राहुल गाँधी से ईडी की पूछताछ: ख़बरें, गोदी मीडिया और हेडलाइन मैनेजमेंट!

आज की खबर तो एक ही है, बड़ी कहिये या छोटी। रूटीन की बड़ी खबरों में, औंधे मुंह गिरा बाजार … चंद मिनटों में निवेशकों के डूबे 6.64 लाख करोड़ (अमर उजाला) जरूर है। लेकिन जो खबर सबसे महत्वपूर्ण या दिलचस्प है वह है, श्रीलंका बिजली बोर्ड के उस अधिकारी ने इस्तीफी दे दिया जिन्होंने शपथ पूर्वक यह आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गौतम अडानी को 500 मेगा वाट की पवन ऊर्जा परियोजना देने के लिए दबाव डाला था।

इस आरोप का वीडियो भी है और यह श्रीलंका के टेलीविजन चैनल पर चला भी था। यह कल छपने वाली बात थी पर आरोप का खंडन हो जाने के बाद भारतीय अखबारों ने खबर को महत्व नहीं दिया लेकिन सच्चाई यही है कि अडानी को काम मिला है, इसके साथ के दूसरे प्रोजेक्ट की घोषणा की गई थी पर इसकी नहीं की गई, श्रीलंका के नेताओं ने अडानी को पिछले दरवाजे से प्रवेश देने का विरोध किया है और परियोजना दिए जाने से पहले मुलाकात की खबरें छपी थीं। कुल मिलाकर, यह अपने मित्र के लिए दलाली करने का आरोप है।

श्रीलंका के संबंधित अधिकारी ने इस खुलासे के बाद अगर उससे इनकार किया तो अब इस्तीफा दे दिया है और ऐसे में यह खबर अपने आप महत्वपूर्ण हो गई है। दूसरी ओर, प्रचारकों ने कहा था कि नरेन्द्र मोदी का कोई रिश्तेदार ही नहीं है तो वे किसके लिए भ्रष्टाचार करेंगे। ऐसे में इस आरोप का संतोषजनक खंडन किया जाना चाहिए और यह जांच के बाद ही हो सकेगा पर खबर नहीं छापकर यह माहौल बनाने की कोशिश हो रही लगती है कि यह कोई मुद्दा ही नहीं है। दूसरी ओर जांच से भागने और बचने के कई मामले है। उसके लिए उपयोग में लाए गए तरीके भी।

आज एक खबर यह भी है कि कल राहुल गांधी से पूछताछ हुई। कांग्रेस ने इसका विरोध किया। आज खबर के दोनों पक्षों को पूरा महत्व मिला है। यह भी कि कांग्रेस यह सब दबाव बनाने के लिए कर रही है। ईडी ने राहुल गांधी से पूछताछ की, क्या की और क्या खबर है उस पर चर्चा बाद में पहले आपको यह बता दूं कि एकतरफा डिपार्टमेंट की कार्रवाई के इस मामले में एक बड़ी खबर खो गई। मित्र विनोद चंद ने लिखा है, कायदे से ईडी को नरेंद्र मोदी से पूछताछ करनी चाहिए थी, लेकिन वह राहुल गांधी से पूछताछ कर रही है। सीबीआई के गठन का मुख्य मकसद पद पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार की जांच करना है। फिर भी इस तरह कीजांच से लोगों का ध्यान भटकाने का काम किया जाता है।

आज और भी बड़ी खबरें थीं। जैसे रुपया 78 से आगे फिसल रहा है, (65 रुपये के आस-पास का हंगामा याद कीजिए)। यह 75 वर्षों में इसका सबसे निचला स्तर है। विनोद चंद ने याद दिलाया है कि 2014 में, जब सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में मुंबई में सीबीआई न्यायाधीश ने अमित शाह को बरी कर दिया था, तो बड़ी खबर यह थी कि एमएस धोनी चल रहे टेस्ट सीरीज़ के बीच में भारत की टेस्ट टीम की कप्तानी से हट गए थे। अगर आप नरेन्द्र मोदी / अमित शाह के नेतृत्व में मीडिया मैनेजमेंट या हेडलाइन मैनेजमेंट की बात करें तो ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे।

द टेलीग्राफ ने कल श्रीलंका वाली खबर नहीं छापी थी (पहले पन्ने पर नहीं थी)। आज यह खबर पहले पन्ने पर है, मोदी पर उंगली उठाने के बाद श्रीलंकाई निकासी (अधिकारी का इस्तीफा)। राहुल गांधी से पूछताछ वाली खबर का शीर्षक है, “राहुल पहुंच सके, नुपुर नहीं।” संदर्भ नुपुर शर्मा को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया है उनसे भी पूछताछ होनी है पर वह नहीं हो पाई है और राहुल गांधी पूछताछ के लिए उपस्थित हुए।

