ट्रम्प-पुतिन की बैठक को पश्चिमी मीडिया ने कैसे देखा और दिखाया!

प्रकाश के रे 

दुनिया के दो सबसे ताकतवर देशों- अमेरिका और रूस- के मुखिया- डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन- हमेशा से अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की मीडिया के निशाने पर रहे हैं. यह तथ्य इसलिए और दिलचस्प बन जाता है कि इन नेताओं को असरदार पॉपुलर मिथक बनाने में भी मीडिया की बड़ी भूमिका रही है. ट्रंप 1980 के दशक से ही अमेरिकी मीडिया का भरपूर कवरेज पाते रहे हैं. उनसे तभी पूछा जाता था कि क्या वे कभी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेंगे. सोवियत विघटन के बाद रूसी राजनीति और अर्थव्यवस्था के उथल-पुथल के दौर में पुतिन रूसी मीडिया की नजर में तारणहार हुआ करते थे. दूसरे चेचन्या युद्ध के बाद तो उनकी छवि मसीहाई ही बना दी गयी थी. जैसे-जैसे रूसी राजनीति पर पुतिन का शिकंजा मजबूत होता गया, वैसे-वैसे मीडिया पर भी लगाम बढ़ती गयी. ज्यादातर अखबार, वेबसाइट और चैनल सरकार के परोक्ष-प्रत्यक्ष नियंत्रण में हैं तथा कुछ तेजतर्रार पत्रकारों की हत्या के पीछे भी पुतिन का हाथ बताया जाता है.

राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार अभियान के समय से ही ट्रंप और अमेरिकी मीडिया का छत्तीस का आंकड़ा बना हुआ है. ट्रंप लगातार मीडिया को देश का दुश्मन बताते आये हैं तथा व्हाइट हाउस के प्रेस कॉन्फ्रेंस अक्सर तनावपूर्ण माहौल में हुआ करते हैं. कुछ दिन पहले ब्रिटेन में प्रधानमंत्री थेरेसा मे के साथ पत्रकारों के साथ बात करते हुए ट्रंप ने फेक न्यूज कहते हुए सीएनएन के रिपोर्टर से सवाल लेने से मना कर दिया था. उसी कॉन्फ्रेंस में उन्होंने मे के साथ चुटकी ली कि ब्रिटिश मीडिया अमेरिकी मीडिया से अच्छा है. जब वे हेलसिंकी आ रहे थे, तो उन्होंने ट्वीटर के जरिये फिर अमेरिकी मीडिया पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि चाहे वे बैठक में जितना अच्छा करें और रूस की गलतियों-बुराइयों के बदले मॉस्को के साथ सेंट पीटर्सबर्ग भी ले लें, तब भी मीडिया उन्हें खराब ही बतायेगा. ट्रंप ने इन ट्वीटों में फिर से मीडिया को लोगों का दुश्मन बताया.

बहरहाल, ट्रंप और पुतिन के मीडिया से रिश्तों पर बहुत-कुछ लिखा और कहा गया है. आगे भी इस पर चर्चा होती रहनी चाहिए तथा स्वतंत्र मीडिया का आग्रह बना रहना चाहिए. लेकिन हेलसिंकी शिखर सम्मेलन के बहाने मीडिया के गैरजिम्मेदाराना, लापरवाह और पूर्वाग्रहग्रस्त रवैये पर रौशनी डालना भी जरूरी है.

राष्ट्रपति पुतिन हेलसिंकी तयशुदा वक्त से कुछ देर से पहुंचे और राष्ट्रपति ट्रंप को भी होटल से बैठक की जगह राजमहल जाने में देरी हुई. इस बात का पश्चिमी मीडिया ने खूब बतंगड़ बनाया और कह दिया कि पुतिन ने मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने के लिए जानबूझ कर देरी की, जो कि उनका एक कूटनीतिक पैंतरा रहा है. सीधी सी बात है कि घंटे-सवा घंटे की देरी कोई मसला नहीं होना चाहिए था, खासकर तब कि पुतिन मॉस्को में चल रहे फुटबॉल विश्व कम के फाइनल मैच में थे और उनके मेहमानों में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्राँ के साथ कोएशियाई राष्ट्रपति कोलिंदा ग्रैबर-कितारोविच भी थीं. उधर फॉक्स जैसे ट्रंप-समर्थक अमेरिकी चैनलों ने अपने राष्ट्रपति की इस बात के लिए प्रशंसा करनी शुरू कर दी कि होटल से महल जाने में देरी कर ट्रंप ने पुतिन को करारा जवाब दिया है. सोचिये, अमेरिका के बड़े मीडिया ब्रांड घंटों इसी पर बात करते रहे. चलिये, देर हुई, बैठक देर तक चली, तो जाहिर था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी देरी होगी. हेलसिंकी में मौजूद पत्रकारों ने उस हॉल में बैठ कर दनादन ट्वीट करना शुरू कर दिया और वहां भी आयोजकों पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि देर क्यों हो रही है. इसमें अमेरिकी अखबारों के रिपोर्टर आगे थे.

