पहला पन्ना: तुषार मेहता के झूठ का रिकॉर्ड और हिन्दुस्तान टाइम्स का भरोसा!!

तृणमूल के तीन सांसदों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है और मेहता को नौकरी से बर्खास्त करने की मांग की क्योंकि अधिकारी से उनका मिलना हितों के टकराव का मामला है। अखबार ने इस संबंध में सांसद महुआ मोइत्रा के ट्वीट का भी उल्लेख किया है, जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त एक भाजपाई उच्च सुरक्षा वाले सॉलिसिटर जनरल के आधिकारिक निवास में "बिना बुलाए" पहुंच गए चाय पर 20 मिनट इंतजार किया और जैसा स्पष्ट है बिना मिले चले गए। अपनी बात के समर्थन में सीसीटीवी का फुटेज दीजिए सॉलिसिटर जनरल साब।

इंडियन एक्सप्रेस ने बहुत दिनों बाद आज तृणमूल कांग्रेस और सरकार (भाजपा) से संबंधित एक खबर को पहले पन्ने पर बराबर महत्व दिया है। खबर यह है कि पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम से नए चुने गए और ममता बनर्जी को हराने वाले भाजपा विधायक सुवेन्दु अधिकारी दिन में तीन बजे दिल्ली में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के घर गए, वहां रुके, चाय आई पर सॉलिसिटर जनरल उनसे नहीं मिले क्योंकि व्यस्त थे। खबर यह भी है कि अधिकारी अमित शाह से मिलकर पहुंचे थे। मैं सिर्फ खबर की बात कर रहा हूं जो अखबारों में छपा है। अमित शाह से मिले या वहां भी वही हुआ तो तुषार मेहता के यहां हुआ यह मैं नहीं कह सकता। मुख्य खबर यह है कि अधिकारी ऐसे मामले में अभियुक्त हैं जिसकी जांच सीबीआई कर रही है और सॉलिसिटर जनरल होने के नाते तुषार मेहता सीबीआई के वकील और देश के दूसरे सबसे बड़े अधिकारी हैं। इस क्रोनोलॉजी के कारण तृणमूल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री से मांग की है कि मेहता को उनके पद से हटाया जाए। अभी अगर आपको तुषार मेहता की बातों पर यकीन है तो भी यह निश्चित रूप से बड़ी खबर है कि भाजपा का कोई सेलीब्रिटी विधायक गृहमंत्री से मिलकर तुषार मेहता के घर पहुंचे, रुके, चाय भी आए पर तुषार मेहता उससे मिलें नहीं और खंडन जारी करें। खंडन जारी करने का कारण भले यही हो तो तृणमूल ने उन्हें पद से हटाने की मांग की है। यह सब कुछ खबर तो है ही। आज की राजनीतिक स्थिति में दिलचस्प भी। लेकिन मेरे दो ही अखबारों में पहले पन्ने पर है। 

द हिन्दू में नहीं है, टाइम्स ऑफ इंडिया में बंगाल की दूसरी खबरें अंदर होने की सूचना के बावजूद पहले पन्ने पर तो नहीं ही है, अंदर होने की सूचना भी नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स में छोटी सी खबर है। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर तीन कॉलम में है। मुख्य खबर का शीर्षक है, भाजपा के (सुवेन्दु) अधिकारी के सॉलिसिटर जनरल के घर पर होने से हंगामा शुरू और सवाल उठे। मुझे लगता है कि खबर यही है और सिंगल कॉलम में भी यही शीर्षक होना चाहिए। तब बात स्पष्ट होगी वरना सामान्य आरोप-प्रत्यारोप मानकर पाठक पढ़ेगा ही नहीं। हो सकता है, एचटी में छापने वाले के साथ ऐसा ही हुआ है। पर वह अलग मुद्दा है। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी इस खबर के साथ एक और खबर छापी है, टीएमसी ने मेहता का इस्तीफा मांगा, मेहता ने कहा वे वहां थे पर मिले नहीं। यह शीर्षक भी हिन्दुस्तान टाइम्स के शीर्षक से अलग है और इसलिए जरूरी है कि तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि मेहता अपने घर के सीसीटीवी फुटेज जारी करें। देश के दूसरे सबसे बड़े अधिकारी से यह मांग उनपर अविश्वास और उनकी कमजोर स्थिति बताता है। ऐसे में इस खबर को नहीं छापना या किसी रूटीन शीर्षक से छापना सच को छिपाने के अलावा कुछ नहीं है।    

