8 अप्रैल की सुबह से ही एबीपी न्यूज़ की ब्रेकिंग बनी रही इस खबर ने कोहराम मचा रखा था कि चुनाव का रुख बदल देने वाला इंटरव्यू आयेगा। इस ‘क्रांतिकारी’ इंटरव्यू की जो झलकियाँ बीच बीच में दिखाई जा रही थीं उसमें डरे सहमे और भक्तिभाव से करबद्ध बैठे दो प्रमुख न्यूज़ प्रस्तोताओं ने हालांकि यह ज़ाहिर कर दिया था कि इस हंगामे रूपी पहाड़ के नीचे किस तरह का चूहा/चुहिया मिलने वाला/वाली है।
अब इतना लोकाचार तो निभाना ही चाहिए कि जब आपको ख़बर हो गयी है कि कोई बड़ा तमाशा होने वाला है और एक रिमोट की दूरी पर उसे देखा जा सकता है तो देखना भी चाहिए। अपुन ने भी ये लोकाचार निभा दिया। लेकिन टीवी के रिमोट को तकलीफ न दी बल्कि पूरे एक घंटे से ज़्यादा वो भी लैपटॉप पर ऑनलाइन स्ट्रीमिंग करके देखा। कान में इयर फोन ज़रूर लगा लिया था ताकि आसपास मौजूद परिजनों के जनतांत्रिक अधिकारों का हनन न हो और उससे भी बड़ी बात उन पर ज्यादती न हो। फिर घर में बढ़ती उमर का एक बच्चा भी है, मैं नहीं चाहता था कि वो इस नेता के झूठ, अहंकार भरी भाषा और दर्पोन्मादी कायिक विन्यास को देखे, भले ही बच्चे बहुत समझदार होते हैं पर बुराई से जितना दूर रहें , उतना अच्छा।
खैर, अपुन ने सांगोपांग पूरा इंटरव्यू देखा, सुना और अपने इस भरोसे और लोकज्ञान को पुख्ता किया कि ‘काठ की हांडी’ बार बार नहीं चढ़ती। एक चुका हुआ नेता। बिना रीढ़ के पत्रकार और बिना किसी लायक विषयवस्तु के एक इंटरव्यू एक घंटे से ज़्यादा समय कैसे चलाया जा सकता है? अगर ये कला विकसित करना हो तो जरूर इस तरह के साक्षात्कार देखते रहना चाहिए। यह साक्षात्कार काफी मनोरंजक रहा और चूंकि तीन दिन बाद ही 2019 के आम चुनावों का पहला चरण शुरू होना था तो उस लिहाज से कुछ कुछ गंभीर अवलोकन भी हुए ही । अगर किसी ने इसे नहीं देखा और इस भरपूर मनोरंजन से महरूम रह गए हों तो उनके लिए नमो टीवी एक बढ़िया ठिकाना हो सकता है। अब तक वहाँ इस इंटरव्यू का टेप भी चढ़ चुका होगा।
दूसरा अवलोकन बड़ा मज़ेदार है कि इस साक्षात्कार का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के घोषणापत्र पर केन्द्रित हो गया। यहीं मेरा सूक्ष्म अवलोकन काम कर गया कि यह साक्षात्कार नामक विधा में जो बकैती चली वो असल में कांग्रेस को गरियाने और बिना अपना घोषणापत्र लाये खुद को बड़ा बताने का प्रहसन था (भाजपा का संकल्प पत्र साक्षात्कार के काफी बाद में आया)। देश के माननीय कार्यकारी प्रधानमंत्री ने इसे ‘टुकड़े टुकड़े गैंग द्वारा तैयार दस्तावेज़’ बताया। पत्रकारों को पूछना चाहिए था कि अगर ऐसा है तो यह देशविरोधी घोषणापत्र जारी ही क्यों होने दिया? नहीं पूछा।
