अख़बारनामा: पाक के अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म दिखता है तो भारत के हाल पर चुप क्यों सरकार,नहीं पूछते अख़बार !

"अल्पसंख्यकों के मामले में सरकार के दो चेहरे"-'टेलीग्राफ ने लिखा, जबकि दूसरे अखबारों ने हिंदू-मुस्लिम कर दिया

 

पाकिस्तान के मामले में हस्तक्षेप पर टेलीग्राफ की खबर भारत सरकार के दो चेहरे दिखाती है; ट्वीटर पर उसके मंत्री ने कहा, ‘मोदी का भारत’ नहीं है पर यहां के अखबार इसे पचा गए

 

संजय कुमार सिंह

आज के अखबारों में पाकिस्तान में दो लड़कियों का अपहरण कर उनका धर्म बदलने और इसके विरोध में वहां बड़ी संख्या में एक समुदाय के लोगों के प्रदर्शन की खबर और उसपर भारत की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की कार्रवाई के बाद इसपर पाकिस्तान की टिप्पणी आदि की खबर प्रमुखता से छपी है। अलग-अलग अखबारों ने इसे कैसे प्रकाशित किया है ये देखना दिलचस्प है। आइए पहले समझ लें कि मामला है क्या? फिर देखिए कि इसपर पाकिस्तान के सूचना मंत्री ने क्या ट्वीट किया और हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने क्या जवाब दिया। इससे आप पूरे मामले को समझ सकेंगे और फिर देखिए कि आपके अखबार ने इसे कैसे छापा है। आगे मैं यह भी बताउंगा कि अल्पसंख्यकों से संबंधित मामलों में हमारी सरकारी और हमारा मीडिया कैसे व्यवहार करता है।

अमर उजाला में मुख्य खबर के साथ प्रकाशित एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार सिंध प्रांत के घोटकी की रहने वाली 13 और 15 वर्षीया बहनों का कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया। इसके कुछ समय बाद एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक मौलवी दोनों लड़कियों का निकाह कराते हुए दिख रहा है। एक अन्य वीडियो में दोनों नाबालिगों को यह कहते हुए सुना गया कि उन्होंने अपनी इच्छा से इस्लाम कबूल किया है। वहीं पाकिस्तान में इस घटना को लेकर रविवार को बड़ी संख्या में हिन्दू समुदाय के लोगों ने प्रदर्शन किया और मामले की जांच व दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने सिंध प्रांत में दो हिन्दू किशोरियों के अपहरण की घटना पर संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं। सूचना मंत्री फवाद ने ट्वीट किया, प्रधानमंत्री ने सिन्ध के मुख्यमंत्री से हिन्दू लड़कियों को अगवा कर उन्हें पंजाब ले जाने और उनका धर्म परिवर्तन कराने की घटना की जांच के आदेश दिए हैं। साथ ही इमरान ने राज्य सरकारों से ऐसी घटनाओं को दोबारा होने से रोकने के लिए ठोस कदम उठाने को कहा है। अपहरण की घटना के बाद हिन्दू लड़कियों के भाई ने एफआईआर दर्ज कराई है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज यह खबर लीड है। अखबार के मुताबिक पाकिस्तान के सिन्ध स्थित घोटकी जिले की यह खबर उसने 23 मार्च के अपने अंक में छापी थी। इसके बाद ही भारतीय मंत्री ने पाकिस्तान को पत्र लिखा तथा तथा ट्वीटर पर इसका खुलासा किया तो ट्वीटर पर ही उनकी पाकिस्तान के मंत्री से झड़प हुई। टीओआई में यह खबर लीड है और शीर्षक है, टीओआई रिपोर्ट से सुषमा और पाकिस्तान के मंत्री के बीच ट्वीटर पर झड़प।

नवोदय टाइम्स ने बताया है कि इस मामले में भारत और पाकिस्तान के मंत्रियों के बीच ट्वीट वार चला। इसके मुताबिक, पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने ट्वीट कर कहा, मैम (सुषमा स्वराज) यह पाक का आंतरिक मामला है बाकी मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि यह मोदी का भारत नहीं है। यह इमरान खान का नया पाकिस्तान है जहां हमारे झंडे का सफंद रंग सबको समान रूप से प्रिय है। उम्मीद करता हूं कि आप इसी तत्परता से भारत के अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए भी खड़ी होंगी। जवाब में हमारी विदेश मंत्री सूषमा स्वराज का ट्वीट, श्रीमान फवाद चौधरी मैंने इस्लामाबाद के भारतीय उच्चायोग से दो हिन्दू बच्चियों के (को) अगवा करने और जबरन उन्हें इस्लाम कबूल करवाने पर रिपोर्ट भर मांगी थी। यह आपको नागवार गुजरने के लिए काफी था। यह दिखाता है कि आपको अपनी गलती समझ में आ गई है।

