अनिवार्य हिंदी शिक्षण पर मोदी सरकार के पहले यू-टर्न की खबर हिंदी के अखबार ही खा गए!

वैसे तो आज नई शिक्षा नीति के संशोधित मसौदे से हिन्दी का उपबंध हटाए जाने की खबर हिन्दी अखबारों के लिए बड़ी खबर होनी चाहिए थी। अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ ने इसे लीड बनाया है। इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर और टाइम्स ऑफ इंडिया में भी (बाएं हाथ वाले) पहले पन्ने पर यह खबर अच्छी बड़ी है जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे लीड बनाया है। अमर उजाला में यह खबर पहले पन्ने पर है ही नहीं। दैनिक जागरण में लीड के साथ डबल कॉलम है। नवोदय टाइम्स ने इसे पहले पन्ने पर बॉटम बनाया है और मोदी सरकार टू का पहला यू-टर्न कहा है। लेकिन दैनिक भास्कर ने सिंगल कॉलम में निपटा दिया है। हिन्दुस्तान में यह टॉप पर पांच कॉलम में है, नवभारत टाइम्स में लीड है। राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है।

हिन्दी के अखबारों में आज एक अटकल खबर के रूप में प्रमुखता से छपी है और एक खबर पहले पन्ने से बिल्कुल गायब है। अटकल वाली खबर है – उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठजोड़ टूटने से संबंधित अटकलें। दूसरी खबर है, भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर को मालेगांव विस्फोट मामले में अदालत में पेशी से छूट नहीं मिली। यानी सुनवाई की तारीखों पर उन्हें अदालत में उपस्थित रहना होगा – पर यह खबर हिन्दी अखबारों में सिर्फ राजस्थान पत्रिका में पहले पन्ने पर है। मैं हिन्दी के सात अखबार देखता हूं। इनमें दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका में सपा बसपा गठजोड़ टूटने की अटकल पहले पन्ने पर नहीं है।

अंग्रेजी अखबारों में टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी इसे लीड बनाया है। यहां शीर्षक है, सपा-बसपा गठजोड़ टूट रहा है? मायावती 11 उपचुनाव अकेले लड़ने की तैयारी में। द टेलीग्राफ में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। अंदर विस्तार से छह कॉलम में छपी है। शीर्षक का हिन्दी अनुवाद होगा, “मायावती ने गठजोड़ खत्म करने के संकेत दिए; अखिलेश ने कहा ‘पता नहीं’।” खबर कहती है कि मायावती ने अपनी पार्टी से आगामी उपचुनावों के लिए तैयार रहने को कहा है। यह इस बात का संकेत लगता है कि समाजवादी पार्टी से पांच महीने पुराना गठबंधन टूटेगा।

कायदे से इस सूचना या संकेत को प्रकाशित प्रसारित करने से पहले गठबंधन के दूसरे दल या पक्ष की टिप्पणी ली जानी चाहिए। दूसरे अखबारों का शीर्षक टेलीग्राफ जैसा नहीं है और उससे यह संकेत भी नहीं मिलता है कि अखिलेश यादव ने कहा है कि गठजोड़ के बारे में बसपा के किसी निर्णय की जानकारी उन्हें नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया में मायावती ने क्या कहा वह तो है पर अखिलेश की कोई प्रतिक्रिया नहीं है।

हिन्दी के जिन अखबारों में है गठजोड़ टूटने से संबंधित खबर हैं उनके शीर्षक इस प्रकार हैं –
1. नवभारत टाइम्स
साइकिल से उतरेगा हाथी ? मायावती ने दिए बड़े संकेत। उपशीर्षक है उपचुनाव लड़ने की तैयारी – विशेष संवाददाता की खबर है।
2. नवोदय टाइम्स
ये तो होना ही था! मायावती ने गठजोड़ तोड़ने के दिए संकेत
3.हिन्दुस्तान
सपा-बसपा गठबंधन में दरार के संकेत। दो बॉक्स हैं – अखिलेश की चुप्पी और दोस्ती से दूरी तक।
4. अमर उजाला
पांच महीने में ही सपा से राहें जुदा, उपचुनाव अब अकेले लड़ेगी बसपा। गठबंधन टूटने के कगार पर। माया बोलीं – यादव वोट नहीं मिले वरना डिंपल नहीं हारतीं।
5. दैनिक जागरण
खबर लीड है – टूट के कगार पर सपा – बसपा गठबंधन। उपशीर्षक है, दो टूक – बसपा आगे के चुनावों में किसी पार्टी का सहयोग नहीं लेगी : मायावती।

