बीजेपी दफ़्तर के टाइपिस्ट बन चुके प्रेस के बीच सीधा खड़ा एक अख़बार!

भाजपा के दो प्रवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की खबर आज के अखबारों में ऐसे छपी है जैसे भाजपा के किसी पदाधिकारी-कार्यकर्ता ने लिखी हो। दरअसल ज्यादातर अखबारों में भाजपा की विज्ञप्ति को लगभग जस का तस छाप दिया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि उसमें गलत दावे हैं और झूठी जानकारी दी गई है। यही नहीं, कार्रवाई आपत्तिजनक बयान देने के नौ दिन बाद की गई। स्पष्ट रूप से विदेशी दबाव में लेकिन खबर ऐसे छापी गई है जैसे भाजपा ने कोई बहुत बड़ी कार्रवाई अपने स्तर पर की है। कुल मिलाकर इस मौके का उपयोग ‘आपदा में अवसर’ के रूप में किया गया है। यहां गौर करने वाली बात है कि कार्रवाई भारत सरकार को करनी थी। कार्रवाई की मांग भारत सरकार से की गई थी पर कार्रवाई भाजपा ने की है – और लगे हाथ भाजपा के प्रचार में पार्टी के संबंध में नई जानकारियां दीं हैं। 

मांग तो भारत सरकार से माफी मांगने की भी है लेकिन भारत के (दोषी) नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई करके या शुरू करके इससे बचा जा सकता था पर वह नहीं हुआ है। और कहने की जरूरत नहीं है कि 27 मई को जब आपत्तिजनक बयान दिया गया था तभी सरकार की ओर से किसी ने उसकी निन्दा कर दी होती तो यह स्थिति नहीं बनती। कहने की जरूरत नहीं है कि अभी तक चुप रहकर ऐसे तत्वों को संरक्षण दिया जाता रहा है और इस बार फंस गए तो गोदी मीडिया आपदा में अवसर ढूंढ़ रहा है। मुझे लगता है कि इसमें फंसने की आशंका अभी बनी हुई है पर वह अलग मुद्दा है। अभी तो हम देखें कि अखबारों ने क्या नहीं छापा और जो छापा वह कितना सही या कितनी खबर है।  

ऐसे में लीक से हटकर खबर छापने वाले अखबार द टेलीग्राफ ने पहले तो भाजपा के दावों का मजाक उड़ाया है। जो दावे किए गए हैं उसे स्टेट सीक्रेट (सरकारी राज) कहा है। और इस बात का भी मजाक उड़ाया है कि ये दावे प्रधानमंत्री या नरेन्द्र मोदी ने नहीं भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने किए हैं। द टेलीग्राफ का यह सब कहने का अपना अंदाज भी कम आक्रामक नहीं है लेकिन यही पत्रकारिता है और इसके लिए लोग कहते हैं कि रीढ़ चाहिए होती है पर मुझे लगता है कि सरकारी विज्ञापनों का लालच छोड़ देना भी पर्याप्त है और अखबार बढ़िया होगा, पाठक अच्छे होंगे तो निजी क्षेत्र में विज्ञापन कम नहीं है। हालांकि सरकार लीचड़ हो तो उसे भी रोकने के उपाय करती है पर वह भी अलग मुद्दा है। 

द टेलीग्राफ का शीर्षक है, दिल्ली ने अपने ही प्रवक्ता द्वय को ‘फ्रिंज’ कहा। अंग्रेजी के इस फ्रिंज शब्द का आम उपयोग बाहरी किनारे के लिए किया जाता है लेकिन कपड़े के आंचल या बच्चों की रजाई के किनारे लगने वाले फुंदने, झालर या किनारी को भी फ्रिंज कहा जाता है। राष्ट्रीय प्रवक्ता से इस तरह पल्ला झाड़ लेने का मामला अखबारों द्वारा अपने स्ट्रिंगर को नहीं पहचानने जैसा ही है। दूसरी ओर, पत्रकार होने के नाम पर चने की झाड़ पर चढ़ा दिए जाने वाले कर्मचारी जब इसे नहीं समझते हैं या इसके खिलाफ कुछ नहीं कर पाते हैं तो बड़े नेताओं का संरक्षण पा रहे राजनीतिक कार्यकर्ता को तो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से फायदा मिलता रह सकता है। पर वो भी अलग मुद्दा है। 

क्या हुआ – शीर्षक के तहत द टेलीग्राफ ने तारीखवार विवरण दिया है जो मुझे किसी और अखबार में पहले पन्ने पर तो नहीं दिखा। इसमें बताया गया है कि 27 मई को आपत्तिजनक बयान दिए जाने के बाद अल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर ने वीडियो क्लिप ट्वीट करते हुए पूछा था, हमें एक समुदाय और धर्म के खिलाफ बोलने के लिए घृणा फैलाने वालों की क्या जरूरत है जब हमारे पास ऐसे एंकर हैं जो यह काम न्यूज स्टूडियो से बहुत बेहतर कर सकते हैं। इसी दिन नुपुर शर्मा ने दिल्ली पुलिस को टैग करते हुए ट्वीट किया कि उनके परिवार को जुबैर के “फर्जी नैरेटिव” के कारण धमकियां मिल रही हैं। भिन्न राज्यों में शर्मा और जुबैर के खिलाफ एफआईआर हुई। भाजपा मुख्यालय से कोई टिप्पणी नहीं। 

एक जून को पैगम्बर मोहम्मद के संबंध में भाजपा प्रवक्ता नवीन जिन्दल ने एक टिप्पणी ट्वीट की। भाजपा मुख्यालय से कोई टिप्पणी नहीं। 3 जून को जुम्मे की नमाज के बाद कानपुर में प्रदर्शन और हिंसा होती है। पुलिस ने 1500 लोगों के खिलाफ एफआईआर लिखी और 36 को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पुलिस ने यह भी कहा कि शर्मा के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है। भाजपा मुख्यालय से कोई कमेंट नहीं। 4 जून को ओमान में इस टिप्पणी का विरोध होता है। खाड़ी के देशों के कुछ बाजारों से भारतीय उत्पाद निकाल दिए जाते हैं। भाजपा मुख्यालय से कोई कमेंट नहीं। 5 जून को भाजपा ने कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है और संविधान का हवाला दिया। शर्मा और जिन्दल को पार्टी से बर्खास्त किया। 

कतर ने भाजपा के बयान और कार्रवाई की प्रशंसा की पर कहा कि वह भारत सरकार से सार्वजनिक माफी की अपेक्षा करती है। लेकिन प्रधानमंत्री ने 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर कहा कि भारत ने पर्यावरण के लिए बहुत सारी अच्छी चीजें की हैं और वनों का क्षेत्रफल बढ़ा है तथा बाघ, शेर, चीता, हाथी और गैंडों की संख्या बढ़ी है। आपने यह प्रचार सुना ही होगा कि देश में नरेन्द्र मोदी का विकल्प नहीं है और यह तथ्य है कि सुषमा स्वराज के बाद देश का विदेश मंत्रालय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक रिटायर नौकरशाह संभाल रहे हैं। ऐसे में देश के अंदर की राजनीति को दुनिया की नजर में राजनीति ही रखने की जिम्मेदारी विदेश मंत्री की है और बेशक उन्हें पूरी सरकार का साथ मिल रहा होगा। पर मीडिया नहीं बताएगा तो हम आप कैसे जानेंगे?

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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