टेक्सास (संयुक्त राज्य अमेरिका) के प्लानो में 14 अक्टूबर को इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल यानी आईएएमसी का वार्षिक सम्मलेन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। सम्मलेन में भारत में हिंदुत्ववादी वर्चस्व और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार को लेकर चिंता जतायी गयी। “लोकतंत्र और मानवाधिकारों को कायम रखना: कार्रवाई के लिए एक वैश्विक आह्वान” थीम पर प्लानो ईवेंट्स सेंटर में आयोजित इस एक दिवसीय सम्मेलन में करीब एक हजार लोगों ने भाग लिया।
सम्मेलन के दौरान भारत में मुसलमानों, ईसाइयों, दलितों और अन्य उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की स्थितियों, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के उदय और संगठित होने की आवश्यकता को लेकर पूरे दिन पैनल चर्चा हुई। भारत की सत्तारूढ़ हिंदुत्ववादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत पर बल दिया गया। वक्ताओं ने गार्जियन अखबार के हवाले से कहा कि हिंदुत्व, हिंदू वर्चस्ववाद में निहित है। यह ऐसी विचारधारा है जिसका उद्देश्य भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलना है। एक ऐसा देश जहां मुस्लिम और ईसाई दोयम दर्जे के नागरिक बनकर रह जायें और हिंदुओं को ऊँचा दर्जा प्राप्त हो।
प्लानो के डॉ. जफर अंजुम के नेतृत्व में एक हुई एक जोशीली प्रार्थना के बाद, कॉलोनी मस्जिद के इमाम, शेख उमर सुलेमान ने सम्मेलन का बीज वक्तव्य दिया। यक़ीन इंस्टीट्यूट फॉर इस्लामिक रिसर्च के संस्थापक और अध्यक्ष के रूप में, शेख सुलेमान ने भारत, फिलिस्तीन और अन्य देशों में मुस्लिम जीवन के लिए बढ़ते खतरों से निपटने के लिए एक समुदाय के रूप में एकजुट होने की आवश्यकता पर जोर दिया। सुलेमान ने कहा, “एक समय दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र रहा भारत अब उत्पीड़न के मॉडल के रूप में खड़ा है। लेकिन हमारी आस्था उनके पास मौजूद युद्ध मशीनों से अधिक मजबूत है।”
भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न का विरोध करने के लिए सिख और हिंदू दोनों समुदायों के योगदान की सराहना करते हुए सुलेमान ने लोगों को “न केवल भाषण सुनने के लिए, बल्कि काम में हाथ बँटाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, “हमें कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों की आवश्यकता है। ईश्वर करे कि यह वह क्षण हो जब हम भारत में फासीवाद का विरोध करने के लिए यहां डलास में एक आंदोलन खड़ा करें।”
डॉ. सुलेमान के संबोधन के बाद, IAMC की ओर से द्वितीय वार्षिक मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता पत्रकारिता पुरस्कार के विजेताओं को सम्मानित किया गया। IAMC के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने मोदी शासन के तहत भारतीय मीडिया की गंभीर स्थिति पर चर्चा की, जहां समाचार संगठनों पर नियमित रूप से छापे मारे जाते हैं और उनके संपादकों को गिरफ्तार किया जाता है। उन्होंने कहा कि किसी ऐसे समय के बारे में सोचना कठिन है जब भारतीय मीडिया की स्वतंत्रत इससे अधिक ख़तरे में रही हो। उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल में सम्मानित किये जा रहे पत्रकारों की दृढ़ता उल्लेखनीय है।
दोपहर के भोजन के बाद सम्मेलन के युवा शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले युवा कार्यकर्ताओं के बीच प्रतिरोध के लचीले नेटवर्क के निर्माण की रणनीतियों पर विशद चर्चा हुई। “इंटरफेथ लीडर्स इन एक्शन: सोशल जस्टिस बियॉन्ड डायलॉग”; “भारत में लोकतंत्र को कायम रखना: 2024 चुनाव और उसका प्रभाव”; और “अनवीलिंग द शैडोज़: द इम्पैक्ट ऑफ़ हिंदू सुप्रीमेसी ऑन वीमेन” जैसे विषयों पर पैनल चर्चा हुई।