हेलसिंकी में दो उल्लेखनीय घटनाएं हुईं, जो मीडिया के लिहाज से बेहद अहम हैं. शहर के एक बड़े फिनीश भाषा के अखबार ‘हेल्सिगिन सानोमत’ ने हवाई अड्डे से महल के रास्ते में 300 बड़े बिलबोर्ड खरीदे और उन पर ट्रंप व पुतिन के मीडिया-विरोधी रवैये के खिलाफ और प्रेस की आजादी के पक्ष में संदेश लिखवाये. दूसरी घटना प्रेस कॉन्फ्रेंस के भीतर घटी. पत्रकारों में अमेरिकी अखबार द नेशन का प्रतिनिधित्व कर रहे सैम हुसैनी को फिनलैंड के सुरक्षाकर्मियों और अमेरिकी सेक्रेट सर्विस के एजेंटों द्वारा जबरन कॉन्फ्रेंस से बाहर निकाल दिया गया. हुसैनी वाशिंग्टन की संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एक्यूरेसी के संचार निदेशक हैं और द नेशन के लिए लिखते रहे हैं. उन पर आरोप है कि वे साथी पत्रकारों को परेशान कर रहे थे. वीडियो में दिखायी दे रहा है कि उनके हाथ में एक कागज है जिस पर बड़े अक्षरों में लिखा है- परमाणु हथियार (प्रतिबंध) संधि. कॉन्फ्रेंस से उनके निकाले जाने पर वहां मौजूद पत्रकारों ने न तो कोई विरोध जताया और न ही उन्हें वापस लाने की कोई कोशिश की.

 

अब आते हैं प्रेस कॉन्फ्रेंस में. जो भी व्यक्ति रूस और अमेरिका संबंधों से परिचित है, वह समझ सकता है कि अमेरिकी चुनाव में रूसी दखल के कथित आरोप, जर्मन-रूस तेल पाइप, सीरिया संकट, ईरान और दक्षिण कोरिया के परमाणु करार, क्राइमिया और आर्थिक प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर ही सवाल-जवाब होंगे, लेकिन जब ट्रंप जैसा बड़बोला और पुतिन जैसा चालाक नेता आपके सामने हों, तो आपके सवाल में धार बहुत होनी चाहिए. ऐसे प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाते भी तो बड़े पत्रकार ही हैं. परंतु, एक भी सवाल ऐसा नहीं था जो पहले कई बार इन नेताओं से न पूछा गया हो या उन्होंने इसका बार-बार उत्तर नहीं दिया है. दोनों नेताओं के लिए यह प्रेस कॉन्फ्रेंस बच्चों का खेल ही साबित हुआ और वे अपने जवाब दुहरा कर निकल लिये. पत्रकारों के सवालों ने ट्रंप और पुतिन को घेरने के बजाये उनकी छवियों को मजबूत करने का काम ही अंजाम दिया है.

