आज हिन्दुस्तान में राजीव जायसवाल की एक खबर प्रमुखता से छपी है, “लेनदेन में गलत ‘आधार’ दिया तो 10 हजार रुपये दंड”। एक खबर के रूप में इसे गलत या बेकार नहीं भी माना जाए तो यह सवाल उठता है कि जिस अधिकारी ने यह खबर दी उससे क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए था गलत पैन कार्ड नंबर देने के पुराने मामले कितने हैं, उनमें क्या कार्रवाई हुई है और ऐसा कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? कायदे से खबर तभी पूरी होती। यह खबर आधिकारिक घोषणा नहीं है, बल्कि अटकल है।
वाकई, किसी अनाम अधिकारी ने दी है तो सही भी हो सकती है पर इसे गंभीर बनाने के लिए ऐसे कानून की आवश्यकता का आधार भी बताया जाना चाहिए था। अभी तक ऐसे मामले बहुत कम सुनने में आए हैं कि गलत आधार दिया जा रहा हो। वैसे तो आयकर के मामलों में पैन ही देना होता था। इस बार बजट में कहा गया है कि आधार से भी काम चलेगा (संभवतः सिर्फ रिटर्न के मामले में) और अभी इस घोषणा के एक साल नहीं हुए इससे आगे की घोषणा हो गई।
यही नहीं, कोबरा पोस्ट ने अक्तूबर 2018 में खुलासा किया था कि भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा समेत 21 दलों के 194 नेताओं ने चुनाव आयोग को गलत पैन दिया था। इनमें छह पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम शामिल हैं। कोबरा पोस्ट के अनुसार चुनाव आयोग को गलत पैन देने वाले नेताओं में (उस समय की स्थिति के अनुसार) 10 पूर्व कैबिनेट मंत्री, आठ पूर्व मंत्री, 54 मौजूदा विधायक, 102 पूर्व विधायक, एक पूर्व डिप्टी स्पीकर, एक पूर्व स्पीकर, एक पूर्व सांसद, एक उपमुख्यमंत्री शामिल है। चुनाव सुधार पर काम करने वाले एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक्स रिफॉर्म्स) द्वारा जारी रिपोर्ट में भी ऐसा ही खुलासा किया गया था। लेकिन इस पर किसी कार्रवाई की खबर नहीं है। एडीआर के मुताबिक, (पिछली लोकसभा के) सात सांसदों और 199 विधायकों ने चुनाव आयोग को अपने पैन की डीटेल नहीं दी है। एडीआर ने चुनाव आयोग के पास जमा कराए गए शपथ पत्र का अध्ययन करने के बाद यह जानकारी दी है।
एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि (उस समय की स्थिति के अनुसार) 11 सांसद व 35 विधायक ऐसे भी हैं, जो दूसरी-तीसरी बार चुने गए, लेकिन उनके शपथ पत्र में दी गई पैन डीटेल में गड़बड़ी है। पैन डीटेल नहीं देने वाले सांसदों व विधायकों में कई करोड़पति हैं। सात सांसदों में से मिजोरम के कांग्रेसी सांसद सीएल रुआला की संपत्ति 2.57 करोड़ तो उड़ीशा के भुवनेश्वर से सांसद प्रसन्ना कुमार की संपत्ति 1.35 करोड़ रुपए है। हालांकि इस लिस्ट में लक्षद्वीप के मोहम्मद फैजल भी शामिल हैं, जिनकी संपत्ति कुल 5.38 लाख रुपए ही है। इसमें आसाम करीमगंज के राधेश्याम बिश्वास (संपत्ति 70.68 लाख), ओडिशा जाजपुर की सांसद रीता तराई (संपत्ति 16.22 लाख), तमिलनाडु, कृष्णानगरी के सांसद अशोक कुमार (संपत्ति 11.76 लाख) व तिरुवनामलाई के सांसद वनारोजा आर (संपत्ति 37 लाख) के नाम भी शामिल हैं। इन सांसदों ने अपने शपथ पत्र में पैन डिटेल नहीं दी है।
