टीवी के परदे पर हर रात आग लगाने वाले समाचारवाचक अर्णब गोस्वामी को न्यूज़ ब्रॉडकॉस्टर्स फेडरेशन का अध्यक्ष चुना गया है। यह ख़बर आज हर अहम वेबसाइट पर है और ट्विटर पर ट्रेंड कर रही है। एकबारगी देखने पर लगता है कि यह बहुत अहम पद है और इसे प्रस्तुत भी इस तरह से किया जा रहा है कि देश के 78 से ज्यादा टीवी चैनलों ने मिलकर गोस्वामी को अपना स्वामी चुन लिया है, तो वास्तव में कुछ बड़ा ही होगा। मामला हालांकि वैसा नहीं है जैसा दिखाया जा रहा है।
गोस्वामी ने अध्यक्ष चुने जाने का स्वागत करते हुए कहा है, “लंबे समय से कुछ मुट्ठी भर दिल्ली स्थित चैनलों ने फर्जी तरीके से भारतीय प्रसारकों की नुमाइंदगी करने का दावा किया है। अब यह बदल जाएगा और बेहतर होगा।”
“I am grateful for the trust and confidence shown in me by the largest ever group of broadcasters in India," said #ArnabGoswami on being elected as the President of News Broadcasters Federation.https://t.co/R8SlJFlWX1
— The Hindu (@the_hindu) December 8, 2019
गोस्वामी जिन मुट्ठी भर चैनलों का ज़िक्र कर रहे हैं, दरअसल गोस्वामी के रिपब्लिक को छोड़ कर उनमें वे तमाम राष्ट्रीय चैनल हैं जिनका न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स असोसिएशन पिछले 12 साल से अस्तित्व में है और टीवी समाचारों के प्रसारण में नियम-कायदे तय करता रहा है। फिलहाल असोसिएशन के अध्यक्ष इंडिया टीवी के रजत शर्मा हैं।
ये जो गोस्वामी का फेडरेशन है, बहुत नयी संस्था है। इस साल जुलाई में न्यूज़ ब्राडकास्टर्स फेडरेशन का गठन हुआ था जब 30 से ज्यादा टीवी चैनलों के शीर्ष अधिकारी एक बैठक में मिले थे। इसके बाद 1 नवंबर को इसे सदस्यता के लिए खोला गया। अब तक इसके जितने भी सदस्य बने हैं, उनमें कायदे से अर्णब गोस्वामी का रिपब्लिक टीवी ही कथित राष्ट्रीय चैनल माना जा सकता है, बाकी छिटपुट क्षेत्रीय और स्थानीय चैनल हैं। अगर टीवी9 भारतवर्ष को राष्ट्रीय चैनल मान लें, तो रिपब्लिक को मिलाकर कुल दो हो जाते हैं।
रिपब्लिक टीवी और रिपब्लिक भारत, वी6 और पुथियाथलमुरइ टीवी (तमिलनाडु), उड़ीसा टीवी, आइबीसी 24 (एमपी और छत्तीसगढ़), एशियानेट और सुवर्ण (केरल−कर्नाटक), टीवी9 भारतवर्ष, न्यूज़लाइव और नॉर्थर्इस्ट लाइव, फर्स्ट इंडिया (राजस्थान), कोलकाता टीवी, सीवीआर न्यूज़ (तेलंगाना और आंध्र), पॉलिमर न्यूज़ (तमिलनाडु), खबर फास्ट (हरियाणा), लिविंग इंडिया(पंजाब), प्राग न्यूज़ (असम), एनटीवी (तेलंगाना और आंध्र), महान्यूज़ (तेलंगाना और आंध्र), टीवी5 न्यूज़ (तेलंगाना और आंध्र), वनिता टीवी (तेलंगाना और आंध्र), एमके टीवी (तमिलनाडु), डीएनएन और आइएनडी24 (एमपी), श्री शंकर टीवी और आयुष टीवी (कर्नाटक), ए1 टीवी (जयपुर), पावर टीवी (कर्नाटक), राज न्यूज़ (तमिलनाडु), फ्लावर्स टीवी (केरल), सीवीआर न्यूज़ नेटवर्क (तेलंगाना और आंध्र), नेशनल वॉयस (यूपी), निर्माण न्यूज़ (गुजरात), अनादि टीवी (एमपी और छत्तीसगढ़), वीआरएल मीडिया (कर्नाटक), कलकत्ता न्यूज़, न्यूज़7 (तमिलनाडु), डीएनएन और न्यूज़ वर्ल्ड (एमपी छत्तीसगढ़), एमएच वन (हरियाणा), मंतव्य न्यूज़ (गुजरात), गुजरात टीवी, एस न्यूज़ (बंगाल), बंसल टीवी (एमपी) और ओंकट टीवी (बंगाल)।
जुलाई में इस मंच के गठन के बाद सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसका स्वागत करते हुए कहा थाः “मुझे उम्मीद है कि एनबीएफ सरकार को अपनी सिफारिशें देगा और प्रसारण में अनुशासन को सुनिश्चित करेगा ताकि सच की हत्या न होने पाए।”
एनबीएफ के गठन के पीछे की पूरी कहानी इसी बयान में छुपी है। देश में पिछले 12 साल से एनबीए अस्तित्व में है और अब तक इसने 3000 शिकायतों का निपटारा करते हुए कुछ ऐसे दिशानिर्देश जारी किए जिन्हें सरकार सहित चुनाव आयोग तक ने मान्यता दी है। तकरीबन सर्वस्वीकार्य एनबीए के रहते हुए एनबीएफ की ज़रूरत क्यों आन पड़ी?
