी नहीं उतर रही है।
झारखंड के कोडरमा जिला के झुमरी तिलैया थानान्तर्गत वार्ड संख्या-27, अम्बेडकर नगर के निवासी शम्भू राम उर्फ शम्भू डोम की 10 वर्षीय बेटी सीतारा को शंभू राम की विधवा बहन रिंकू देवी 19 जून 2020 को अपने साथ लेकर बिहारीशरीफ (बिहार) के लिए निकलती है, लेकिन दूसरे दिन से ही उसका मोबाईल ऑफ बताने लगता है। सीतारा के मां-बाप अपने सारे रिश्तेदारों के यहां अपनी बेटी और रिंकू देवी के बारे में पता करते हैं, लेकिन उनका कहीं पता नहीं चलता है।
मोहल्ले की ही एक महिला किरण देवी के माध्यम से बच्ची के गायब होने की खबर 14 जुलाई, 2020 को पारा लीगल वालंटियर सह स्वयंसेवी संस्था ‘सक्षम सवेरा’ के सचिव तुलसी कुमार साहू को मिलती है और वे शम्भू राम के घर पर पहुंचते हैं। तुलसी कुमार साहू बताते हैं कि ‘‘सीतारा के परिजन काफी गरीब हैं। पिता शम्भू राम दैनिक मजदूर हैं, जबकि मां कान्ति देवी प्लास्टिक वगैरह बिनती है। सीतारा के मां का रो-रोकर बुरा हाल था और उन्होंने मुझे बताया कि रिंकू देवी 7-8 साल के बाद मायके आयी थी, बुआ होने के कारण हमने उनके साथ जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अब एक महीने से उनका कुछ भी पता नहीं चल रहा है, सभी जगह पता कर लिये हैं।’’
तुलसी कुमार साहू ने बताया कि ‘उनकी मां की बात को सुनकर तुरंत ही हमने उनके नाम से एक आवेदन बनाया और जिला विधिक सेवा प्राधिकार, कोडरमा को दिया। जिला विधिक सेवा प्राधिकार ने भी तुरंत ही उसे बाल कल्याण समिति (सीब्लूसी) को फारवर्ड कर दिया। इस आवेदन को दिये अब तीन सप्ताह होने वाले हैं, लेकिन बाल तस्करी को रोकने के लिए कार्यरत स्वयंसेवी संस्था या फिर सीडब्लूसी ही क्यों ना हो, कुछ नहीं कर रही है। हां, स्वयंसेवी संस्था ‘‘चाइल्ड लाइन’ ने शम्भू राम वे द्वारा एक आवेदन एफआईआर के लिए 30 जुलाई 2020 को झुमरी तिलैया थाना में जरूर दिलवाया है, लेकिन अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है।’’
मानवाधिकार जगनिगरानी समिति केे स्टेट काॅर्डिनेटर ओंकार विश्वकर्मा बताते है कि ‘‘जब मैेने झुमरी तिलैया थाना में फोन कर एफआईआर के बारे में पूछा तो थाना प्रभारी ने कहा कि बच्ची नवादा गई थी और वहां से गायब हुई है, इसलिए मैंने नवादा थाना को लिखकर भेज दिया है। साथ ही थाना प्रभारी ने कहा कि बच्ची अपनी बुआ के साथ दिल्ली में है और उसके मां-बाप को सब पता है।’’
जबकि तुलसी कुमार साहू बताते हैं कि ‘‘सीतारा के परिजन को यह जानकारी ही नहीं है कि सीतारा नवादा पहुंच गई है। अब थाना प्रभारी को यह बात कैसे पता चला कि सीतारा नवादा पहुंची है और अभी दिल्ली में है, यह वही बता सकते हैं।’’
सीतारा के मां-बाप इतने गरीब हैं कि उनके पास मोबाईल तक नहीं है। उनसे बात करने के लिए उनके घर पर ही जाना पड़ता है। तुलसी कुमार साहू बताते हैं कि प्रति दिन कान्ति देवी अपने पड़ोसी के मोबईल से फोन कर मुझसे अपनी बेटी के बारे में पूछती हैं, लेकिन थाना और सीडब्लूसी की सुस्ती के कारण मैं उन्हें कुछ भी जवाब नहीं दे पाता हूं। सीतारा का अपनी बुआ के साथ गायब होने के पीछे बाल तस्करी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
मालूम हो कि राज्य से गायब लड़कियों को बड़े पैमाने पर प्लेसमेंट एजेंसियों के जरिये महानगरों में बेचा जाता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते साल 201 लड़के व 176 लड़कियों के गायब होने या अपहरण का मामला दर्ज कराया गया था, जिसमें पुलिस ने 126 लड़के व 123 लड़कियों को बरामद कर लिया था, जबकि 148 बच्चे-बच्चियों का सुराग अब तक नहीं मिल पाया है।
रूपेश कुमार सिंह, स्वतंत्र पत्रकार हैं.