आज के अखबारों में दो चीजें गौरतलब हैं। मुख्य न्यायाधीश बेदाग करार दिया जाना और प्रधानमंत्री तथा भाजपा अध्यक्ष को चुनाव आयोग से मिल रहे क्लीन चिट पर सवाल। कहने की जरूरत नहीं है कि मुख्य न्यायाधीश वाली खबर सभी अखबारों में प्रमुखता से है पर क्लीनचिट के मामले को उतनी प्रमुखता नहीं मिली है। अखबारों का काम जनमत बनाना और जनता को सूचना देना है। इस लिहाज से चुनावी और राजनीति से जुड़ी खबरों का मामला मुख्य न्यायाधीश पर लगे आरोपों की तुलना में बहुत महत्वपूर्ण है। पर हमारे अखबार मुख्य न्यायाधीश से संबंधित सूचना तो प्रमुखता से दे रहे हैं पर चुनावी खबरों के मामले में सभी अखबारों का रुख अलग है।
द टेलीग्राफ ने आज प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष के साथ मुख्य न्यायाधीश को क्लीन चिट मिलने की दोनों खबरों को एक साथ छापा है और दोनों का संयुक्त शीर्षक है, क्लीनचिट कंट्री। मैं मुख्य न्यायाधीश वाली खबर की चर्चा नहीं करके चुनाव आयोग के क्लीन चिट की चर्चा करूंगा। चुनाव के समय इस खबर का ज्यादा महत्व है पर इस खबर को महत्व कम मिला है। इसे एक और सूचना के साथ देखिए जो टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है और दैनिक भास्कर में दो कॉलम में। मैं इस खबर का महत्व बता रहा हूं आप देखिए आपके अखबार ने कितना महत्व दिया।
चुनाव के बीच राजनीतिक मामलों या खबरों के मामले में जब सुप्रीम कोर्ट में ऐसा हो रहा है तो राजनीतिक खबरों का महत्व समझा जा सकता है और ऐसे में इन्हें महत्व नहीं मिलना अकारण नहीं है। पाठकों को यह कारण जानना-समझना चाहिए। खासकर तब जब उड़ीसा में आए भयंकर समुद्री तूफान फनी से निपटने के लिए उड़ीशा सरकार की तैयारी और कार्रवाई की तारीफ प्रधानमंत्री मतदान निपटने के बाद करें। आज के अखबारों में प्रधानमंत्री ने उड़ीसा के मुख्यमंत्री की तारीफ की – खबर तो है पर इस तथ्य को रेखांकित नहीं किया गया है कि यह तारीफ मतदान निपटने के बाद की गई। इसे टेलीग्राफ ने इसे बताया है।
इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर है। शीर्षक हिन्दी में लिखा जाए तो कुछ इस तरह होगा, “(नवीन) पटनायक ने फनी का मुकाबला कुशलता से किया, ममता ने मुझसे फोन पर बात नही की : प्रधानमंत्री”। उपशीर्षक है, “मोदी के साथ मंच साझा नहीं करूंगी, नए प्रधानमंत्री से बात करूंगी”। अब इसी खबर को अमर उजाला में देखिए और समझिए। यहां इसे बेल बूटों से सजाकर प्रस्तुत किया गया है। सियासत में तूफान – के तहत फ्लैग शीर्षक है, पश्चिम बंगाल की रैली में प्रधानमंत्री ने किया हमला, सीएम ममता बनर्जी ने भी किया पलटवार। ध्यान दीजिए, यहां, नवीन पटनायक वाली खबर गायब है। एक तरफ मोदी की फोटो के साथ खबर है, “ममता को दो बार फोन किया, नहीं की बात …. दीदी में अहंकार : मोदी”।
दूसरी ओर ममता बनर्जी की फोटो के साथ खबर है। इसका शीर्षक है, “मोदी के हाथ खून से सने, उन्हें पीएम नहीं मानती ममता”। यह देश की राजनीति का स्तर है और अखबारों का भी। उन्हें सस्ते में पन्ना भरना है तो रैली की एजेंसी की खबर छाप दो। यह मत सोचो कि क्या प्रधानमंत्री को खुद यह बताना चाहिए कि ममता बनर्जी ने उनसे बात नहीं की। ममता कहतीं कि वे व्यस्त रहीं बात नहीं कर पाईं अफसोस है तो कैसा लगता? मुझे नहीं लगता कि चुनाव प्रधार की इस गहमागहमी में प्रधानमंत्री कार्यालय के सब कार्य सामान्य ढंग से चल रहे होंगे। ऐसे में इस आरोप का कोई मतलब नहीं था। पर है तो वह राजनीतिक ही। ममता बनर्जी को भी राजनीति ही करनी है। जैसा आरोप वैसा जवाब।
