अब जब देश भर में लॉकडाउन चल रहा है और सरकारी स्तर पर कुछ बड़ा नहीं हो रहा है, हजारों लाखों लोग लॉकडाउन की मुश्किलों से अपने स्तर पर जूझ रहे हैं, तो हिन्दी के अखबार क्या कर रहे हैं यह देखना दिलचस्प है।
बेशर्मी की हद तक नालायक हो चुके हिन्दी अखबारों के बारे में यह आशंका जताई जा रही है कि वो कोरोना को नहीं झेल पाएंगे और बंद हो जाएंगे। मैं यह समझने की कोशिश कर रहा हूं कि उन्हें क्यों चलते रहना चाहिए। आज अंग्रेजी के अखबारों में जो कुछ है उसके मुकाबले यह देखता हूं कि हिन्दी अखबारों में क्या है। कुछ खास तो होना नहीं है। नालायकी या सरकारी प्रचार जो असल में सरकार के सही गलत काम का समर्थन होता है उसे समझता हूं और आपको भी बताता हूं।
शुरुआत अंग्रेजी अखबारों से। हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है कि देश में कोरोना पॉजिटिव के ज्ञात मामले 1000 हो गए और हजारों लोग घर पहुंचने के रास्ते या कोशिश में सड़कों पर हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की पहली खबर है, प्रवासियों की बड़ी संख्या शहर से बाहर जा रही है इसलिए बड़े पैमाने पर लोगों को निकालने का अभियान जारी। इसके साथ उपशीर्षक और इंट्रो के जरिए बताया गया है कि दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर भारी भीड़ के कारण स्वास्थ्य को लेकर खतरा पैदा हो गया है और इतनी भीड़ है कि सबको स्क्रीन करना असंभव है। इसके साथ ही अखबार में एक अच्छी खबर है, सरकार दिल्ली छोड़कर जाने वाले लोगों से उन जिलों और गांवों की पहचान कर रही है जिनकी निगरानी की जानी है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर का शीर्षक है, “चौथा दिन : एक भारत जो बंद है”। इसके साथ बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ की तस्वीर है। साथ में एक खबर है जो बताती है कि 21 दिन की बंदी के बाद क्या किया जाना चाहिए। एक्सप्रेस के लिए इस विशेष आलेख में बताया गया है कि बंदी से अगर कोविड 19 का विस्तार रुक भी जाए तो यह (बाद में) फैलेगा। सड़क पर प्रवासियों को देखकर स्पष्ट है कि सब गड्डमड्ड होने वाला है और इसके लिए तैयार रहिए।
टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर यह भी है कि प्रवासियों को लेकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार की सरकारों में एक-दूसरे पर आरोप लगाने का खेल शुरू हो गया है और यह भी कि पैदल जाते लोगों ने कई शहरों की सीमा पर भीड़ कर दी है। द टेलीग्राफ की लीड प्रवासियों पर ही है। शीर्षक है, बाद की एक सोच। प्रवासी – बंद कर दिया गया, छोड़ दिया गया और अब अव्यवस्था। इसमें आनंद विहार की भीड़ की फोटो और विवरण के साथ बताया है कि सोशल डिसटैंसिंग की जरूरत पूरी नहीं हो रही है और राजस्थान के एक वेल्डर, प्रवीण कुमार का विवरण है जो बैंगलोर से पैदल जालोर में अपने गांव के लिए निकला है और चार दिन से सड़क पर है। उसकी पूरी यात्रा 1800 किलोमीटर की है और उसने 370 किलोमीटर की दूरी तय कर ली है। अभी उसे करीब 1400 किलोमीटर चलना है।
दैनिक जागरण ने अपने राष्ट्रीय संस्करण में बिहार के मुख्यमंत्री को प्रमुखता से छापा है। शीर्षक है, बाहर से आ रहे किसी को नहीं घुसने देंगे बिहार में : नीतीश। अखबार की मुख्य खबर है, हर प्रवासी मजदूर को मिलेगी मदद। खबर के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान देश की हालत की समीक्षा के लिए बुलाई गई बैठक के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया कि सरकार प्रवासी मजदूरों की हर तरह की सहायता के लिए वचनबद्ध हैं। आपने पहले पढ़ा कि 50% को खाने का संकट है और देश के गृहमंत्री चार दिन बाद कह रहे हैं कि सरकार हर तरह से सहायता के लिए वचनबद्ध है और दैनिक जागरण जैसा अखबार इसे पहली खबर बना रहा है बिना किसी सवाल-जवाब के। एक तरफ चार दिन का भूखा और दूसरी ओर सरकार की वचनबद्धता।
