आज के टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर खबर है, “जेल जाने के डर से वीवीपैट पर सही वोट नहीं दिखने की शिकायत नहीं की – पूर्व डीजीपी”। यह असम की राजधानी गुवाहाटी की खबर है और इसके मुताबिक राज्य के डीजीपी हरे कृष्ण डेका ने मंगलवार को वोट डालने के बाद शिकायत की कि उन्होंने वोट किसी और को दिया तथा वीवीपैट की पर्ची पर किसी और का नाम दिखा। इसपर उनसे कहा गया कि अगर वे शिकायत करते हैं और उसे गलत पाया गया तो उन्हें छह महीने की जेल हो सकती है। अखबार ने घटनाक्रम का विवरण देते हुए लिखा है कि आखिरकार उन्होंने शिकायत नहीं की। डेका ने कहा है कि आपराधिक जिम्मेदारी वोटर पर हो तो वह क्यों वीवीपैट को चुनौती दे।
ईवीएम की गड़बड़ी और नियम 49एमए की चर्चा मैंने कल ही की थी। इसके साथ केरल के मतदाता एबिन बाबू की भी चर्चा थी। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी आज एबिन बाबू की चर्चा है। इस खबर के साथ यह सूचना भी है कि विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह आठ अप्रैल के अपने आदेश की समीक्षा करे जिसमें चुनाव आयोग से कहा गया था कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक की जगह पांच वीवीपैट की पर्चियां गिनी जाएं। विपक्षी दलों ने मांग की है कि 50 प्रतिशत ईवीएम की पर्चियां गिनी जाएं। क्योंकि पहले के एक के मुकाबले पांच वीवीपैट की पर्चियां गिनने से स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आएगा। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि उनकी शिकायत तो सुनी गई है पर इस सफलता से स्थिति में कोई अर्थपूर्ण बदलाव नहीं आया है।
ईवीएम से संबंधित 21 दलों की याचिका की खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर तीन कॉलम में है। अखबार ने इसके साथ नरेन्द्र मोदी के इस बयान को भी प्रमुखता दी है कि विपक्ष अब मोदी को गाली देने से थक गया है और निशाना ईवीएम को बनाया गया है। यह खबर अंदर के पन्ने पर जारी है। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। लेकिन वहां सिंगल कॉलम में एक खबर है जो बताती है कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए दायर याचिका खारिज हो गई है। हालांकि, शीर्षक में ही यह भी बताया गया है कि अदालत ने एनआईए की खिंचाई की। आज ये दो खबरें महत्वपूर्ण हैं। आइए देखें हिन्दी के किन अखबारों इन इन खबरों को पहले पन्ने पर लिया है।
नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर दो कॉलम से ज्यादा की खबर का शीर्षक है, “हार से डरा विपक्ष ईवीएम को दे रहा गाली : मोदी”। लोहरदगा डेटलाइन से एजेंसी की इस खबर में कहा गया है, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जनता जब चौकीदार पर इतना प्यार बरसाएगी तो बेचारी ईवीएम को खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा क्योंकि देश में तीसरे दौर के मतदान के बाद अपनी हार सुनिश्चित देखकर विपक्ष ईवीएम पर ठीकरा फोड़ने की तैयारी कर रहा है”। यह खबर प्रधानमंत्री के भाषण की है और ईवीएम पर विपक्ष की शिकायत यहां एक अलग खबर में है जो इस खबर के ठीक नीचे छपी है। पहले पन्ने पर ईवीएम को चैलेंज करने से जुड़े मामलों या नियम की कोई चर्चा नहीं है। साध्वी प्रज्ञा के मामले में एनआईए को फटकार या चुनाव लड़ने से न रोकने की खबर भी पहले पन्ने पर नहीं है।
हिन्दुस्तान में दो कॉलम की छोटी सी खबर है, “हार के बहाने तलाशने में जुटा समूचा विपक्ष : मोदी”।
इसके साथ सिंगल कॉलम में छपा है, “ईवीएम पर 21 विपक्षी दल फिर सर्वोच्च अदालत पहुंचे”। खबर में कहा गया है, “पहले, दूसरे और तीसरे चरण के लोकसभा चुनावों में देश भर में ईवीएम में कथित गड़बड़ी की शिकायतें मिलने के बाद याचिका दायर की गई है। हालांकि, पहले पन्ने पर शिकायत से संबंधित नियम या मामलों का कोई जिक्र नहीं है। साध्वी प्रज्ञा मामले में अखबार ने आठ लाइन की खबर छापी है जिसका शीर्षक तीन लाइन में है, साध्वी प्रज्ञा के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं। पर अदालत ने आरोपों के बारे में क्या कहा वह खबर में नहीं है। इसके साथ सूचना है, 4.5 लाख की संपत्ति। और इसमें भी मुकदमे के बारे में अदालत ने जो कहा उसका जिक्र नहीं है।