दरअसल, पिछले कुछ वर्षों के दौरान एनबीए ने टाइम्स नाउ और रिपब्लिक में रहते हुए अर्णब गोस्वामी को जितनी बार नोटिस दिया, अर्णब ने उतनी बार उसका उल्लंघन किया। अर्णब ने कभी भी एनबीए के दिशानिर्देशों को नहीं माना। आज से दो साल जब रिपब्लिक टीवी शुरू हो रहा था तब एनबीए ने उसकी वैधता को चुनौती देते हुए दूरसंचार नियामक प्राधिकरण ट्राइ को पत्र लिखा था। यह अर्णब और एनबीए के बीच जंग की शुरुआत थी।
यह दरअसल अर्णब गोस्वामी की निजी महत्वाकांक्षा, रंजिश और प्रसारण के मामलों में अनुशासन लाने संबंधी एनबीए की ढिलाई का मिलाजुला नतीजा रहा कि उन तमाम छोटे-मोटे चैनलों को मिला कर अर्णब ने एनबीएफ का गठन कर दिया जिनका मूल काम वसूली करना, चुनावी मौसम में पैसा कमाना और पत्रकारिता के नाम पर सनसनी फैलाना है। यह एक तरह से मोहल्ले के छिटपुट गुंडों का सर्वमान्य नेता बन जाने जैसी बात है।
ऐसे में सरकार से सटने का मौका कौन नहीं हड़पना चाहेगा। जो क्षेत्रीय चैनल एनबीएफ के सदस्य हैं, उन्हें इसका लाभ इस रूप में होगा कि अव्वल तो अर्णब के कंधे पर चढ़कर वे सरकार के कोप से बचे रहेंगे और विज्ञापन के मामले में उन्हें आसानी रहेगी। दूसरे, काम करने के मामले में चूंकि तमाम क्षेत्रीय चैनल राष्ट्रवादी सनसनी को अपना धर्म मानते हैं जिसके पुरोधा खुद अर्णब हैं, तो उनहें अपने कंटेंट को लेकर एक संगठित वैधता भी मिल जाएगी।
यह सच है कि एनबीए में क्षेत्रीय चैनलों की नुमाइंदगी पर्याप्त नहीं थी। इसी वजह से कुछ साल पहले तमाम क्षेत्रीय चैनलों के मालिकान ने मिलकर एक मंच बनाया था जिसका नाम आँल इंडिया न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स असोसिएशन था। यह मंच केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद 2014 में अस्तित्व में आया था। इसका सीधा सा उद्देश्य था कि तमाम क्षेत्रीय चैनलों ने इस सरकार को बनाने में जैसी भूमिका निभायी है, वे उसकी वसूली कर सकें और माल काट सकें। दिक्कत यह हुई कि अपने बीच कोई बड़ा नाम न होने और विश्वसनीयता न होने के चलते यह मंच बहुत दिन टिक नहीं सका।
अब पांच साल बाद इन्हीं चैनल मालिकों को अर्णब गोस्वामी में अपना एक संकटमोचक दिखा है जो सरकार से निकटता बनाने के काम आ सकता है ताकि वे अपने कुकर्म के फल तोड़ सकें। इसीलिए आनन-फानन में सबने मिलकर अर्णब को अपना नेता चुन लिया और सूचना प्रसारण मंत्री ने भी इन्हें बधाई देकर एक तरह से मान्यता दे डाली। इस घटनाक्रम से घबराए एनबीए के सदस्यों ने एक प्रतिनिधिमंडल लेकर मंत्री जावड़ेकर से जुलाई के अंत में मुलाकात भी की थी, हालांकि बैठक में क्या बात हुई यह पता नहीं है।
जाहिर है, एबीपी, एनडीटीवी, आजतक, इंडिया टीवी सहित तमाम बड़े और पुराने चैनलों के मंच एनबीए के बजाय वह एनबीएफ को ही पास रखना चाहेगी क्योंकि वहां कुल मिलाकर एक ही राष्ट्रीय चैनल है रिपब्लिक, जिसकी छतरी तले तमाम क्षेत्रीय चैनल इकट्ठा हैं। एनबीएफ में अर्णब का बाकी पर नियंत्रण मुकम्मल है और अर्णब पर इस सरकार का नियंत्रण स्वतः सिद्ध।
आने वाले दिनों में मीडिया से जुड़े दिशानिर्देशों और कंटेंट के फ्रेमवर्क पर सूचना व प्रसारण मंत्रालय किसको न्योता देगा, यह बताने वाली बात नहीं होनी चाहिए। अर्णब के अध्यक्ष चुने जाने के बाद एनबीएफ बनाम एनबीए के रूप में टीवी मीडिया एक नयी जंग के लिए तैयार हो चुका है। आने वाले दिन ही बताएंगे कि दर्शकों और पत्रकारों के लिए इसके परिणाम क्या होंगे।