नवोदय टाइम्स ने पलायन से बढ़ी स्टेज-3 की आहट शीर्षक खबर को लीड बनाया है। आनंद विहार की भीड़ की फोटो है। एक छोटी की खबर को पांच कॉलम में फैलाकर लगाया है और बताया है कि गृहमंत्रालय ने नियम बदले। इसके अनुसार मजदूरों की व्यवस्था के लिए होगा राज्य आपदा राहत कोष का उपयोग। बिहार के मुख्यमंत्री का बयान यहां भी पहले पन्ने पर है। शीर्षक है, बस से लोगों को भेजना गलत : नीतिश। शीर्षक से लगता है जैसे रेलगाड़ी या विमान से भेजना गलत नहीं होगा। इसमें दिलचस्प यह है कि स्पाइसजेट ने दिल्ली और मुंबई में फंसे अप्रवासी बिहारियों के लिए राहत के तौर पर विमान सेवा की पहल की है। स्पाइसजेट के सीएमडी अजय सिंह ने कहा कि कोरोना से लड़ाई के क्रम में अगर दिल्ली और मुंबई से पटना के लिए उड़ान की जरूरत होती है तो स्पाइसजेट सेवा देने के लिए तत्पर रहेगा। इसपर मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया मजेदार ही लगती पर दिखी नहीं।
अमर उजाला ने आनंद विहार की भीड़ की तस्वीर का शीर्षक लगाया है, संकट में लॉकडाउन …. पांच लाख से ज्यादा लोगों का दिल्ली से पलायन। इसके साथ योगी की नसीहत और केजरीवाल का अनुरोध और नीतिश कुमार की सलाह भी है। इसके अनुसार, लोगों के लिए बसों की नहीं, कैम्पों की व्यवस्था होनी चाहिए। कुल मिलाकर, खबर यह है कि चार दिन बाद भी सरकारें यह तय नहीं कर पाई हैं कि क्या होना चाहिए और किसे क्या करना है। और अखबार इस सच को बताने या रेखांकित करने की बजाय कौन क्या कह रहे हैं बता दे रहे हैं और आप सरकार के बारे में अपनी जो राय बनाएं। वह नकारात्मक न हो इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है। अमर उजाला का मुख्य शीर्षक भी और अखबारों से अलग है, “पहली बार एक ही दिन में संक्रमित 200 पार”। लेकिन यह सब रुटीन ही है अंग्रेजी अखबारों की तरह विशेष कुछ नहीं है।
दैनिक हिन्दुस्तान की मुख्य खबर और उसका शीर्षक है, नहीं रुक रहा जन ज्वार! यह बहुत सामान्य शीर्षक और सूचना है। यह लगभग सबको मालूम है। महामारी से जंग में मोदी ने दान मांगा यह खबर टॉप पर है। अब इसे सरकारी खबर तो नहीं कहा जा सकता है और ना यह कहा जा सकता है कि जनहित में नहीं है। पर हिन्दी के आम पाठकों के लिए कितने महत्व की है आप खुद तय कीजिए। यही नहीं, यह एक अलग ट्रस्ट में दान देने की अपील है और दान प्रधानमंत्री राहत कोष में क्यों नहीं मांगा जा रहा है इस बारे में अखबार ने कुछ नहीं बताया है। सिर्फ यह लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा, यह फंड कोरोना जैसी कई विपरीत परिस्थितियों में जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाने का जरिया बनेगा। उन्होंने बताया कि कोरोना के खिलाफ जंग में हर कोई योगदान देना चाह रहा है। उनकी भावना का सम्मान करते हुए पीएम-केयर फंड बनाया गया है। यह एक पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट है। अखबार ने लिखा है, सोशल मीडिया पर इसकी सराहना हुई। सच यह है कि प्रधानमंत्री कुछ करें और सोशल मीडिया पर उसकी सराहना न हो यह शायद ही होता है।
खबरों से अगर किसी अखबार की रीढ़ का अंदाजा लगाना चाहें तो वह आज राजस्थान पत्रिका में है। आनंद विहार की भीड़ की तस्वीर को चिन्ताजनक और भूख की चिन्ता लिखना वास्तविक स्थिति बयान करना है। इसके साथ मुख्य शीर्षक है, लाखों भूखे-प्यासे लोग सड़कों पर (फ्लैग) कैसा लॉक डाउन (मुख्य शीर्षक) और कैसी सोशल डिस्टेंसिंग? प्रश्नवाचक चिन्ह बड़ा सा है और आनंद विहार में सड़क पर रोक सड़क पर रोककर रखे गए लोगों का प्रतीक है। इस खबर में अन्य सूचनाएं हैं जो पहले बताई जा चुकी हैं। मुख्य बात शीर्षक ही है।