अब इस तथ्य को दूसरे अखबारों ने कैसे प्रस्तुत किया है उसपर आगे फिलहाल द टेलीग्राफ के कुछ और शीर्षक या खबरें। एक शीर्षक का हिन्दी कुछ इस तरह होगा, “आखिर दिल्ली पुलिस को किसी ने ताकत दिखाने का मौका दिया।” इसके बराबर में दूसरी खबर का शीर्षक है, “गृहमंत्रालय के ऑपरेशन के खुले संकेत।”

हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर सेकेंड लीड है और शीर्षक हिन्दी में होता तो कुछ इस तरह पढ़ा जाता,हेराल्ड जांच में ईडी ने राहुल से पूछताछ की, कांग्रेस का आंदोलन। इसके साथ दूसरी खबर का शीर्षक है, कांग्रेस ने कहा, एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। भाजपा ने इसे दबाव बनाने का तरीका कहा।

श्रीलंका वाली खबर अखबार में पहले पन्ने पर नहीं है। अंदर होने की सूचना भी नहीं। राहुल गांधी से पूछताछ मामले में यह महत्वपूर्ण है कि नुपुर शर्मा से अभी तक पूछताछ नहीं हुई है और एक पुराने मामले में राहुल गांधी से पुछताछ हो गई। अगर यह दबाव का तरीका था तो दिल्ली पुलिस ने जिस ढंग से कांग्रेस के बड़े नेताओं की पिटाई की वह भी उल्लेखनीय है पर उसकी चर्चा शीर्षक में नहीं है। अखबार की आज की लीड है, “मुद्रास्फीति घटकर 7.04% हुई पर कंफर्ट जोन से ऊपर है।”

टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर लीड है और इसइंका शीर्षक है, ईडी ने राहुल गांधी से 11 घंटे तक पूछताछ की, आज फिर बुलाया गया है। इस खबर का इंट्रो है, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि पी चिदंबरम और दूसरों से जबरदस्ती की गई, भाजपा ने इसे स्टंट कहा। इसके साथ एक छोटी सी खबर का शीर्षक है, “तानाशाही का मंजर बना दिया गया है।” जवाबी खबर है, “कांग्रेस ईडी पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है : भाजपा।” श्रीलंका वाली खबर पहले पन्ने पर कुल मिलाकर आठलाइन में है जबकि विज्ञापन के कारण कॉलम छोटा है और अंतिम लाइन में तो एक पूरा शब्द भी नहीं है।

इंडियन एक्सप्रेस में राहुल गांधी वाली खबर पहले पन्ने पर डबल कॉलम में है। फ्लैग शीर्षक है, मनी लांडरिंग का कथित मामला। मुख्य शीर्षक है, “ईडी ने राहुल ने पूछताछ की, विरोध में उनकी पार्टी सड़कों पर उतरी।” उपशीर्षक है, “पुलिस ने पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं को रोका, घायलों में चिदंबरम, अधीर।” इंडियन एक्सप्रेस ने रुपये के गिरने और इसे उच्च अमेरिकी मुद्रास्फीति का असर बताने वाली खबर को लीड बनाया है। श्रीलंका वाली खबर पहले पन्ने पर फोल्ड से ऊपर तीन कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ है। तीनों अखबारों में पहले पन्ने पर आधा विज्ञापन है। इंडियन एक्सप्रेस ने आज चार कॉलम में टॉप पर छपी खबरसे यह खुलासा किया है कि इलाहाबाद में बुलडोजर राजनीति का शिकार हुआ एक्टिविस्ट का घर दरअसल उनकी पत्नी के नाम था पानी और बिजली का टैक्स दिया जा चुका था।

द हिन्दू में राहुल गांधी वाली खबर सेकेंड लीड है। शीर्षक है, ईडी ने राहुल से 11 घंटे तक पूछताछ की, फिर बुलाया गया। उपशीर्षक है, कांग्रेस ने कई शहरों में शक्ति प्रदर्शन किया। श्रीलंका वाली खबर द हिन्दू में भी पहले पन्ने पर नहीं है। मुद्रास्फीति कम होने की खबर यहां भी लीड है। सबसे दिलचस्प है कि पहले पन्ने परखबर है, राष्ट्रपति के लिए पवार का विपक्ष का उम्मीदवार होने की संभावना। फोटो के साथ छोटी सी यह खबर सिंगल कॉलम में है जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया में दो कॉलम की खबर का शीर्षक है, पवार ने जोर देकर कहा, राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ूंगा। विपक्षी दलों की योजना को कुचल दिया।

हिन्दी अखबारों में अमर उजाला में दो पन्नों को पहले पन्ने जैसा बनाया गया है। पहले पर आधे पन्ने से भी ज्यादा विज्ञापन है और लीड के अलावा खेल की एक खबर पहले पन्ने पर है। दूसरे पहले पन्ने पर राहुल की खबर पांच कॉलम में लीड है। शीर्षक है, “कांग्रेस के प्रदर्शन के बीच राहुल से ईडी की साढ़े 10 घंटे पूछताछ, आज फिर पेशी।”  श्रीलंका की खबर यहां भी पहले पन्ने पर नहीं है लेकिन मनी लांडरिंग के केस में आम आदमी पार्टी के नेता सत्येन्द्र जैन को न्यायायिक हिरासत में भेजे जाने की खबर फोटो समेत है।