अमेरिकी चुनाव में रूसी दखल पर अमेरिकी फेडरल ब्यूरो के रिपोर्ट पर पुतिन ने कह दिया कि वे भी जासूस रहे हैं और जानते हैं कि डोजियर कैसे बनाये जाते हैं. ट्रंप ने कहा कि उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को बड़े अंतर से हराया है. दोनों नेताओं ने इस पर हामी भरी कि संयुक्त जांच हो. चुनाव में एलेक्टोरल कॉलेज में ट्रंप को बड़ी बढ़त रही तो, पॉपुलर वोट में क्लिंटन करीब तीस लाख वोटों से आगे रही थीं. अब ऐसे में हस्तक्षेप करने का हिसाब कैसे लगाया जाये? डेमोक्रेट पार्टी से संबंधित जो आरोप रहे हैं, उनका क्या हुआ? इसी संदर्भ में एक मूर्खतापूर्ण सवाल पुतिन से यह पूछा गया कि क्या उनके पास ट्रंप से जुड़ी कोई आपत्तिजनक चीज है. पहले भी अमेरिकी अखबारों में यह गॉसिप छपता रहा है कि कभी ट्रंप के मॉस्को दौरे में रूसी एजेंटों ने होटल के कमरे में कोई वीडियो बना लिया था. देखिये, आजाद पश्चिमी मीडिया के सरोकार कितने गहरे हैं. ट्रंप के विरोध में मीडिया और डेमोक्रेट पार्टी का एक तबका गहरे रूस-विरोध की ग्रंथि से पीड़ित हो चुका है. साउथ कैरोलाइना के सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने तो पुतिन द्वारा ट्रंप को दिये गये फुटबॉल पर ही शक जाहिर कर दिया कि इसमें माइक्रोफोन लगा हो सकता है.

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से सबसे परेशान हुआ मीडिया का वह हिस्सा, जो अब तक भयानक रूस और चीन विरोधी तथा अमेरिकी हमलों का पक्षधर रहा है. सीएनएन के स्टार एंकर और इराक युद्ध के बदनाम एंबेडेड पत्रकार एंडरसन कूपर और क्रिस्टीन अमनपोर ने ट्रंप के प्रदर्शन को शर्मनाक बताया, तो एक अन्य वरिष्ठ एंकर वुल्फ ब्लिट्जर ने कह दिया कि रूसी बहुत खुश हो रहे होंगे. इसी नेटवर्क के मैथ्यू चांस इस बैठक को रूस की जीत बता रहे हैं. ओबामा के कार्यकाल में सीआइए के निदेशक रहे जॉन ब्रेनन आजकल एमएसएनबीसी नेटवर्क के साथ जुड़े हुए हैं. उन्होंने तो ट्रंप के बयानों को भारी अपराध और राजद्रोह तक बता दिया. उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी के देशभक्तों को ललकारा और कह दिया कि ट्रंप अब पूरी तरह से पुतिन की जेब में है. इस नेटवर्क ने कुछ पुराने अधिकारियों को चर्चा के लिए बुलाया था जिसमें ओबामा प्रशासन के तहत रूस की प्रभारी रह चुकीं एवेलिन फरकास भी एक थीं. उन्होंने ट्रंप को निंदनीय बताते हुए लोकतंत्र विरोधी बता दिया. इन्होंने अपने बारे में यह भी याद दिलाया कि वे 1956 में सोवियत अत्याचार से भागे हंगरी के शरणार्थियों की वंशज हैं. अब यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है कि आज भी अमेरिका का एक बड़ा तबका पूर्व सोवियत संघ और पुतिन के रूस से आतंकित है जिसका कोई मतलब नहीं है.

ओबामा के कार्यकाल के दौरान 2012 से 2014 तक रूस में अमेरिकी राजदूत रहे माइकल मैकफॉल ने कहा कि इस तरह से बात करने वाला कोई राष्ट्रपति उन्होंने पहले नहीं देखा. रूस और पुतिन को लेकर अमेरिकी फोबिया इतना गहरा है कि ट्रंप का घनघोर समर्थक माना जाने वाला फॉक्स नेटवर्क भी राष्ट्रपति की आलोचना से अपने को न रोक सका. फॉक्स बिजनेस के एंकर नील कावुटो ने अपना क्षोभ जताया कि चुनाव में दखल के मसले पर ट्रंप को कड़ा रवैया अपनाना चाहिए था. इसी नेटवर्क में रिपोर्टर एब्बी हंटस्मैन ने ट्वीट किया है कि समझौते का यह कोई तरीका नहीं है कि आप अपने लोगों को बस के नीचे डाल दें. एब्बी हंटस्मैन के पिता जोन हंटस्मैन फिलहाल रूस में अमेरिकी राजदूत हैं. एक अन्य एंकर ब्रेट बायर ने बैठक के हासिल पर सवाल उठाया और ट्रंप विरोधी रिपब्लिकन सीनेटरों को पैनल में बुला कर चर्चा की. लेकिन हेलसिंकी से रिपोर्ट कर रहे फॉक्स के हैनिटी समेत अन्य रिपोर्ट ट्रंप की बड़ी प्रशंसा कर रहे थे.