द टेलीग्राफ के शीर्षक से मामले की गंभीरता और साफ हो जाती है। फ्लैग शीर्षक है, सुवेन्दु को लेकर आरोप से लड़ रहे हैं लॉ ऑफिसर (हिन्दी में यहां अधिकारी लिखने से भ्रम हो सकता है)। इस खबर का मुख्य शीर्षक है, चाय और सहानुभूति तो ठीक है (लेकिन आप पर यकीन कौन करेगा) सीसीटीवी (फुटेज) दिखाइए। अब आप समझ सकते हैं कि मामला सिर्फ आरोप लगाने का नहीं है। लगभग साबित हो चुका है। इसे गलत साबित करने के लिए मेहता को वीडियो जारी करना पड़ेगा। देखिए आगे क्या होता है लेकिन फिलहाल खबर नहीं छापना या पहले पन्ने पर नहीं छापना अधिकारी और मेहता का बचाव ही है। टेलीग्राफ के अनुसार अधिकारी का बयान इस प्रकार है, सुवेन्दु अधिकारी कल मेरे घर जरूर आए थे, बिना बताए, दिन में करीब तीन बजे। चूंकि मैं पहले से निर्धारित एक मीटिंग के लिए अपने चैम्बर में था, इसलिए मेरे कर्मचारी ने उनसे मेरे कार्यालय के प्रतीक्षा कक्ष में बैठने के लिए कहा और उनसे चाय के लिए पूछा। जब मेरी मीटिंग पूरी हुई तो मेरे पीपीएस ने उनके आने की सूचना दी। मैंने अपने पीपीएस से कहा कि उन्हें यह बता दिया जाए कि मैं उनसे मिल नहीं सकता हूं और मेरी तरफ से मांफी मांग लें क्योंकि उन्हें इंतजार करना पड़ा। श्री अधिकारी मुझझे मिलने के लिए जोर दिए बगैर चले गए। इसलिए, श्री अधिकारी से मेरे मिलने का सवाल ही पैदा नहीं हुआ। 

अखबार ने लिखा है कि बयान में यह नहीं बताया गया है कि सुवेन्दु अधिकारी ने चाय पी या नहीं और उसकी गुणवत्ता पर टिप्पणी की कि नहीं। आमतौर पर लोग ऐसा करते ही हैं इसलिए इसका भी उल्लेख होना चाहिए था। इसके अलावा, मेहता का बयान पर्याप्त विस्तार में था। अखबार ने बताया है कि व्यस्त अधिकारी, मेहता ने बयान क्यों जारी किया। इसकी चर्चा मैं पहले कर चुका हूं। तृणमूल के तीन सांसदों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है और मेहता को नौकरी से बर्खास्त करने की मांग की क्योंकि अधिकारी से उनका मिलना हितों के टकराव का मामला है। अखबार ने इस संबंध में सांसद महुआ मोइत्रा के ट्वीट का भी उल्लेख किया है, जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त एक भाजपाई उच्च सुरक्षा वाले सॉलिसिटर जनरल के आधिकारिक निवास में “बिना बुलाए” पहुंच गए चाय पर 20 मिनट इंतजार किया और जैसा स्पष्ट है बिना मिले चले गए। अपनी बात के समर्थन में सीसीटीवी का फुटेज दीजिए सॉलिसिटर जनरल साब। अखबार ने याद दिलाया है कि राज्य विधानसभा चुनाव पूर्ण होने के बाद सीबीआई ने नारदा मामले में बंगाल के दो मंत्रियों, एक विधायक और पूर्व मेयर को गिरफ्तार कर लिया था और चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई थी। अधिकारी के खिलाफ और भी मामले हैं जिनका जिक्र तृणमूल के सांसदों ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में किया और अखबार ने छापा है। लेकिन उससे दिलचस्प है सांसद महुआ मोइत्रा का आज सुबह का ट्वीट

सड़क पर कोई प्रवासी नहीं है, ऑक्सीजन का कोई संकट नहीं है, भाजपा नेता से मुलाकात नहीं हुई, माननीय सॉलिसिटर जनरल की  सत्यवादिता का रिकार्ड है। जाइए, पता लगाइए।

 


ये तो हुई उस खबर की बात जो नहीं (या कम) छपी। मैंने पहले लिखा है कि अखबारों में खबरों के चयन का कोई नियम नहीं हो सकता है। आज की खबरों के साथ अगर कोई खबर पहले पन्ने के लायक है या नहीं है तो कल की खबरों के साथ उसकी स्थिति अलग हो सकती है। यही संपादक को तय करना होता है और उसके विवेक का मामला है। इसमें उसका पूर्वग्रह, पसंद-नापंसद, उसकी अपनी सोच, प्राथमिकताओं का असर होगा ही। इसे कोई रोक नहीं सकता है। जनसत्ता में जब हमलोग अच्छा अखबार निकालते थे तो हर कोई पहला पन्ना बनाने वालों को बता सकता था कि कोई खबर पहले पन्ने के लायक है या नहीं। खेल और वाणिज्य पन्ने वाले तो खासतौर से कहते थे कि यह पहले पन्ने पर जानी चाहिए। इस तरह पहला पन्ना या पूरा अखबार सबके मिले जुले प्रयासों से अच्छा बनता था। आज ऐसी कोई खबर नहीं है जो सभी अखबारों में लीड अलग है और इससे आप समझ सकते हैं तुषार मेहता और शुभेन्दु अधिकारी की खबर पहले पन्ने पर नहीं छपी है तो कारण दूसरी खबरें नहीं यह खबर खुद है और जिसे पहले पन्ने के लायक लगी उसने पहने पन्ने पर छापा और जिसे सेवा करनी थी उसने सेवा की। सेवा करने का अधिकार भी संपादक को है पर पाठक को पता होना चाहिए कि संपादक सेवक या प्रचारक है। आखिर पार्टी के मुखपत्र होते ही हैं और लोग उन्हें भी पढ़ते ही हैं। लेकिन निष्पक्ष पत्रकारिता के नाम पर धोखा नहीं किया जाना चाहिए। 