राहुल गांधी वाली खबर दैनिक जागरण में चार कॉलम में लीड है। शीर्षक राजा का बाजा बजाने वाला है, “मनी लांड्रिंग मामले में ईडी के सवालों का जवाब देने से बचते रहे राहुल गांधी।” श्रीलंका के बिजली अधिकारी के इस्तीफे की खबर दैनिक जागरण को पहले पन्ने लायक नहीं लगी। लेकिन ईडी ने राहुल से जो सवाल किए उसे अखबार ने रिवर्स में प्रमुखता से छापा है। बिन्दुवार छापे गए इन सवालों में अंतिम बिन्दु है, राहुल ने इनमें से ज्यादातर सवालों के जवाब नहीं दिए जिनके सवाल दिए (जी हां यही लिखा है) भी उनसे ईडी संतुष्ट नहीं हुई।

राहुल गांधी से पूछे गए सवाल

– यंग इंडिया में उनका पद क्या है, इसकी मीटिंग में भाग लेते हैं या नहीं?

– यंग इंडिया की मीटिंग कौन बुलाता है और उसमें कौन-कौन शामिल होते हैं?

– सोनिया गांधी की यंग इंडिया के कामकाज में कितनी भागीदारी होती है?

– एजेएल के अधिग्रहण के बारे में उन्हें जानकारी थी या नहीं और उनकी सहमति ली गई थी या नहीं?

– यंग इंडिया को चलाने वाला अधिकृत व्यक्ति और उसके खाते का लेखा-जोखा रखने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट

कौन है?

– क्या एजेएल को कांग्रेस की ओर से 90 करोड़ रुपये कर्ज देने के फैसले पर उनसे सहमति ली गई थी?

– क्या उन्हें लगता है कि एजेएल की माली हालत जानबूझकर खराब की गई थी?

– राहुल ने इनमें से ज्यादा सवालों के जवाब नहीं दिए, जिनके जवाब दिए भी उनसे ईडी संतुष्ट नहीं हुई।

दैनिक जागरण ने अपने ब्यूरो के हवाले से लिखा है, नेशनल हेराल्ड से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में ईडी ने सोमवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से दो दौर में दस घंटे से ज्यादा पूछताछ की। पहली बार ईडी की पूछताछ का सामना करने वाले राहुल ने अधिकांश सवालों पर चुप्पी साध ली। …. ईडी के नियम के मुताबिक राहुल को खुद अपने हाथों से सभी सवालों का जवाब कागज पर लिखने को कहा गया। एक-एक सवाल का जवाब लिखे जाने की वजह से पूछताछ की प्रक्रिया लंबी चली। गौरतलब है कि ईडी के सवालों का जवाब लिखने के बाद कागज के ऊपर बाईं ओर और नीचे भी दस्तखत करने होते हैं। इसी कारण ईडी में दिए गए बयान को अदालत में पुख्ता सुबूत माना जाता है।

यहां यह उल्लेख प्रासंगिक होगा कि, तीन अक्तूबर 1977 को सीबीआई के एक मुकदमे में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने वाले सीबीआई अधिकारी एनके सिंह, आईपीएस (रिटायर) ने अपनी पुस्तक, खरा सत्य में लिखा है, सीबीआई एक खुली संस्था है और उसे ज्यादातर शक्ति स्वतंत्र प्रेस, संसद और उसकी समितियोंजैसे संसदीय सलाहकार समिति, सार्वजनिक संस्थानों की समिति आदि से मिलती है। संसद में प्रायः विपक्ष सीबीआई से जांच कराने की मांग करता था। सरकार भी काफी हद तक जनता की नाराजगी और संसद में प्रतिक्रिया होने की डर से इसके काम काज में दखल देने से बचती थी। प्रेस, संसद और विपक्ष के दबाव मेंकई बार सरकार भी सीबीआई की रपट पर कार्रवाई के लिए मजबूर होती थी। पुस्तक की भूमिका में एनके सिंह ने लिखा है, दस साल के अंतराल के बाद मैं जब मैं दुबारा सीबीआई में आया तो मुझे लगता था कि इतिहास शायद न दुहराया जाये और मैं आराम से काम कर पाउंगा। …. इस बार मुझे वीपी सिंह के बाद प्रधानमंत्री बने चद्रशेखर और विधि मंत्री डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी से असुविधा हुई। खासकर चंद्रास्वामी से सबंधित एक मामले में। मुझे सीबीआई से निकाल दिया गया …। एनके सिंह ने इसके खिलाफ मुकदमा लड़ा था पर कुछ नहीं हुआ। कहने की जरूरत नहीं है कि आज स्थिति उससे बुरी है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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