कहने की जरूरत नहीं है कि सभी खबरें शीर्षक से ही अटकल लगती हैं और नहीं लगता कि मायावती ने जो कहा उसपर अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया ली गई है। ली जाती तो वह भी शीर्षक या उपशीर्षक में होना चाहिए था। नवोदय टाइम्स ने इस मामले में भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की प्रतिक्रिया छापी है और साथ में सपा के प्रवक्ता, राजेन्द्र चौधरी की भी प्रतिक्रिया है – नहीं अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं है। चूंकि कोई आधिकारिक रुख नहीं है, यह बाहर का सुना-सुनाया मामला है। क्या बात हुई, क्या मामला है उसे समझना पड़ेगा। लेकिन अखबार ने शीर्षक लगाया है – ये तो होना ही था।

अमर उजाला ने मोदी की भविष्यवाणी सच शीर्षक से एक छोटी सी खबर भी छाप दी है। हालांकि उसके नीचे ही, सपा के प्रवक्ता का भी बयान है। अखबार ने यह भी बताया है, मायावती के दांव से बेखबर अखिलेश यादव सोमवार सुबह आजमगढ़ में थे। वहां उन्होंने जनसभा में कहा कि सपा और बसपा मिलकर सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करेंगे। उधर दिल्ली में बसपा सुप्रीमो ने अलग राह चुन ली थी। यह – खबर या रहस्योद्घाटन दोनों नेताओं के सार्वजनिक बयान पर है और कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें मायावती के बयान को सच और अखिलेश के बयान को बेखबर होने के कारण दिया गया बयान माना गया है।

दैनिक जागरण इस मामले में बहुत आगे है। ब्यूरो की खबर का पहला वाक्य है, “लोकसभा चुनाव में एकतरफा बाजी मारने की मंशा से उत्तर प्रदेश में जातिगत गोलबंदी के लिए गठित सपा-बसपा और रालोद के गठबंधन पर संकट के बादल छाने लगे हैं।” गठबंधन पर ऐसी टिप्पणी या तो विरोधी नेता प्रधानमंत्री ने की या फिर दैनिक जागरण कर रहा है। लेकिन मुद्दा यह है कि अगर यह एकतरफा बाजी मारने की मंशा से ही बना था तो टूटना ही है। लीड खबर क्यों है? वैसे टूटने का कारण अखबार ने बताया है, “बसपा प्रमुख मायावती के तल्ख बयानों के बाद गठबंधन टूट के कगार पर पहुंच गया है।” (यह बात अखिलेश को बुरी लगी यह रिपोर्टर ने खुद तय कर लिया है)।

यहां तक तो बात ठीक है कि रिपोर्टर तल्ख बयान के आधार पर निष्कर्ष निकाले और कहे , “गठबंधन के बिखरने का एलान राज्य में उपचुनावों की घोषणा के साथ हो सकता है।” पर यह सब बता देने के बाद इस सूचना का क्या कोई मतलब रह जाता है कि, “समाचार एजेंसी प्रेट्र के मुताबिक, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमगढ़ में कहा, सामाजिक न्याय के लिए सपा-बसपा मिलकर लड़ती रहेंगी, जबकि सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना था कि उनकी पार्टी बसपा के आधिकारिक रुख का इंतजार करेगी और उसके बाद ही कोई फैसला लेगी।”

अब आइए मालेगांव विस्फोट मामले की सुनवाई में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उपस्थित रहने से छूट न मिलने के मामले पर। इस मामले में खबर है, “भोपाल की नवनिर्वाचित सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर को 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में सोमवार को यहां (मुंबई) की एक विशेष अदालत में पेश होने से छूट नहीं मिल पाई। प्रज्ञा इस मामले में आरोपी हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी के विशेष न्यायाधीश वी एस पडालकर ने अदालत में पेश होने से छूट के लिए दिए गए प्रज्ञा के आवेदन को ठुकरा दिया। प्रज्ञा ने कहा था कि उन्हें संसद से जुड़ी कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी हैं। लेकिन विशेष न्यायाधीश ने उनका आवेदन अस्वीकृत करते हुए कहा कि मामले में फिलहाल जो स्थिति है उसमें उनकी उपस्थिति अनिवार्य है। अदालत ने प्रज्ञा को इस सप्ताह पेश होने का आदेश दिया। अदालत ने कहा ‘‘छूट के लिए आवेदन में बताए गए, चुनाव प्रक्रिया पूरी करने संबंधी, नामांकन और अन्य कारणों को स्वीकार नहीं किया जा सकता।’’