मेरा तीसरा बहुत गंभीर अवलोकन मोदी की भाव भंगिमाओं में बेतहाशा खौफ का दिखलाई पड़ना रहा। यह खौफ केवल चुनाव हारने का नहीं था। चुनाव हारने के बाद उनका क्या होगा? इस बात का था। हाँ, झूठ बोलने का आत्मविश्वास बरकरार था लेकिन शब्द लड़खड़ा रहे थे। लगा जैसे ‘तीर में बुझा हुआ ज़हर’ अब अपना असर खो रहा है। और खोया भी। 8 तारीख से लेकर अब तक एक भी हिस्सा इस साक्षात्कार का वायरल नहीं हुआ। हुआ भी तो निंदा या आलोचना में। अब होता यह आया है कि मोदी के इंटरव्यू से कितना भी नाकाबिल पत्रकार एक न एक टैगलाइन निकाल ही लेता है पर इससे तो वह भी न निकल सकी। नवरात्रि के व्रत और पपीते के आहार वाली बात ने कुछ समय के लिए सुर्खी बटोरी पर लोगों ने इसे तंज और मज़ाक के लिए इस्तेमाल किया।
चौथा गंभीर और दार्शनिक अवलोकन– मोदी, राहुल गांधी की प्रेम,भाईचारे, स्वतन्त्रता, हक़ और अधिकार की सुगढ़ और सुचिन्तित भाषा से विचलित हो गए। कांग्रेस के घोषणापत्र के पहले पन्ने पर ही अध्यक्ष की तरफ से लिखते हुए राहुल गांधी ने अपने इरादे बता दिये और लिखा था कि हम ऐसा हिंदुस्तान चाहते हैं जहां हर व्यक्ति को अपनी पसंद का खान–पान, अपने लिए जीवन साथी चुनने की आज़ादी हो। इस देश में भयमुक्त वातावरण बने, किसी को देशद्रोही न कहा जाए, लोगों को भरोसे से जीता जाए न कि बंदूक के शासन से। हाशिये के समाजों को उनके संविधान प्रदत्त हक़-अधिकार मिलें। युवाओं को रोजगार और सबके लिए न्यूनतम आय की गारंटी हो… वगैरह वगैरह… सच लिखूँ तो यह प्रसंग इस पूरे साक्षात्कार का सबसे प्रभावशाली अंश रहा। साक्षात्कारकर्ता द्वय और साक्षात्कार देने वाला दोनों एक समान घबराये हुए लगे। यहाँ इस प्रसंग में एक अद्भुत तादात्म्य दिखाई दिया दोनों पक्षों में। चिंता भी एक थी अगर वाकई यह सपना देश के आवाम ने अपनी आँखों में बसा लिया तो नफरत की तिजारत 23 मई के बाद बंद हो जाएगी। यह बेचैनी एकदम साफ देखी जा सकती थी, हालांकि आज के हालात में यह सपना देखना इतना आसान नहीं और ये दोनों पक्ष इतनी आसानी से हार स्वीकार करने वाले नहीं थे और कम से कम अपनी बनाई ‘जनता’ को भरोसे में लिए रहने के पर्याप्त अस्त्र अभी इनके तरकश में थे जो शेष बचे समय में चलते रहे।
इस इंटरव्यू के आसरे पहले चरण के चुनाव सम्पन्न हुए। 11 अप्रैल को हुए 91 सीटों पर चुनावों में इनकी मैट्रिक्स बुरी तरह बिगड़ती नज़र आई। आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, असम, महाराष्ट्र, ओडिशा, सिक्किम, अंडमान निकोबार, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि जिन राज्यों में कुल 91 सीटों पर चुनाव हुए उनमें मोदी लहर पूरी तरह गायब रही। मतदाता रूपी जनता मौनस्थ हो गयी और मतदान में वह जोश नहीं दिखा। यानी जनता अपने काम पर लग गयी। इससे मोदी एंड कंपनी की बौखलाहट बढ़ गयी।