दिल्ली में हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने इसे लीड बनाया है, मुख्य शीर्षक का अनुवाद इस प्रकार होगा, भारत ने पाकिस्तान में हिन्दू बहनों के अपहरण और धर्मांतरण का मामला उठाया। उपशीर्षक है, सुषमा स्वराज के साथ ट्वीटर पर विवाद में पाकिस्तान के मंत्री ने कहा, “मोदी के भारत जैसा नहीं है”। इसके साथ एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड का शीर्षक है, दिल्ली का स्टैंड सुसंगत या पहले जैसा ही है। इसमें कहा गया है, वैसे तो नई दिल्ली ने इ्स्लामाबाद से हमेशा कहा है कि वह अपने नागरिकों का ख्याल रखे पर यह पाकिस्तान के अपने हित में है कि वह ऐसा करे। अखबार ने भारत सरकार को अपने अल्पसंख्यकों के प्रति उसकी भूमिका की याद नहीं दिलाई है।

इस खबर को कोलकाता के द टेलीग्राफ ने ही एक दमदार अखबार की तरह छापा है। शीर्षक ही सभी अखबारों से अलग है, हिन्दी में होता तो कुछ इस तरह लिखा जाता, “अल्पसंख्यकों के मामले में सरकार के दो चेहरे”। अनीता जोशुआ की खबर बताती है कि पाकिस्तान का यह मामला भारत ने कैसे लपक लिया और क्यों भारतीय अखबारों में पहले पन्ने पर छा गया है। नई दिल्ली डेटलाइन की खबर इस प्रकार है, (अनुवाद मेरा) विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने रविवार को ट्वीट किया कि उन्होंने पाकिस्तान में दो अवयस्क हिन्दू लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में रिपोर्ट मांगी है। इस सार्वजनिक घोषणा से उन्होंने भारत में अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों खास कर हाल में गुड़गांव में जो हुआ उस पर नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा आदतन बरती जाने वाली चुप्पी के लिए सरकार को राहत दी।

सुषमा स्वराज ने लिखा था, मैंने पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त से कहा है कि इसपर रिपोर्ट भेजें। अखबार के मुताबिक नई दिल्ली ने इस्लामाबाद को भेजे गए एक नोट में ऐसी घटनाओं पर चिन्ता जताई थी और पाकिस्तान के अपने नागरिकों खासकर वहां के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई करने की मांग की थी। भारत पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार के मुद्दे को समय-समय पर उठाता रहा है जबकि 1972 के शिमला करार के अनुसार एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति है। ऐसे में पाकिस्तान भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर कोई टिप्पणी करे तो भारत चिढ़ता रहता है।

दैनिक भास्कर 
हिन्दू क्षमा कीजिएगा हिन्दी अखबारों में इस खबर के सभी पहलुओं को एक साथ पहले ही पन्ने पर रखने का काम दैनिक भास्कर ने किया है हालांकि “मोदी के भारत” का जिक्र प्रमुखता से नहीं है और लगभग अच्छी प्रस्तुति है। अव्वल तो शीर्षक में हिन्दू (या मुस्लिम या किसी भी धर्म का नाम लिखना ही गलत है और कायदे से, कोशिश होनी चाहिए कि धर्म उजागर न हो। पर अब ऐसा नहीं होता है और भास्कर ने अपनी अच्छी प्रस्तुति के बावजूद शीर्षक में हिन्दू लिखा है जबकि कोई जरूरत नहीं थी और नहीं लिखने से भी भारत में हिन्दी अखबार का कोई पाठक इस मुगालते में तो नहीं ही होगा कि पाकिस्तान की मुस्लिम लड़कियों की चिन्ता यहां से की जाएगी। यह मेरा निजी मत है। गलत हो सकता हूं। फिर भी पत्रकारिता की दृष्टि से धर्म का नाम शीर्षक में तो नहीं ही होना चाहिए। कम से कम ऐसे मामलों में जब जरूरी न हो।

