अंग्रेजी दैनिक The Telegraph (द टेलीग्राफ) ने आज सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों को लीड बनाया है और दोनों का एक शीर्षक लगाया है, “दि इंपॉर्टेंस ऑफ ‘बट’ (‘लेकिन’ का महत्व)”। इसके तहत दो खबरें हैं। पहली का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस प्रकार होता, “कमल की 17 पंखुड़ियां अलग ही हैं लेकिन चुनाव चुनाव लड़ सकती हैं”। दूसरी खबर का शीर्षक है, “सीजेआई ऑफिस अंडर आरटीआई ऐक्ट बट विद राइडर्स” यानी मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआई कानून के तहत लेकिन शर्तों के साथ।
पहली खबर पर आर बालाजी की बाईलाइन है।
सुप्रीम कोर्ट ने 17 बागी विधायकों (अखबार ने कानून निर्माता लिखा है) को अयोग्य ठहराना सही माना है लेकिन अगले महीने राज्य में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में इन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी है। इन कानून निर्माताओं के दल बदलने से तथाकथित “ऑपरेशन कमल” का माहौल तैयार हुआ था। इससे कर्नाटक की जेडीएस-कांग्रेस की सरकार गिर गई थी औऱ भाजपा नेता बीएस येदुरप्पा का मुख्यमंत्री के रूप में वापस आना संभव हुआ था। अयोग्य ठहराए जाने को सुप्रीम कोर्ट की पुष्टि मिलना दलबदल की राजनीति के चेहरे पर एक तमाचा है।
The Supreme Court has upheld the disqualification of 17 rebel lawmakers whose defection set the stage for the so-called “Operation Kamal” in Karnataka but allowed them to contest next month’s Assembly by-elections in the state.https://t.co/dnwRG2glUK
— The Telegraph (@ttindia) November 14, 2019
इसकी वजह से बहुमत न होने के बावजूद भाजापा की सहेली पार्टियों ने कई राज्यों में सरकार बना ली है। दूसरी ओर, पार्टी के नेता सार्वजनिक जीवन में उच्च नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष (एक कांग्रेस नेता) के फैसले को उलट दिया है। इससे भाजपा को चेहरा छिपाने का मौका (भी) मिल गया है। विधानसभा अध्यक्ष ने अयोग्य ठहराए गए इन नेताओं को विधानसभा के मौजूदा सत्र के खत्म होने (2023) तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया था। यह निर्णय उस समय एक ऐसी बाधा के रूप में देखा गया था जो मंत्री बनने की उम्मीद में दल बदलने की सोचते।
खंडपीठ ने कहा कि विधानसभा अध्यक्षों में निष्पक्ष रहने की संवैधानिक जिम्मेदारी के खिलाफ कार्रवाई करने की बढ़ती प्रवृत्ति है। इसके अलावा, राजनीतिक दल विधायकों की खरीद फरोख्त और भ्रष्ट आचरण … जैसे व्यवहार कर रहे हैं। इन परिस्थितियों में संसद को दसवीं अनुसूची को मजबूत करने के लिए कतिपय पहलुओं पर पुनर्विचार करने की जरूरत है ताकि इस तरह की अलोकतांत्रिक प्रवृत्तियों को हतोत्साहित किया जा सके। इन 17 विधायकों ने एक जुलाई और 17 जुलाई को इस्तीफे दिए थे जिससे एचडी कुमारस्वामी की सरकार गिरने की शुरुआत हुई थी।
बागी विधायकों ने इस्तीफा देने के बावजूद उसी महीने बाद में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य ठहराए जाने के उनके फैसले को चुनौती दी थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि विधायक को इस्तीफा देने का अधिकार है और यह भी इस्तीफा स्वैच्छिक और वाजिब है इसे विधानसभा अध्यक्ष की मर्जी और इच्छा से तय नहीं किया जा सकता है। …. आगे कानूनी तर्क और दलील है। अगर आप देखना चाहें तो अंग्रेजी की पूरी खबर का लिंक कमेंट बॉक्स में है।
दूसरी खबर भी आर बालाजी की बाईलाइन वाली है
