अनुच्छेद 370 हटाने के एकतरफ़ा फ़ैसले के गम्भीर नतीजे होंगे- विदेशी मीडिया 

भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के प्रावधानों (एक को छोड़कर) को निरस्त करने के फ़ैसले पर विदेशी मीडिया में भी काफ़ी चर्चा है. यह कोई अचरज की बात भी नहीं है क्योंकि भारत-पाकिस्तान के परस्पर संबंधों तथा दक्षिण एशिया में शांति व सुरक्षा के लिहाज़ से अहम होने की वजह से कश्मीर का मसला अंतरराष्ट्रीय सुर्ख़ियों में अक्सर बना रहता है. ऐसे में कुछ प्रमुख मीडिया इदारों में छपी ख़बरों और टिप्पणियों को देखने से इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति की भावी हलचलों का अंदाज़ा लगाने में मदद मिल सकती है.

‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ के एडिटोरियल बोर्ड ने अपनी टिप्पणी के शीर्षक में लिखा है कि भारत कश्मीर में भाग्य को परखने की कोशिश कर रहा है. इस टिप्पणी में इस फ़ैसले के लिए अनेक तल्ख़ संज्ञाओं और विशेषणों का प्रयोग हुआ है. कश्मीर को ‘दुनिया की सबसे ख़तरनाक जगह’ बताने के पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के बयान को भी शीर्षक में रखा गया है. टाइम्स के बोर्ड ने भारत सरकार के फ़ैसले को ग़लत और ख़तरनाक बताते हुए आशंका जतायी है कि इससे ख़ून-ख़राबा निश्चित तौर पर बढ़ेगा तथा पाकिस्तान के साथ तनाव भी गहरा होगा. इसमें अमेरिका और चीन से अपील की गयी है कि उन्हें अपने मौजूदा विवादों में कश्मीर को प्यादे के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, बल्कि इन दोनों देशों को भारत और पाकिस्तान पर असर रखनेवाले अन्य देशों तथा संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर क्षेत्रीय संकट को बढ़ानेवाले भारत के ‘मूढ़तापूर्ण क़दम’ को रोकने की तुरंत कोशिश करनी चाहिए. उल्लेखनीय है कि टाइम्स का यह एडिटोरियल बोर्ड अपने साथ अख़बार के एडिटर और पब्लिशर का भी प्रतिनिधित्व करता है तथा यह न्यूज़रूम और ऑप-एड सेक्शन से अलग होता है.

लंदन से प्रकाशित होने वाले ‘द गार्डियन’ में अख़बार के वरिष्ठ संवाददाता जैसन बर्क ने अपने लेख में लिखा है कि मोदी सरकार का यह क़दम कोई क़ानूनी नुक्ताचीनी की बात नहीं है, बल्कि इरादे और वैचारिकी का एक बयान है. उनका मानना है कि इस फ़ैसले के गम्भीर नतीजे होंगे, पर इनका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है. बर्क ने रेखांकित किया है कि बीते दशकों के लगातार दख़ल से कश्मीर की स्वायत्तता बहुत ही कम हो चुकी है, लेकिन वहाँ बसनेवाली आबादी के लिए इस अनुच्छेद का बड़ा सांकेतिक महत्व था. उनकी आशंका है कि फ़ैसले के नतीजे कश्मीर के लिए और भारत के लिए त्रासद हो सकते हैं.

‘ब्लूमबर्ग’ में छपी अर्चना चौधरी और इस्माइल दिलावर की रिपोर्ट का शीर्षक है- ’70 सालों के सबसे दिलेर क़दम से मोदी की मज़बूती बढ़ी, पाकिस्तान भड़का’. इसमें कहा गया है कि इस फ़ैसले से मोदी को देश की अर्थव्यवस्था के बारे में नकारात्मक ख़बरों से राहत मिली है. इससे अफ़रातफ़री में क़र्ज़ लेने के फ़ैसले, वृद्धि में कमी और बढ़ती बेरोज़गारी से ध्यान हट गया है. पर, इससे पाकिस्तान के रिश्ते और ख़राब होने तथा घाटी में अशांति होने के ख़तरे बढ़ गए हैं.

