‘मन की बात’ में कुत्तों की चर्चा और ज्ञान की बातें !

अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में आज पहले पन्ने पर छपने वाला कोट है, जेईई – एनईईटी के परीक्षार्थी चाहते थे कि प्रधानमंत्री परीक्षा पे चर्चा करें पर प्रधानमंत्री ने खिलौने पे चर्चा की – राहुल गांधी। इसके साथ बॉक्स में खबर है, लाख से ज्यादा डिसलाइक (नापसंद)। इसमें कहा गया है, भारतीय जनता पार्टी के आधिकारिक यू ट्यूब चैनल पर अपलोड किए गए नरेन्द्र मोदी के ‘मन की बात’ को (आधी रात के बाद सवा बजे तक) 1.80 लाख डिसलाइक मिले हैं और 17,000 (सत्रह हजार) लाइक मिले हैं। प्रधानमंत्री के किसी सोशल मीडिया अपलोड को इतने बड़े पैमाने पर नापसंद किया जाना दुर्लभ है। कुछ लोगों का मानना है कि यह महामारी के बीच आईआईटी और मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए होने वाली परीक्षाओं- जेईई और एनईईटी का आयोजन करने का असर हो सकता है।

नीरो ने आजमाया हो या नहीं, पर नरेन्द्र मोदी ने तो डॉग विसिल बजा दिया ( कुत्तों के लिए हाई पिच वाली एक खास तरह की सीटी जो बजाने पर आम आदमी को सुनाई नहीं देती पर कुत्ते सुन लेते हैं। इससे अल्ट्रा सोनिक ध्वनि निकलती है। इसका उपयोग पानी के जहाज के लिए भी होता है। यहां इसका अर्थ हुआ एक ऐसा राजनीतिक संदेश जो कुछ खास लोगों के लिए ही हो या आबादी के एक वर्ग को ही समझ में आए)। और इसके साथ फिर अंग्रेजी में वाह! भौं-भौं। खबर की शुरुआत होती है, रूपकों के प्रधानमंत्री के चुनाव और समय या टाइमिंग की उनकी समझ पर कोई दोष नहीं निकाला जा सकता है। (देश की) अर्थव्यवस्था जब (चौपट हो चुकी है) कुत्तों के पास चली गई है (सामान्य अनुवाद यही होगा !!) और कोविड19 के मामले में सरकार डॉगहाउस में है (मुश्किल में है, कुछ नहीं कर पा रही है)।

तब नरेन्द्र मोदी ने इतवार को अपने रेडियो संबोधन, ‘मन की बात’ का बड़ा हिस्सा देसी कुत्ते पालने जैसी सलाह देने पर किया। इनके बारे में बताया कि उनमें “चौंकाने वाला सौंदर्य और गुणवत्ता” होती है। इसका घोषित उद्देश्य आत्म निर्भर भारत को सच करने की डॉग्ड (कुत्ताकृत नहीं हठी) कोशिश और इसमें किसी भी क्षेत्र को इसके प्रभाव से वंचित नहीं रखना शामिल है … और इसके बाद कुत्तों पर व्याख्यान। आप यकीन करें या नहीं, मैंने आज तक मन की बात का एक भी एपिसोड नहीं सुना है। मेरी दिलचस्पी टेलीग्राफ की रिपोर्टिंग में होती है, मन की बात सुनने या जानने में नहीं। हालांकि टेलीग्राफ ने विस्तार से कुत्तों की हिन्दी की चर्चा की अंग्रेजी में चर्चा की है।

मेरा शुरू से मानना रहा है कि ‘मन की बात’ जैसे कार्यक्रम को अखबारों में कवर करने की जरूरत नहीं है। जिसे मन की बात सुननी होगी वह रेडियो पर सुन लेगा। उन्हीं बातों को 24 घंटे बाद अखबारों में देना पाठकों को बासी या पुराना माल देना है। अगर मेरी यादद्दाश्त सही है तो शुरू में अखबारों में इसकी चर्चा नहीं होती थी और जब हुई तो मैंने लिखा भी था। पर अब इसकी चर्चा अखबारों में दूसरे कारण से हो रही है। द टेलीग्राफ ने आज मन की बात के बाद पहले पन्ने पर जो खबरें छापी हैं उनका शीर्षक है नीरो वाले फांट में इस प्रकार है, और दूसरी खबरें जो इंतजार कर सकती हैं क्योंकि महत्वपूर्ण नहीं हैं और तुच्छ है। ऐसी एक खबर का शीर्षक है नियंत्रण करने के बाद की स्थिति में, मौतें कम करने पर फोकस और दूसरी खबर है, निजी चिकित्सकों की सहायता करने की अपील।



 

 

 

संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार हैं और अनुवाद के क्षेत्र के कुछ सबसे अहम नामों में से हैं।

 



 

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