इसमें बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला दिया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश आरटीआई कानून के तहत जजों की नियुक्ति के संबंध में कॉलेजियम के निर्णय का खुलासा करने के लिए बाध्य हैं। यह निर्विवाद है कि भारत की सुप्रीम कोर्ट ‘पबलिक अथॉरिटी’ है। भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय और इस मामले में जजों का भी सुप्रीम कोर्ट से अलग नहीं है और सुप्रीम कोर्ट का अभिन्न भाग है जो एक संस्धा (बॉडी, अथॉरिटी और इंस्टीट्यूशन) है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने फैसला दिया कि नियुक्तियों के संबंध में कॉलेजियम द्वारा लिए गए अंतिम निर्णय का खुलासा आरटीआई कानून के तहत करना होगा लेकिन निर्णय करने के लिए जिन कारणों और अन्य बातों को अपनाया (का सहारा लिया) गया है उसे सीजेआई द्वारा बताया जाना जरूरी नहीं है। अंतिम निर्णय बुधवार के फैसले से पहले भी (सुप्रीम कोर्ट के वेबसाइट पर) अपलोड किए जा रहे थे। पर यह स्वैच्छिक तौर पर किया जा रहा था। अब अंतिम निर्णय के खुलासे को आवश्यक बना दिया गया है – अगर आरटीआई आवेदन दाखिल किया जाए।
फैसले में कहा गया है, जजों के प्रोमोशन के संबंध में फाइल की नोटिंग सुप्रीम कोर्ट के काम-काज के संबंध में महज सूचना नहीं होती है बल्कि जिस जज की तरक्की पर विचार किया जा रहा है उससे संबंधित भी होती है। इसलिए, मांगी गई सूचना एक तीसरे पक्ष से संबंधित होती है और तीसरे पक्ष द्वारा दी जाती है। इसलिए इसे उस तीसरे पक्ष द्वारा गोपनीय माना जाता है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना लिखित फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा है, “धारा 11 (गोपनीय सूचना को छूट) के सहत प्रक्रिया प्रतिवादी द्वारा मांगी गई सूचना के संबंध में भी लागू है और इसका अनुपालन होना चाहिए।”
कॉलेजियम आमतौर पर भिन्न सूचनाओं की जांच करता है इनमें अन्य जजों, खुफिया ब्यूरो और केंद्र व राज्य सरकारों से मिली सूचना के साथ बार के सदस्यों से मिली सूचना भी होती है जो किसी जज को सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का जज बनाने से संबंधित होती है। यह फैसला पांच जजों की पीठ का है। इसमें कहा गया है कि आरटीआई दाखिल होने पर सीजेआई और अन्य जजों की संपत्ति के संबंध में जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। कानून बनाने के क्षेत्र में चुनाव के लिए खड़े होने वाले सभी उम्मीदवार को अपनी संपत्ति की घोषणा अब खुद करनी होगी।
अदालत ने आगे कहा, …लेकिन निजी सूचना का खुलासा तभी किया जाएगा जब जनहित साबित हो जाएगा। अखबार ने लिखा है कि अदालत ने जिसे “निजी” कहा है उसमें अस्पष्टता का एक पुट आ गया है। फैसले में कहा गया है, मेडिकल रिकॉर्ड, उपचार, दवाई की पसंद, जिन अस्पतालों और चिकित्सकों की सलाह ही गई उसकी सूची, दर्ज किए गए नतीजे (फाइनडिंग) और परिवार के सदस्यों से संबंधित ऐसी जानकारी के साथ संपत्ति, देनदारी, आयकर रिटर्न, निवेश का विवरण, उधार दिया और लिया आदि निजी सूचना हैं। इस वाक्य में संपत्ति शामिल किए जाने से भ्रम पैदा हुआ है। कुछ वकीलों ने कहा कि संपत्ति का संदर्भ रिश्तेदारों तक सीमित है, स्वयं जजों के मामले में नहीं।
इसका मतलब हुआ कि अलग-अलग मामलों में तय हो कि खुलासा जनहित में है तो आवश्यक विवरण दिया जाएगा। पूरी खबर लंबी है। और जानकारी चाहें तो अंग्रेजी में मूल खबर का लिंक देखें। अखबार का अंदर का एक पूरा पन्ना इन दो मामलों से संबंधित खबरों और पहले पन्ने पर प्रकाशित खबरों के बाकी हिस्से से भरा हुआ है। मैंने लगभग उतना ही अनुवाद किया है जो पहले पन्ने पर है। इन खबरों में एक खबर यह बताती है कि दल बदल करने वाले 17 विधायक भाजपा में शामिल होने के लिए तैयार है और इससे भाजपा में अंदरुनी अशांति है। एक अन्य खबर का शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट ने डिसेन्ट (असहमति) को सख्ती से ऊपर रखा। कांग्रेस ने ऑपरेशन कमल की जांच कराने की मांग की है। अखबार ने इस खबर को भी चार कॉलम में छापा है।