ऐसी हालत में आज यह खबर बता रही है कि सरकार ने बड़े लेन-देन के लिए पैन के स्थान पर आधार कार्ड नंबर देने का विकल्प दिया है, लेकिन लेन-देन के लिए गलत आधार नंबर देने पर आपको दस हजार का जुर्माना देना पड़ा सकता है। संबंधित प्रावधान और अधिसूचना जारी होने के बाद यह दंडात्मक प्रावधान एक सितंबर, 2019 से लागू होने की ‘संभावना’ है। अधिकारियों ने बताया कि दस्तावेजों में आधार संख्या सही नहीं पाए जाने पर इसे प्रमाणित करने वाले को भी दस हजार जुर्माना देना होगा। हालांकि जुर्माना आदेश से पहले संबंधित व्यक्ति की बात सुनी जाएगी। एक अधिकारी ने बताया कि मौजूदा कानून को 5 जुलाई की बजट घोषणा के अनुरूप संशोधित किया जाएगा जिसमें पैन के स्थान पर आधार कार्ड के इस्तेमाल की अनुमति दी थी। इसके लिए धारा 272बी में संशोधन किया जाएगा। विशेषज्ञों के अनुसार, आयकर अधिनियम की धारा 272बी में पैन के उपयोग से संबंधित उल्लंघनों पर दंडात्मक प्रावधान हैं।
इस खबर में यह नहीं बताया गया है कि 5 जुलाई को बजट के बाद 8 जुलाई को खबर छपी थी कि सिर्फ आधार से टैक्स रिटर्न भरा तो नया पैन कार्ड मिल जाएगा। इसके अनुसार इनकम टैक्स रिटर्न में सिर्फ आधार का जिक्र मिलेगा तो विभाग यह मानेगा कि आपके पास पैन नहीं है और नया पैन जारी कर देगा या यह खबर गलत है। आठ जुलाई की खबर के बाद मैंने लिखा था, इसका मतलब यह हुआ कि आपके पास पैन है और अगर आपने किसी कारण से आधार पर रिटर्न फाइल कर दिया तो आपके पास दो पैन हो जाएंगे। आपने मांगा नहीं पर आपको आवंटित कर दिया जाए तो दोषी कौन होगा – यह भी पता नहीं है। सरकार ने जब पैन के बिना आधार पर रिटर्न दाखिल करने की सुविधा दी है तो आपको दोषी नहीं माना जाना चाहिए और अगर आप पैन होते हुए पैन की बजाय आधार पर रिटर्न फाइल करते हैं तो आपके आधार से पैन ढूंढ़ा जा सकता है, ढूंढ़ा जाना चाहिए और नहीं होने पर ही नया पैन जारी होना चाहिए। पर खबरों में ऐसा नहीं है।
आज यह खबर और उलाझाती है, इसमें कहा गया है, “… पैन के स्थान पर आधार कार्ड के इस्तेमाल की अनुमति दी थी। इसके लिए धारा 272बी में संशोधन किया जाएगा।” इसमें पहले की खबर (भले दूसरे अखबार की) पर कोई स्पष्टीकरण नहीं है ना उसका हवाला है। इसकी जगह खबर में कहा गया है, “लेन-देन पर नजर रहेगी कंसल्टिंग फर्म पीडब्ल्यूसी से जुड़े अधिकारी कुलदीप कुमार ने बताया कि पैन के स्थान पर आधार का इस्तेमाल करने की इजाजत देने का फैसला स्वागत योग्य है। सरकार ने वित्तीय लेन-देन पर नजर रखने के लिए यह फैसला किया है। इसके जरिये अधिक से अधिक लोगों को कर के दायरे में लाया जा सकेगा। साथ ही फर्जी लेन-देन पर लगाम भी लगाया जा सकेगा।” सवाल उठता है कि सांसदों, विधायकों, मंत्रियों के 2018 के मामले में अभी तक कार्रवाई नहीं है, इसे बारे में पूछा भी नहीं जाए तो आगे बनने वाले कानून का क्या मतलब? क्या पुराने मामले में कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि कानून नहीं है? अगर ऐसा है तो वह भी लिखा जाना चाहिए।
वैसे तो यह सूचना आठ जुलाई की खबरों के साथ भी थी। आज की खबर के साथ भी है कि देश में 1.2 अरब लोगों के पास आधार कार्ड या नंबर है। इसकी तुलना में केवल 22 करोड़ पैन हैं। करदाता पैन नंबर न होने पर आधार कार्ड नंबर से आयकर रिटर्न भर सकते हैं। बैंक खाता खोलने, क्रेडिट या डेबिट कार्ड के लिए आवेदन करने, होटल व रेस्तरां बिलों का भुगतान करने के लिए आधार नंबर इस्तेमाल कर सकते हैं। यह नई खबर है और आधार पर रिटर्न दाखिल करने वालों का पैन जारी होगा का उलट है। इसमें कहा गया है कि सरकार कानून संशोधन पर विचार कर रही है, ताकि आधार के लिए दंड प्रावधान को भी बढ़ाया जा सके। प्रस्तावित संशोधन में दंड और कठोर होगा। मौजूदा कानून अस्पष्ट है और मूल्यांकन अधिकारियों के विवेक पर निर्भर करता है। लेकिन स्थिति इस खबर से भी नहीं सुलझती है।