19 अप्रैल को फिर देखता हूँ कि मोदी टाइम्स नाउ पर बैठे हैं। नविका कुमार और राहुल शिवशंकर उनके आवास पर हैं। मोदी दरवाजा खोलते हैं। दुआ सलाम होती है। और बागों में टहलते, खड़े होते, बैठते-बैठते यह एकालापी इंटरव्यू भी पूरे 1 घंटे और 7 मिनट तक चला। इस बार साक्षात्कारकर्ता द्वय थोड़ा और शर्मिंदा भाव में नज़र आए। मुझे लगा जैसे जब दुआ सलाम हो रही थी तब मोदी ने आँखों ही आँखों में एक मायूसी व्यक्त की हो कि– होता क्या है ऐसे इंटरव्यू से? गणित तो पूरा बिगड़ा बैठा है। खबरें ठीक नहीं आ रही हैं। और जवाब में इन दोनों पत्रकारनुमा प्राणियों ने व्यग्रता से कहा हो– अब हम कर तो रहे हैं सर। चलिये, अभी तो पाँच और चरण हैं, आप अपना काम करिए हम अपनी तरफ से सब कुछ करेंगे। तो इस भाव-भाषा से शुरू हुए इस इंटरव्यू में मोदी पूरी फुर्ती से खेले, बिना इसकी परवाह किए कि वे क्या हैं और क्या हुए जा रहे हैं। जब जुगलबंदी अपने चरम पर आयी तो लगा जैसे बीस ओवरों में मैच में यह इक्कीसवां ओवर था जिसमें आउट होने का डर नहीं था। राहुल शिवशंकर ने इसी इक्कीसवें ओवर में थोड़ा टफ गेंदें फेंकीं। जिन पर मोदी ने पूरी निर्लज्जता से छक्के–चौके जड़े। बेरोजगारी के सवाल पर तो मेरा आत्मविश्वास से लबरेज सूक्ष्म अवलोकन सराहनीय होना चाहिए कि यह आदमी बहुत गंभीर हीन भावना और कुंठा का शिकार है। कुंठा जब सर चढ़ कर बोलती है तब वह सामने खड़े व्यक्ति की बेइज्जती सबसे पहले करती है। मोदी ने कहा कि ये ‘जो आप लोगों का कुनबा यहाँ खड़ा है ये सब सरकारी डाटा में बेरोजगार होगा लेकिन टाइम्स नाउ इनसे फ्री में काम नहीं लेता होगा, कुछ तो देता होगा’ ये बात मोदी ने टाइम्स नाउ की टीम के कैमरामैन आदि के लिए कही। पूरी ढिठाई से ये दोनों पत्रकार उनकी हाँ में हाँ मिला गए।
मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी प्रज्ञा सिंह के मामले में जिस घटिया अंदाज़ में मोदी ने उल्टा कांग्रेस को ललकार दिया वह शॉट तथाकथित भक्त मंडली को पसंद आया होगा पर मेरे अवलोकन के हिसाब से वो हिट विकेट था क्योंकि देश की जनता का विवेक अभी इतना नहीं मरा है कि वो ‘शहादत’ और ‘आतंकवाद’ के बीच का फर्क भूल चुकी हो। हेमंत करकरे को लेकर पूरे देश की सामूहिक सहानुभूति है और प्रज्ञा सिंह के जुगुप्सा जगाने वाले अश्लील और भोंडे किस्से इसे खत्म नहीं कर सकते। और भी उल्लेखनीय प्रसंग आए इसमें, जैसे ‘मोदी का चैलेंज खुद मोदी से है’; माल्या, नीरव, मेहुल आदि इसलिए भागे क्योंकि यहाँ एक मजबूत सरकार है; कुछ ऐसी ही उलटबासियों के साथ दूसरे चरण का यह इंटरव्यू भी समाप्त हुआ।
उम्मीद करिए कि तीसरे चरण से पहले या बाद में रजत शर्मा भी अपनी किसी साथी पत्रकार के साथ एक और शाहकार पेश करेंगे या हो सकता हो सुधीर चौधरी की टीम, अंतिम चरण में अर्नब होंगे या अंजना ओम कश्यप के साथ रोहित सरदाना! अभी तय करना मुश्किल है क्योंकि इस बीच अमीश देवगन को भी कहीं फिट होना है!
देखते रहिए, अगर न देख पाएँ तो बहुत अफसोस न करिएगा, कुछ खास नुकसान नहीं होगा!
लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और समसामयिक विषयों पर मीडियाविजिल के स्तंभकार हैं