क़ुतुब मीनार – खारिज हुआ मालिकाना का दावा

एक तरफ ज्ञानवापी, दूसरी तरफ मथुरा-काशी और दिल्ली में क़ुतुब मीनार, इस देश के इतिहास के लिहाज़ से ऐसे विवाद जितने चाहे खड़े किये जा सकते हैं. लोधी गार्डन से लेकर लाल किले तक जिसके दिल में आये, इसे अपने बाप-दादा की संपत्ति होने का दावा किया जा सकता है. अभी कुछ दिन पहले संगेमरमर की ईमारत ताजमहल पर दावा किया गया था. ऐसा ही दावा कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने क़ुतुब मीनार को लेकर किया. कुछ दिनों से क़ुतुब मीनार को लेकर वैसा ही विवाद खड़ा हुआ है, जैसा ताज महल और बाकी इमारतों को लेकर खड़ा किया जा रहा है. कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने क़ुतुब परिसर को लेकर दावा किया था कि उन्हें भी इस मामले में पार्टी बनाया जाये. एक महिला पत्रकार के साथ इंटरव्यू में वे ये कहते भी दिखे कि मेरठ से लेकर आगरा तक की सारी ज़मीन उनकी है, उनकी मिलकियत है, और भारत सरकार का इस पर कोई दावा नहीं बनता. कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह का कहना है कि वो तोमर राज के वंशज हैं, इसलिए ये ज़मीन उनकी है, और क्यूंकि सरकार के पास कोई “डाक्यूमेंट्री प्रूफ” नहीं है, इसलिए सरकार को ये ज़मीन उन्हें देनी चाहिए, हालाँकि कोर्ट में वे क़ुतुब मीनार के जीर्णोद्धार और पूजा के अधिकार के मामले में खुद को पार्टी बनाये जाने की अपील लेकर गए थे.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की दलील पर दिल्ली के साकेत कोर्ट उनका दावा खारिज़ कर दिया, लेकिन उनकी बात को ग़लत कैसे माना जाये. पूजास्थल (विशेष प्रावधान) कानून 1991 में ये कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को जो भी पूजा स्थल जैसा था, उसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता, उसके बाद भी किसी ना किसी कारण से पूजा स्थलों पर विवाद के मामले लिए जा रहे हैं, उन पर विवादित फैसले दिए जा रहे हैं, जब कोर्ट और सरकारें, यानि राज्य ही अपने बनाये कानूनों को ना माने, तो जनता क्यों मानेगी. ज़ाहिर है जल्द ही आपको राष्ट्रपति भवन पर भी मुकदमा देखने को मिल सकता है, जब ये दावा सामने आएगा कि जिस जमीन पर ये भवन खड़ा है, उसकी मिलकियत किसी और की है.

First Published on:
Exit mobile version