द न्यूयॉर्क टाइम्स की तीन बड़ी खबरें बैठक से हैं. पहली हेडलाइन में कहा गया है कि 2016 के चुनाव को लेकर ट्रंप ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी पर सवाल उठाये. दूसरी हेडलाइन बता रही है कि दोनों नेताओं के मुलाकात को संभव बनाने के लिए परदे के पीछे सक्रिय मरिया बुतिना पर रूसी एजेंट होने के आरोप लगे हैं. तीसरी खबर में मार्क लैंडर ने इस बात का विश्लेषण किया है कि राष्ट्रपति ने विदेश में व्यवहार करने के तौर-तरीकों को ताक पर रख दिया है.

उधर रूसी मीडिया ने भी अमेरिकी मीडिया का थोड़ा मजा ले लिया है. एनटीवी चैनल के रिपोर्टर इगोर कोलिवानोव ने तंज किया है कि अमेरिकी मीडिया को एक ही खबर में रूचि है और वह है चुनाव में दखल का मुद्दा. एसोसिएट प्रेस के एंगेला चार्लटन और जिम हिंट्ज का आकलन है कि सरकारी चैनल रूसिया-1 ने अपनी खबरों में पुतिन के बयान के हिस्से ज्यादा दिखाये और ट्रंप के कम. इस चैनल पर बात करते हुए रूसी संसद के ऊपरी सदन में विदेश मामलों की समिति के प्रमुख कोंस्तांतिन कोसाचेव ने कहा कि उन्होंने दो ऐसे नेताओं को देखा, जो आपस में सहमत हो सकते हैं. कोमसोमोल्स्काया प्रावदा अखबार ने ट्रंप के रूसी सरकार से संबंधों की अमेरिकी जांच को खारिज करते हुए उनकी प्रशंसा की कि वे अपने आभिजात्यों के विरोध और मीडिया की उछल-कूद के बावजूद पुतिन से मिले. यूरोपीय संघ और रूस के तल्ख रिश्तों की छाप भी रूसी मीडिया के आकलनों में दिखती है. अनेक अखबारों और चैनलों ने ट्रंप की ब्रिटेन यात्रा और ब्रसेल्स में नाटो बैठक को हेलसिंकी बैठक से कमतर बताने की कोशिश की है. सरकारी चैनल वन पर टिप्पणी थी कि लंदन और ब्रसेल्स तो बस हेलसिंकी के रास्ते में पड़ रहे थे.

अमेरिकी राजनीति और विश्व-व्यवस्था में उथल-पुथल की हलचलों का एक ठिहा मीडिया भी बना हुआ है. देखने की बात यह है कि कथित रूप से अपने को स्वतंत्र कहने वाला अमेरिकी-पश्चिमी मीडिया अपने पूर्वाग्रह के चश्मे से ही देश-दुनिया को देखेगा या फिर हलचलों की तहों को टटोलने की कोशिश भी करेगा. आर्थिक उदारवाद की परचेबाजी करता मीडिया कहीं यह तो नहीं भूल गया कि इस उदारवाद ने सामाजिक रूप से दुनिया में कई दरारें पैदा कर दी हैं जिसके अच्छे-बुरे नतीजों के इर्द-गिर्द ही सियासी बिसात बिछ रही है. सवा महीने के अंतराल में उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग-उन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात कर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में नये आयाम जोड़ दिये हैं. ईरान परमाणु करार, यूरोपीय संघ और चीन से व्यापार युद्ध, विभिन्न संधियों की समीक्षा आदि अनेक ऐसे फैसले हैं जो ट्रंप ने लिये हैं. इन सबके संतुलित विश्लेषण की जरूरत है. बेचैनी और बौखलाहट में टिप्पणी करने से मीडिया को परहेज करना चाहिए.


लेखक मीडियाविजिल के स्तंभकार हैं और विदेशी घटनाक्रम पर करीबी नज़र रखते हैं 

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