‘ब्लूमबर्ग’ में अपने लेख में टिप्पणीकार मिहिर शर्मा ने लिखा है कि कश्मीर से संबंधित निर्णय अभूतपूर्व है और यही बहुत बड़ी समस्या है. इस लेख का शीर्षक है- ‘भारत कश्मीर में अपना वेस्ट बैंक बना रहा है’. लेख में शर्मा ने इस बिंदु पर लिखा है कि अभी यह साफ़ नहीं है कि कश्मीर एक अशांत अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र बनेगा या फिर वेस्ट बैंक, जहाँ हथियारों से लैस इज़रायली बाशिंदे बेहद सुरक्षित बस्तियों में रहते हैं तथा एक बड़ी और लाचार आबादी मनमाने न्याय के साये में बसती है. वे कहते हैं, सबसे ज़्यादा संभावना इन्हीं में से एक की है और यह भारत के लिए किसी भी तरह से सकारात्मक नहीं होगा. इससे देश के अन्य बेचैन हिस्सों में भी चिंता बढ़ेगी. बर्क की तरह शर्मा का भी मानना है कि सरकार ने यह क़दम राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए नहीं, बल्कि हिन्दू बहुसंख्यकवाद के विचारों से प्रभावित होकर उठाया है.

इन्होंने भी रेखांकित किया है कि जूझती आर्थिकी के माहौल में अन्य पॉपुलिस्ट-एकाधिकारवादियों की तरह मोदी भी चुनावी फ़ायदे के लिए बहुसंख्यक अस्मिता पर आधारित राजनीति पर ज़ोर दे सकते हैं. वे अफ़सोस जताते हैं कि कश्मीरी नेता या तो भ्रष्ट हैं या ढुलमुल हैं या फिर परिवारवादी हैं. जो बाक़ी हैं, वे इस्लामी चरमपंथी हैं. कमज़ोर राजनीतिक विपक्ष, बिकी या दबा दी गयी मीडिया और स्वतंत्र संस्थाओं के पर कुतरे जाने के कारण इस फ़ैसले का ज़ोरदार विरोध न हो पाने को कश्मीर और भारत के लिए त्रासदी बताते हुए मिहिर शर्मा कहते हैं कि बाहर से ही कोई ठोस दबाव बन सकता है. लेकिन ट्रंप उदारवादी लोकतांत्रिक नेताओं से कहीं अधिक एकाधिकारवादियों को प्यार करते हैं और झिनजियांग के लिए कोई भी आगे नहीं आया. ऐसे में मोदी को यह चिंता क्योंकर होगी कि यदि वे कश्मीर में भी ऐसा करेंगे, तो भारत दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा?

‘बीबीसी’ पर भारत में उसके पूर्व संवाददाता एंड्रयू वहाइटहेड ने लिखा है कि दशकों से हो रही क़वायद ने अनुच्छेद 370 को व्यावहारिक तौर पर महत्वहीन कर दिया है, पर सरकार के निर्णय का सांकेतिक बहुत सबसे अधिक मायने रखता है. इन्होंने भी आशंका व्यक्त की है कि भारत का इस सबसे अस्थिर क्षेत्र में स्थिति और ख़राब हो सकती है.

‘सीएनएन’ के निखिल कुमार ने भी लिखा है कि भारत की घोषणा से इस हिस्से में तनाव बढ़ेगा.

आगामी दिनों में कश्मीर, भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों की प्रतिक्रियाओं और हलचलों के बाद विश्लेषणों का एक चरण शुरू होगा. फ़िलहाल, देशी-विदेशी मीडिया की नज़र हिरासत में रखे गए कश्मीरी नेताओं के बारे में भारत के अगले फ़ैसले तथा मंगलवार को पाकिस्तानी संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक पर है. अगले कुछ दिनों में भारत सरकार के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में क़ानूनी चुनौती दिए जाने की आशा है.

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