इंटरफेथ लीडर्स इन एक्शन पैनल में, IAMC के एसोसिएट मीडिया डायरेक्टर सफा अहमद ने इस्लामिक सोसाइटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका के पूर्व अध्यक्ष अज़हर अज़ीज़, सिख काउंसिल फॉर इंटरफेथ रिलेशंस के अध्यक्ष मनमोहन सिंह और मल्टीफेथ नेबर्स नेटवर्क के सह-संस्थापक पादरी बॉब रॉबर्ट्स जूनियर का स्वागत किया। सभी वक्ताओं ने विभिन्न धर्मों के बीच संवाद पैदा करने से जुड़ी चुनौतियों पर अपने विचार साझा किए। सिंह ने बताया कि कैसे 2023 विश्व धर्म संसद में मुस्लिम महिलाओं के साथ इंटरफेथ पैनल में भाग लेने के लिए उन पर हमला किया गया था, और कैसे “अगली पीढ़ी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करना सीखना होगा” और “खुद की रक्षा के लिए उपकरण विकसित करना होगा।” पादरी बॉब रॉबर्ट्स ने उल्लेख किया कि कैसे भारतीय ईसाइयों को बढ़ते “अधिनायकवाद और कबालाई मानसिकता’ से खतरा है। उन्होंने विभिन्न समुदायों के बीच सहयोग और समन्वय पर बल दिया।
“भारत में लोकतंत्र को कायम रखना: 2024 का चुनाव और इसका प्रभाव” विषय पर आयोजित पैनल चर्चा में भारत की जेल में बंद कार्यकर्ता उमर खालिद के पिता एसक्यूआर इलियास और आईएएमसी के एडवोकेसी डायरेक्टर अजीत साही ने भारत के आगामी लोकसभा चुनाव पर चर्चा की। इलियास ने हाल के कर्नाटक चुनावों के प्रेरक उदाहरण की ओर इशारा करते हुए कहा: “मुसलमानों ने भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए एक साथ आने का फैसला किया। उन्होंने एक पार्टी का समर्थन करने और अपने मतभेदों को दूर करने का फैसला किया। अजीत साही ने इस बात पर जोर दिया कि विपक्षी दल को “भारत के हिंदू राष्ट्रवादी प्रधान मंत्री की आर्थिक विफलताओं को सामने रखना चाहिए। उनकी विकास संबंधी जीत एक छलावा है। अगर विपक्ष ऐसा करता है तो वो चुनाव में जीत हासिल करेगा।”
“अनवीलिंग द शैडोज़: द इम्पैक्ट ऑफ़ हिंदू सुप्रीमेसी ऑन वीमेन” में पैनलिस्ट डॉ. यास्मीन सैकिया, एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी में शांति अध्ययन के अध्यक्ष हार्ड्ट-निकचोस और विद्वान डॉ. समीना सलीम ने भारत की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार द्वारा महिलाओं के लिए उत्पन्न खतरों पर चर्चा की।
पैनलिस्टों ने महिला पहलवानों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन का उदाहरण दिया, जिन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा नेता बृजभूषण शरण सिंह ने उनके साथ छेड़छाड़ की और उन्हें परेशान किया। डॉ.यास्मीन सैकिया ने कहा “विशेषकर महिलाओं को अपमानित करना, हिंदू राष्ट्रवादी कार्यक्रम के मूल में है। भाजपा ने महिलाओं को रोजगार से वंचित कर दिया है।” अन्य पैनलिस्टों ने मुस्लिम महिलाओं द्वारा अनुभव किए गए उत्पीड़न की ओर इशारा किया, जिन्हें स्कूल में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध झेलना पड़ा था।
अंतिम पैनलचर्चा “हिंदू राष्ट्रवाद और इस्लामोफोबिया: एक समकालीन विश्लेषण” विषय पर थी जिसमें लेखक और कानून के जानकार डॉ. खालिद बेयदौन, प्रोफेसर और शोधकर्ता डॉ. सबरीना गफ्फार-सिद्दीकी और रेसियल मुस्लिम के लेखक डॉ. सहर अजीज शामिल थे।
शाम को IAMC स्वयंसेवकों द्वारा धार्मिक मतभेदों को दूर करने और एक सामंजस्यपूर्ण, बहुलवादी भारत बनाने के लिए एक साथ आने के महत्व पर एक मार्मिक नाटक पेश किया गया। इसके अलावा मानव और नागरिक अधिकारों के प्रति समर्पित लोगों को सम्मानित किया गया। इसके तहत मौलाना मोहम्मद अली जौहर पुरस्कार उमर सुलेमान को, बेगम हजरत महल पुरस्कार डॉ. सहर अजीज को टीपू सुल्तान पुरस्कार डॉ. खालिद बेयदौन और डॉ. अंगना पी. चटर्जी को कुलसुम सयानी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बाद में, कैलिफ़ोर्निया के सांसद रो खन्ना भी ज़ूम के जरिये जुड़े। उन्होंने कहा कि वह ” इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के काम की गहराई से सराहना करते हैं।” उन्होंने मानवाधिकारों के लिए अथक वकालत के लिए इसके कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद की प्रशंसा की।
सम्मेलन में पैनल चर्चा के अलावा एक बाज़ार भी लगाया गया था जहाँ दक्षिण एशियाई परिधानों से लेकर खिलौने और किताबें उपलब्ध थीं। मुस्लिमों के वैश्विक स्तर पर जारी उत्पीड़न और अमेरिका में हिंदुत्ववादी समूहों की बढ़ती उपस्थिति से जुड़ा साहित्य उपलब्ध था। साथ ही एक स्मारक भी था जो दिन भर जलने वाली मोमबत्ती की रोशनी के सहारे आभासी इंडिया गेट पर उन लोगों के नाम चमका रहा था जिन्होने भारत में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा में अपनी जान गँवा दी।