अदालत के अनुसार, आरोपी (प्रज्ञा) ने अदालत में मौजूद रहने की बात कही लेकिन ऐसा करने में नाकाम रही। अदालत ने कहा कि शुरू में पेश होने से छूट दी गई थी। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ अपना मामला साबित करने के लिए सबूत पुख्ता करने की खातिर गवाहों को बुला रहा है। इसलिए आरोपी की मौजूदगी आवश्यक है। साथ ही अदालत ने कहा कि अतीत के कई आदेशों में उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालतों से ऐसे मामलों का तेजी से निपटारा करने की जरूरत पर जोर दिया है जिनमें राजनीतिक हस्तियां शामिल हैं। मालेगांव मामले में सात आरोपियों के खिलाफ मामले पर सुनवाई कर रही अदालत ने इस साल मई में, सभी को सप्ताह में कम से कम एक बार अपने समक्ष पेश होने का आदेश दिया था। अदालत ने कहा था कि ठोस कारण बताए जाने पर ही पेश होने से छूट दी जाएगी। दो सप्ताह पहले अदालत ने प्रज्ञा तथा दो अन्य आरोपियों… लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और सुधाकर चतुर्वेदी को एक सप्ताह के लिए पेश होने से छूट दी थी।”

ऊपर की पूरी खबर समाचार एजेंसी, भाषा की है। इससे आप अपराध की गंभीरता और मामले की मौजूदा स्थिति जान सकते हैं। अंग्रेजी अखबारों में यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में टॉप पर सिंगल कॉलम में छपी है। टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पेज पर पूरा विज्ञापन है। दूसरे और तीसरे पेज को आधा-आधा (यहां भी आधा विज्ञापन है) पहले पन्ने जैसा बनाया गया है। इसमें बाएं हाथ वाले पहले पन्ने पर सबसे बांए के कॉलम में यह खबर 10 लाइन में तीन लाइन के शीर्षक के साथ है। विस्तार अंदर के पन्ने पर होने की सूचना है। अंदर भी यह खबर सिंगल कॉलम में ही है। प्रज्ञा की आधे कॉलम से भी कम की फोटो के साथ है। और पूरी संभावना है कि आप खबर ढूंढ़ न रहे हों तो चूक जाएं। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर या सूचना पहले पन्ने पर नहीं है। द टेलीग्राफ में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है लेकिन अंदर टॉप पर तीन कॉलम में है।

आपको याद होगा कि आतंकवाद फैलाने की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से भाजपा का टिकट दिए जाने पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था, साध्वी प्रज्ञा को टिकट देना फर्जी भगवा आतंकवाद के खिलाफ हमारा सत्याग्रह है। 17 मई को भाजपा मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस करते हुए सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष ने कहा कि साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से उम्मीदवार बनाये जाने का उन्हें कोई मलाल नहीं है। अमित शाह ने कहा, “साध्वी प्रज्ञा को टिकट देने का कोई पछतावा नहीं है, उनकी उम्मीदवारी हिन्दू टेरर पर कांग्रेस के वोट बैंक पॉलिटिक्स का जवाब है। उन्होंने एक फर्जी केस बनाया, उन्होंने सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया।” साध्वी प्रज्ञा चुनाव जीत चुकी हैं इसलिए मलाल नहीं होने की बात तो सही है। पर क्या सांसद हो जाने से मामले की सुनवाई और उसकी रिपोर्टिंग सामान्य ढंग से नहीं होनी चाहिए? क्या यह पहले पन्ने की खबर नहीं है? हिन्दी के जो अखबार मैं देखता हूं उनमें किसी में भी यह खबर या खबर अंदर होने की सूचना पहले पन्ने पर नहीं है। राजस्थान पत्रिका अपवाद है। पत्रिका ने भोपाल डेटलाइन से एक छोटी सी खबर छापी है।

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