अमर उजाला में ईवीएम से संबंधित कोई खबर पहले पन्ने पर नहीं है। प्रज्ञा सिंह ठाकुर की खबर पहले पन्ने पर फोटो के साथ है। शीर्षक है, “प्रज्ञा को चुनाव लड़ने से रोक नहीं सकते : एनआईए कोर्ट”। जाहिर है, इसमें अदालत ने आरोपों के बारे में जो कहा वह नहीं है। शीर्षक में नहीं है तो अंदर खबर में हो भी तो बहुत फर्क नहीं पड़ता। हालांकि, खबर में भी नहीं है जबकि खबर में यह जरूर कहा गया है, कोर्ट का फैसला आने के बाद भोपाल में प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि एक बार फिर साबित हो गया कि सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है।
द टेलीग्राफ की तीन खबरें
इन दो खबरों के अलावा, आज अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने तीन और खबरें छापी हैं जो किसी अखबार में पहले पन्ने पर तो नहीं हैं। शायद अंदर भी नहीं हो क्योंकि अपने यहां अखबारों में ना फॉलो अप होता है और ना मेहनत की जाती है। खबर भूल जाने की गंदी आदत (या मजबूरी) तो है ही। आइए आज टेलीग्राफ की इन तीन खबरों की चर्चा भी संक्षेप में कर लें। इसे आप जान सकेंगे कि आपका अखबार क्या छोड़ रहा है और क्या परोस रहा है। बीच चुनाव के मौके पर फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार के साथ प्रधानमंत्री के अराजनीतिक इंटरव्यू की खबर लगभग सभी अखबारों में हैं।
टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर जो अंश छापा है उसमें लिखा है कि प्रधानमंत्री ने दावा किया कि वे बराक ओबामा के साथ तू-ताडी शैली में बातें करते हैं (मैंने इंटरव्यू देखा नहीं है जो अखबार में लिखा है उसी की बात कर रहा हूं)। टेलीग्राफ की खबर का शीर्षक है, “सर, क्या बराक ने आपसे पूछा : तू ने क्या पहना है?” इसके साथ अखबार ने बराक और मोदी की एक पुरानी तस्वीर छापी है जिसका कैप्शन है, “2015 में ओबामा मोदी के साथ नई दिल्ली में जब उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को बार-बार और मशहूर ‘बराक’ कहा था और मोनोग्राम्ड (अपने नाम वाला) सूट पहना था जिससे बाद में सूट बूट की सरकार का नारा बना था”। इस खबर में यह भी बताया गया है कि उसने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति को पत्र लिखकर पूछा है कि कैसे उन्होंने मोदी जी को तू कहकर संबोधित किया। और लिखा है कि अगर और जब जवाब आएगा अखबार अपने पाठकों के लिए यह रहस्य खोलेगा।
दूसरी खबर चुनाव आयोग से संबंधित है। इसमें आयोग को उसके धैर्य के लिए अजीब कहा गया है। शीर्षक है – द वंडर दैट इज ईसी एंड इट्स पेशेंस। इसमें बताया गया है कि ईश्वर अगर रहस्यमयी ढंग से अपनी इच्छा के अनुसार काम करते हैं तो भारत का चुनाव आयोग और भी रहस्यमयी तरीकों से काम करता है। अखबार ने तारीखवार प्रधानमंत्री के भाषणों का उल्लेख किया है और कहा है कि यह चुनाव आयोग की सलाह के खिलाफ है। इसमें आयोग का जवाब भी है कि एक अप्रैल की शिकायत के बाद लातूर जिला प्रशासन से भाषण की अधिकृति कॉपी मांगी। यह उसे 14 को मिली और इसपर विचार चल रहा है। इसमें आयोग की तरफ से यह भी कहा बताया गया है कि महाराष्ट्र में आयोग की टीम अंग्रेजी और मराठी जानती है पर हिन्दी (से) अनुवाद कराने में समय लगता है। दिलचस्प खबर है पढ़ सकें तो जरूर पढ़िए।
टेलीग्राफ की तीसरी खबर पूर्व सैनिकों की चिट्ठी को लेकर चल रहे विवाद पर है। आपने पढ़ा होगा कि चुनाव में सेना के उपयोग पर कुछ पूर्व सैनिकों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी थी। बाद में खबर आई कि चिट्ठी राष्ट्रपति को मिली ही नहीं, फिर यह भी कि कई लोगों ने चिट्ठी पर दस्तखत करने से मना किया और यह आरोप की चिट्ठी फर्जी है आदि। इस तरह यह महत्वपूर्ण मुद्दा एक-दो दिन में खत्म हो गया। पर टेलीग्राफ ने खबर छापी थी कि बाद में ज्यादातर लोगों ने कहा कि उन्होंने दस्तखत किए हैं और कार्रवाई इसलिए नहीं हुई कि पत्र पर हस्ताक्षर नहीं है। यानी पूरे विवाद के बाद भी हस्ताक्षर ही मुद्दा है। आज की खबर है कि पूर्व सैनिकों ने समाचार एजेंसी एएनआई की शिकायत उसकी मूल कंपनी थॉमसन रायटर्स से शिकायत की है और इस बारे में पूछने पर एएनआई की संपादक ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं कहना है।