दैनिक जागरण 
हिन्दू बेटियों की रक्षा में उतरीं सुषमा (छह कॉलम की लीड) 
इसके साथ दो खबरें हैं। एक का शीर्षक है – पाकिस्तान में अपहरण, जबरन धर्मांतरण व निकाह पर मांगी रिपोर्ट। दूसरी का – 1000 गैर मुस्लिम लड़कियों का हर साल जबरन धर्मांतरण दोनों जयप्रकाश रंजन की बाईलाइन खबरें हैं। इस खबर में हाईलाइट की गई सूचनाएं हैं सख्त नीति और पहली बार उच्चायोग से मांगी रिपोर्ट।

अमर उजाला 
धर्मांतरण विषय के तहत (पांच कॉलम में बॉटम)
फ्लैग शीर्षक है – भारत की कड़ी प्रतिक्रिया पर तिलमिलाया पड़ोसी देश, कहा – यह पाकिस्तान का आंतरिक मामला मुख्य। मुख्य शीर्षक है – हिन्दू बहनों के अपहरण पर सुषमा ने पाक मंत्री को लगाई लताड़।

राजस्थान पत्रिका 
पाकिस्तान में अगवा नाबालिग हिन्दू बहनों का धर्म परिवर्तन, जबरन शादी के बाद हंगामा – मुख्य शीर्षक है (पांच कॉलम में लीड)। फ्लैग शीर्षक है, सियासत फिर गर्म : अल्पसंख्यकों का व्यापक विरोध प्रदर्शन, इमरान ने दिए जांच के आदेश इसके साथ सिंगल कॉलम का शीर्षक है, सुषमा ने मांगी रिपोर्ट, पाक मंत्री बोले हमारा आंतरिक मामला। मुख्य खबर के साथ तीन कॉलम का एक और शीर्षक है, बंदूक की नोक पर अपहरण, एफआईआर दर्ज।

नवोदय टाइम्स 
मुख्य शीर्षक है – सुषमा ने मांगी रिपोर्ट, पाक मंत्री को लगाई लताड़ (दो कॉलम, फोल्ड के नीचे), इंट्रो है, किरकिरी होती देख इमरान खान ने दिए सुरक्षित बरामदगी के आदेश, एक और खबर है, आतंकवाद खत्म करने के लिए कुछ भी करेंगे। (ट्वीट वार की प्रस्तुति बेहतर है और ऊपर चर्चा कर का हूं)।

हिन्दुस्तान 
शीर्षक है, पाक में हिन्दू धर्मांतरण पर बवाल मचा (कायदे से इसे, “पाकिस्तान में धर्मांतरण पर बवाल” लिखना चाहिए था। और मतलब तब भी यही निकलता। लेकिन अभी विषय वह नहीं है)। एक लाइन के इस शीर्षक के साथ तीन कॉलम का एक बॉक्स है और उसमें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की फोटो के साथ ट्वीटर पर चली चर्चा का संक्षिप्त रूप है लेकिन शीर्षक लगाया गया है, “सुषमा का पाक मंत्री को करारा जवाब”। (चार कॉलम लीड से नीचे फोल्ड से ऊपर)

नवभारत टाइम्स 
खबर का शीर्षक है, अगवा हिन्दू लड़कियों के लिए पाक पर स्ट्राइक। (सिंगल कॉलम) खबर के साथ दो लड़कियों की फोटो है जिसका कैप्शन है, सिंध प्रांत में होली पर दो लड़कियों को अगवा कर जबरन निकाह करवाया गया। पिता थाने के बाहर बैठ गया और कहा – चाहे मुझे मार दो, लेकिन मैं हटूंगा नहीं। फोटो से समझ नहीं आ रहा है कि यह फोटो उन्हीं बहनों की है या प्रतीकात्मक है। दूसरे अखबारों से पता चलता है कि उन्हीं लड़कियों की है। राजस्थान पत्रिका ने इन लड़कियों के पिता की तस्वीर छापी है। अखबार में कैप्शन के साथ एक पुरुष की छोटी सी तस्वीर भी दिख रही है हालांकि मैं ना पहचान पाया ना समझ पाया कि किसकी है। उम्मीद है, धरना देने वाले पिता की ही होगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )

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