अखबार इसे नहीं छापकर या द टेलीग्राफ अथवा इंडियन एक्सप्रेस की तरह छापकर अपना स्तर बनाए रख सकता था। पर अखबार ने तो इन दो खबरों के बीच एक और दिलचस्प खबर छापी है – राजीव गांधी के नाम पर चुनाव लड़कर दिखाएं – पीएम की कांग्रेस को चुनौती। यह खबर दूसरे अखबारों में भी अलग अंदाज में है। मुझे लगता है कि कांग्रेस ने इस घटिया चुनौती को स्वीकार नहीं किया है और इसलिए कोई ‘पटलवार’ नहीं है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मोदी जी रफाल या बंगारू लक्ष्मण के नाम पर चुनाव लड़ने की चुनौती मिलने पर क्या करेंगे। या पांच साल के अपने काम पर चुनाव लड़ने से क्यों भाग रहे हैं? अखबार ने क्लीन चिट वाली खबर को, “मोदी को दो और मामलों में क्लीन चिट” तथा सुप्रीम कोर्ट वाली खबर को “राफेल और राहुल के खिलाफ अवमानना पर सुनवाई 10 को” शीर्षक से अलग-अलग दो कॉलम में छापा है।
दैनिक जागरण में पहले पन्ने पर दोनों खबरें नहीं हैं। पर दूसरे पहले पन्ने पर लीड है, नामदार जितना रोएंगे, पुरानी सच्चाई उतनी खुलेगी : मोदी। उपशीर्षक है, पीएम बोले – दम है तो नामदार बोफोर्स पर मैदान में आकर चुनौती स्वीकार करें। राफेल और राहुल गांधी वाली खबर का शीर्षक है, राफेल मामले पर 10 को होगी सुनवाई। इसके साथ एक त्वरित टिप्पणी भी है, पीएम की खरी-खरी से तिलमिलाई कांग्रेस। कल मैंने इस “खरी-खरी” पर टेलीग्राफ की रिपोर्ट और टिप्पणी की चर्चा की थी और उसका अनुवाद भी पेश किया था।
राजस्थान पत्रिका में पहले पन्ने पर एक खबर है जो दूसरे अखबारों में इस तरह पहले पन्ने पर नहीं दिखी। फ्लैग शीर्षक है, पीएम को क्लीन चिट देने के मामले में, शीर्षक है, एक आयुक्त की असहमति पर कुछ बोलना नहीं चाहता चुनाव आयोग। इसमें अखबार ने लिखा है,उप चुनाव आयुक्त संदीप सक्सेना ने सफाई दी कि …. निर्णय किस तरह लिया गया यह चुनाव आयोग का आंतरिक मसला है और इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।” अखबार ने इसके साथ सुप्रीम कोर्ट वाली खबर भी छापी है। शीर्षक है, चुनाव आयोग के दोहरे मानदंड पर सुनवाई 8 मई को।
चुनाव के दौरान आरोप-प्रत्यारोप कोई बड़ी बात नहीं है। अगर आरोप लगाने वाले अपने स्तर का ध्यान न रखें तो अखबार भी कब तक स्तर देखें या उसकी परवाह करें। लेकिन तथ्यों को सही परिप्रेक्ष्य में रखना तो जरूरी है। इस लिहाज से चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती – मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने भर से खबर नहीं है। खबर यह भी बताती है कि विपक्ष अपना काम कर रहा है (याचिका कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने दायर की है और अभिषेक मनु सिंघवी उनके वकील हैं)। अखबार अगर राहुल गांधी के खिलाफ याचिका को महत्व देते हैं तो यह भी वैसे ही महत्वपूर्ण है। खासकर तब जब सत्तारूढ़ दल के पास भरपूर पैसा है और मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने के लिए वह विज्ञापन व दूसरे उपाय का सहारा ले सकता है, ज्यादा लेता प्रतीत हो रहा है।