कश्मीर मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मध्यस्थता के लिए कहने के अमेरिकी राष्ट्रपति के दावे और उसपर प्रतिक्रिया तथा संबंधित खबरें आज लगातार दूसरे दिन लगभग सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। व्हाइट हाउस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से बातचीत के दौरान जिस तरह उन्होंने यह दावा किया था और इसके बाद भारत सरकार ने इसका खंडन कर दिया तो इस मामले में कुछ बचा नहीं था। इसीलिए मैंने कल लिखा था, “अमेरिकी राष्ट्रपति का न बयान न पेशकश, भारतीय अखबारों में लट्ठम-लट्ठा”। फिर भी, यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है और जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है, “ट्रम्प के ‘अपमानजनक’ दावे के बाद नुकसान कम करने की अहम कोशिश में भारतीय अधिकारियों ने चर्चा के रिकार्ड की जांच की”। अब मामला अपमानजनक है और अधिकारियों ने जांच की तो खबर छपनी ही है। सूत्रों के हवाले से भी।
कायदे से या तो आप अमेरिकी राष्ट्रपति की बात पर यकीन करेंगे या नहीं करेंगे। उसी तरह भारत सरकार की बातों पर यकीन करेंगे या नहीं करेंगे। पर चूंकि दावे में प्रधानमंत्री शामिल हैं इसलिए खंडन उन्हें खुद करना चाहिए और कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा भी है कि ऐसी परंपरा रही है। फिर भी प्रधानमंत्री का कुछ नहीं कहना और संसद में रहते हुए अपनी नन्ही दोस्त से मिलना, फोटो इंस्टाग्राम करना अलग तरह की प्रचारनीति है। इस चक्कर में अखबारों ने इमरान खान के इस दावे को भी महत्व नहीं दिया है कि, “उपमहाद्वीप को 70 साल से उलझाकर रखने वाले कश्मीर मुद्दे के हल के लिए वार्ता की मेज पर पाक और भारत को लाने के लिए मध्यस्थता करने के राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रस्ताव पर भारत की प्रतिक्रिया से चकित हूं। कश्मीर की कई पीढ़ियों ने इसे झेला है और वे रोजाना इसे झेल रहे हैं तथा संघर्ष का समाधान किए जाने की जरूरत है।” (नवोदय टाइम्स और हिन्दुस्तान)
अमर उजाला ने इस बारे में लिखा है, “ट्रम्प के बयान पर संसद से अमेरिका तक हंगामा”। इसमें मुख्य बात यही है कि विदेश मंत्री के आश्वासन से विपक्ष संतुष्ट नहीं है और मांग कर रहा है कि प्रधानमंत्री इस बारे में बोलें। पर अखबार बता रहा है कि अमेरिका तक हंगामा है। यह नहीं बता रहा है कि प्रधानमंत्री ने अभी तक कुछ नहीं कहा है या इसी कारण हंगामा है। फॉलोअप के रूप में आज नवभारत टाइम्स ने भी इस खबर का शीर्षक लगाया है, “अमेरिका बोला, भारत-पाक ही देखें कश्मीर, फिर भी दिल्ली में भूचाल”। इस मुख्य खबर के साथ हाईलाइटेड है, “सरकार ने ट्रंप की बात को गलत कहा”। अखबार ने मुख्य खबर के साथ एक औऱ खबर छापी है, “विपक्ष ने कहा, पीएम खुद आकर संसद में जवाब दें”। कायदे से यह मुख्य या बड़ी खबर यह है। पर भारतीय अखबार ट्रम्प के दावे पर ही पिले हुए हैं। प्रधानमंत्री इसपर नहीं बोल रहे हैं, यह गौण है। हो सकता है, प्रधानमंत्री इसे जवाब देने लायक नहीं मानते हों। और यही राय अखबारों की भी हो। पर तब यह मुद्दा अखबारों में है किसलिए? हिन्दुस्तान ने विदेश मंत्री जयशंकर के बयान को प्रमुखता दी है। हालांकि इमरान खान के बयान को भी छापा है। और एक डबल कॉलम खबर देकर औपचारिकता पूरी कर दी है।
दैनिक जागरण ने बताया है कि, राष्ट्रपति ट्रंप के बयान से बैकफुट पर अमेरिका। लेकिन खबर शुरू होती है, कश्मीर मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मध्यस्थता के प्रस्ताव संबंधी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावे ने भारत में सियासी तूफान तो खड़ा कर ही दिया है, अमेरिका में भी घमासान मचा हुआ है। अमेरिकी सरकार को अपने राष्ट्रपति का बचाव करते नहीं बन पा रहा है। कश्मीर को भारत-पाक के बीच का मसला बताकर अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने जहां नुकसान की भरपाई की कोशिश की है, वहीं अमेरिकी संसद के एक प्रभावशाली सदस्य ने अपने राष्ट्रपति के बयान को लेकर भारतीय राजदूत से माफी तक मांग ली है। मेरा मानना है कि अमेरिका इसे अपना नुकसान मान रहा है और इसकी भरपाई की कोशिश कर रहा है तो यह उसका मामला है। हमारे यहां इसे इतना महत्व क्यों? वह भी तब जब हमारे यहां दिस कारण से हंगामा है उसकी चर्चा नहीं है।