आज पहले पन्ने की कुछ खास खबरें जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं हैं

 

द हिन्दू 

 

  1. पहली तिमाही में माल निर्यात ने 95 बिलियन डॉलर का निशान छुआ, जून में दूसरी लहर के बावजूद 47 प्रतिशत की वृद्धि 
  2. केरल के हाउसबोट यात्रा पर निकलने के लिए तैयार, जोरदार टीकाकरण अभियान और सरकार की सहायता ने महामारी से प्रभावित उद्योग को नई तेजी दी। 
  3. अखिल गोगोई सीएए विरोधी आंदोलन फिर शुरू करेंगे। उनका कहना है, कोई भी विदेशी असम में नहीं रहेगा।  

 

इंडियन एक्सप्रेस 

  1. कश्मीर में एक और मुठभेड़; सैनिक, लश्कर के पांच उग्रवादी मारे गए। 
  2. गर्भावस्था के दौरान टीके की अनुमति: महिलाएं जानकार पसंद कर सकती हैं। 
  3. कपिल मिश्रा के वीडियो में मौजूद अधिकारी और अन्य दिल्ली में दंगे की ड्यूटी के लिए मेडल चाहते हैं 
  4. हरियाणा के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले 12.5 लाख बच्चों ने संभवतः पढ़ाई छोड़ दी, मौजूदा शिक्षा सत्र में नामांकन नहीं कराया है। 

 

द टेलीग्राफ 

  1. अनुसंधान से पता चला, एक लाख जानें बचाई जा सकती थीं 
  2. भाजपा ने पश्चिम वंगाल विधानसभा में राज्यपाल को अपना संबोधन पढ़ने के मौके से वंचित किया जबकि 200 से ज्यादा सीटें जीतने के लिए आकाश-पाताल एक किए हुए थे और अब 70 से कुछ ज्यादा विधायकों ने अपनी उपस्थिति का अहसास कराने के लिए आकाश पाताल एक कर दिया। आखिरकाल राज्यपाल की प्रसिद्धि के 15 मिनट चुरा लिए। 
  3. एक ब्रिटिश पहेली, क्या मेरा टीका भारत में बना है

 

दोनों टाइम्स की खबरें एक जैसी हैं। (कोविड के) ज्यादा मामले वाले छह राज्यों में केंद्र ने टीम भेजी। दोनों में लीड है। अधपन्ने की लीड अलग है। टीओआई में, अमेरिकी सेना ने तालिबान के उभार के बीच मुख्य अफगान हवाई पट्टी छोड़ी जबकि एचटी में भारतीय वायु सेना की खबर है जो दूसरे अखबारों में भी है। आईआईटी मद्रास में पुरुष का शव मिला एचटी में अध पन्ने पर है जो दूसरी जगह नहीं मिली। लेकिन टाइम्स में एक दिलचस्प खबर (सिंगल कॉलम में) मिली, देहरादून के वेलहम ब्वायज स्कूल में मांस विवाद पर प्रिंसिपल के खिलाफ मुकदमा। इसके अनुसार स्कूल में मांस की खरीद पर बजरंगदल को एतराज है और कहना है कि मेस के लिए हलाल मांस खरीदा जाता है जबकि यहां सभी धर्मों के लोग ठहरते हैं। यह बहुत ही फूहड़ मामला है। स्कूल का प्रिंसिपल अगर हलाल और झटका करेगा तो पढ़ाएगा कौन। वैसे भी स्कूली बच्चों को तो हलाल और झटका का फर्क भी मालूम नहीं होगा। मैं 15 रुपए किलो के भाव से मांस खरीद रहा हूं और हलाल झटका नहीं जानता था। मेरे घर के पास दो दुकानें थीं। एक हलाल और एक झटका की पर मुझे किसी ने नहीं बताया था कि दोनों में अंतर होता है। लिहाजा मैं किसी से भी खरीद लाता था। आज 50 साल बाद अगर वेलहम स्कूल में यह मुद्दा है तो हम विकास का अंदाजा लगा सकते हैं। खबर तो खबर है ही।    

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

 

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