शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019 (कल) की अपनी रिपोर्ट में मैंने अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ की पूर्व सैनिकों की चिट्ठी वाली खबर की चर्चा की थी और बताया था कि वह खबर दूसरे अखबारों में नहीं है। इसके साथ ही मैंने सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बांड के मुद्दे पर चर्चा की थी और बताया था कि केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि, …. मतदाताओं को क्यों जानना चाहिए कि राजनीतिक दलों का पैसा कहां से आया है। इसपर राजस्थान पत्रिका ने लिखा था कि सरकार ने अदालत से कहा है कि इस मामले में लोकसभा चुनाव तक आदेश न जारी किया जाए। मैंने यह भी बताया था। पर ऐसा नहीं हुआ और आदेश जारी हो गया। यह खबर आज सभी अखबारों में प्रमुखता से है।
पूर्व सैनिकों वाली खबर पर मुझे शांति रहने की उम्मीद दी और कल मैं यह तय नहीं कर पाया था कि अगर आज भी यह खबर नहीं छपी तो मुझे क्या करना होगा। जब मैंने अपनी रिपोर्ट पोस्ट की तब तक मुझे सेना के दिग्गजों की चिट्ठी की कॉपी भी नहीं मिली थी। पर उसके बाद जो हुआ वह बिल्कुल अप्रत्याशित था। पहले कभी नहीं हुआ और शायद होगा भी नहीं। पोस्ट करने के बाद मैं नेट पर चिट्ठी की कॉपी ढूंढ रहा था तो पता चला कि राष्ट्रपति भवन ने मूल पत्र मिलने से ही इनकार किया है। वैसे तो यह गंभीर बात थी और राष्ट्रपति भवन का सक्रिय होना लाजमी है पर मेरा मानना है कि राष्ट्रपति भवन को इसमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी।
खासकर इसलिए कि चुनाव आचार संहिता के संबंध में राष्ट्रपति को कई चिट्ठियां लिखे जाने की सूचना औऱ खबर है। इनमें एक तो चुनाव आयोग द्वारा राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के खिलाफ लिखा गया पत्र भी है। इससे संबंधित खबर दो अप्रैल को आई थी। यह पत्र राष्ट्रपति भवन में मिलने की सूचना नहीं है और ना इसपर किसी कार्रवाई की सूचना है। ऐसे में बाद का पत्र नहीं मिला है कहने का मतलब हुआ कि पहले के मिल गए हैं उनपर कार्रवाई नहीं हुई है या नहीं होगी। यह एक राजनीतिक सूचना है जो पूर्व सैनिकों का पत्र नहीं मिला की सूचना से निकलती है। इसलिए राष्ट्रपति भवन को जल्दबाजी से बचना चाहिए था।
राष्ट्रपति भवन के यह कहते ही कि पत्र नहीं मिला भाजपा प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर सक्रिय हो गई। सोशल मीडिया पर पत्र को फर्जी और कांग्रेस की चाल कहा गया और अब यह बड़ा मामला हो गया। पूरा मामला बहुत गंभीर और शर्मनाक है। इस आलोक में मुझे आज के टेलीग्राफ का इंतजार था ताकि कल (उसकी खबर से) जो सब हुआ उसपर उसकी प्रतिक्रिया जानी जा सके। द टेलीग्राफ ने लिखा था कि कम से कम आठ पूर्व सेना प्रमुख और कई अन्य दिग्गजों ने सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर राष्ट्रपति रामनाथ कोविद को पत्र लिखकर मांग की है कि सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया जाए कि वे तत्काल सेना और सेना की किसी कार्रवाई का उपयोग राजनीतिज्ञों उद्देश्यों के लिए न करें।