इसी तरह, दैनिक भास्कर ने लिखा है, अमेरिकी राष्ट्रपति का ट्रम्प कार्ड उल्टा पड़ा। मुख्य शीर्षक है, अमेरिका ने माना – ट्रम्प और पीएम मोदी की बातचीत में कश्मीर का जिक्र नहीं। अखबार ने यह भी बताया है कि अमेरिका ट्रम्प के बयान का तीन स्तर पर डैमेज कंट्रोल कर रहा है। अमेरिकी सांसदों ने भी कहा- ट्रम्प का बयान काफी भ्रामक है।
इंडियन एक्सप्रेस ने इस अखबार को फॉलो अप की तरह छापा है और बताया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के खुलासे के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का बयान देर रात ही आ गया था और प्रधानमंत्री की सहमति से जारी किया गया था। कोई 11 घंटे बाद विदेश मंत्री ने राज्य सभा में बयान दिया तो सारी जांच और पुष्टि के बाद उसमें दो ही शब्द जोड़े गए थे – कैटेगोरिकल ऐश्योरेंस यानी स्पष्ट आश्वासन। यही नहीं, एक्सप्लेन्ड में एक्सप्रेस ने यह भी बताया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मामले में नहीं बोलेंगे क्योंकि भारत नहीं चाहता कि इस मामले को और बढ़ाया जाए। दिल्ली आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई में वाशिंगटन का समर्थन चाहता है और ट्रम्प का रिकार्ड उनके कई पूर्ववर्तियों के मुकाबले बेहतर रहा है। दिल्ली यह मौका चूकना नहीं चाहेगा जिससे पाकिस्तान को कामयाबी मिले।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर भी यही है कि अधिकारियों ने तथ्यों और रिकार्ड की जांच के बाद पुष्टि की है कि ओसाका में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच कश्मीर पर या इस विवाद में मध्यस्थता करना पर कोई चर्चा नहीं हुई है। अखबार ने ‘सूत्रों के हवाले से’ यह भी लिखा है कि अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारियों ने भी भारतीय अधिकारियों से पुष्टि की है कि उनके रिकॉर्ड में ऐसी कोई चर्चा नहीं है और दोनों नेताओं के बीच (अकेले में) आमने सामने की कोई बात नहीं हुई थी। आप समझ सकते हैं कि ये सूत्र भारतीय अधिकारी ही हैं। यह भी बताया गया है कि त्रिपक्षीय वार्ता के बाद दोनों नेता साथ ही चलकर अपने निर्धारित कमरों में गए पर उस समय पत्रकार और फोटोग्राफर थे और वे तस्वीर खिंचवाने के लिए रुके भी थे।
हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है कि अमेरिका ट्रम्प की मध्यस्थता की पेशकश से मुकरा। हालांकि, यह कल ही छप चुका है और कल दैनिक भास्कर ने लिखा था, …. व्हाइट हाउस से जारी बयान में कश्मीर मुद्दे का जिक्र नहीं किया गया है। अखबार ने मुख्य खबर के साथ एक बॉक्स में अमेरिका के विदेश मंत्रालय के दक्षिण व मध्य एशिया मामलों से संबंधित विभाग के उप सचिव एलिस वेल्स ने कहा, कश्मीर मामला द्विपक्षीय है पर पाकिस्तान और भारत इस मुद्दे पर बात करें तो ट्रम्प प्रशासन स्वागत करेगा और अमेरिका सहायता करने के लिए तैयार है। इसके अलावा, विदेश मंत्री और कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा का बयान भी छापा है। शर्मा ने कहा है कि इस मामले में प्रधानमंत्री को जवाब देना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी परंपरा है कि प्रधानमंत्री विदेश जाते हैं या कोई अंतरराष्ट्रीय मसला हो तो प्रधानमंत्री जवाब देते हैं। प्रधानमंत्री को जवाब देना चाहिए। उन्हें आने दीजिए।
द टेलीग्राफ ने इसे लीड बनाया है। शीर्षक है, “क्या ट्रम्प ने कहानी गढ़ ली? कितना अशिष्ट है”। अखबार लिखता है, अमेरिका और भारत ट्रम्प के दावे का असर कम करने के लिए जूझते रहे। पर दोनों प्रमुख पात्रों ने स्थिति स्पष्ट करने के लिए कुछ खास नहीं किया। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेश मंत्री और पूर्व राजनयिक जयशंकर को इस काम में लगा रखा है तो अमेरिकी राष्ट्रपति के सर्वोच्च सहायक ने अपने बॉस की साख की पुष्टि की और कहा कि ट्रम्प (कहानियां) नहीं गढ़ते हैं। एक रिपोर्टर ने ट्रम्प के मुख्य आर्थिक सलाहकार, लैरी कुडलोव से पूछा कि क्या प्रधानमंत्री ने यह सब खुद गढ़ लिया है। इसपर उन्होंने कहा, नहीं राष्ट्रपति कुछ नहीं गढ़ते हैं। यह बहुत अशिष्ट सवाल है। मैं इससे अलग होता हूं। इसपर कुछ नहीं बोलूंगा।