नवोदय टाइम्स ने इसे लीड बनाया है। तीन कॉलम दो लाइन का इसका शीर्षक है, पूर्व सैनिकों की चिट्ठी पर बवाल। जनरल शंकर राय चौधरी बोले – सेना की छवि खराब की जा रही है। यह नई दिल्ली डेटलाइन से एजेंसी की खबर है। खबर में आवश्यक विवरण तो है ही इसके साथ दो और चीजें हाइलाइट की गई हैं। कांग्रेस की मांग : मोदी-योगी के खिलाफ कार्रवाई हो और दूसरा, क्या लिखा पूर्व सैनिकों ने। अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने के अधपन्ने पर है। लेकिन इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर नहीं है।
दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर पहले पन्ने पर है। शीर्षक है, “पूर्व सैन्य अफसरों की चिट्ठी पर संग्राम”। नई दिल्ली डेटलाइन से यह एजेंसी की खबर है। इसके साथ बताया गया है कि पत्र में क्या लिखा है और कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी का कोट है, “जिस तरह सेना को सस्ती राजनीति में खींचा जा रहा है वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। आजाद भारत के इतिहास में सेना का इस तरह राजनीतिकरण कभी नहीं हुआ।”
नवभारत टाइम्स में भी यह खबर पहले पन्ने पर है। टॉप पर दो कॉलम तीन लाइन का शीर्षक है, “बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रपति को खत लिखने पर बंट गए सेना के पूर्व अफसर”। इसके साथ सिंगल कॉलम की एक खबर है, “सियासत गर्म”। अखबार ने एक कॉलम में पूर्व सेना प्रमुख रोड्रिग्ज और पूर्व वायु सेना प्रमुख एनसी सूरी की आधे कॉलम की फोटो लगाई है और बताया है कि इनलोगों ने कहा कि उनकी सहमति नहीं ली गई।
दैनिक जागरण में यह खबर पहले पन्ने पर तो नहीं है लेकिन अखबार ने आज भी दो पन्नों को पहले पन्ने जैसा बनाया है और यह दूसरे वाले पहले पन्ने पर चार कॉलम में है। “राष्ट्रपति को चिट्ठी पर विवाद, बंटे सेना के पूर्व अफसर”। अखबार ने इसके साथ “उलझा मामला” के तहत दो बातें बताई हैं। पहली, सेना के शौर्य के इस्तेमाल पर पत्र मिलने से राष्ट्रपति भवन का इनकार। दो पूर्व जनरलों ने बताया फर्जी, कहा – हस्ताक्षर नहीं किए। अखबार ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन के इस मामले में कूद पड़ने की भी चर्चा की है।
राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पन्ने पर चार कॉलम में है। फ्लैग शीर्षक है, “विवाद : 156 पूर्व सैन्य अफसरों ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र, राष्ट्रपति भवन ने कहा ऐसी कोई चिट्ठी नहीं मिली”। मुख्य शीर्षक है, “सेना पर राजनीति के खिलाफ चिट्ठी से बवाल”। खबर की शुरुआत होती है, कई अफसर बोले हमने नहीं लिखा कोई पत्र। अखबार ने रक्षामंत्री को फोटो के साथ छापा है, “स्वार्थ के लिए फैला रहे फर्जी पत्र”। इसके साथ कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी की फोटो और बयान है, इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ।
दैनिक भास्कर ने इसे पहले पन्ने पर बिग कंट्रोवर्सी के तहत छापा है। दो कॉलम दो लाइन की इस खबर का शीर्षक है, 156 पूर्व सैन्य अफसरों ने लिखा – राष्ट्रपति सेना को राजनीति से बचाएं। इसके साथ अखबार ने प्रमुखता से यह भी बताया है कि पूर्व सेना प्रमुख रोड्रिग्स, पूर्व वायु सेना प्रमुख सूरी सहित तीन बोले – पत्र पर दस्तखत नहीं। दूसरा हाइलाइटेड तथ्य है, पूर्व नौ सेना प्रमुख रामदास ने रोड्रिग्स और सूरी की सहमति के ईमेल जारी कर दावे नकारे। इसके साथ अखबार ने यह तो बताया ही है कि पत्र में क्या कहा गया है।