पश्चिम बंगाल में एक दिलचस्प मामला चल रहा है। आप जानते हैं कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस का शासन है और पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी जगह बनाई है। विधानसभा चुनाव में इससे भी बेहतर प्रदर्शन की तैयारी है। इसमें राजनीति और इसके तहत आरोप-प्रत्यारोप और हिंसा सब आम है। लोकसभा चुनाव के बाद इसमें तेजी आई थी और उन्हीं दिनों बंगाल की खबरें दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर छपने लगी थीं।
उसी क्रम में एक मरीज की मौत के बाद डॉक्टरों की पिटाई हो गई, हड़ताल हुई – उसकी रिपोर्टिंग सेवा भाव से भक्ति के साथ हुई और राजनीतिक नफा-नुकसान का हिसाब रखा गया। इस बीच आईएमए ने बंगाल के चिकित्सकों का समर्थन किया और बंगाल का मामला देशव्यापी हो गया। पश्चिम बंगाल में डॉक्टर की हड़ताल के बावजूद उतने मरीज नहीं मर रहे थे जितने बिहार के मुजफ्फरपुर में डॉक्टर्स की हड़ताल नहीं होने पर मर रहे थे। इसपर एक मित्र संपादक एंकर ने अभियान की तरह रिपोर्टिंग की तो यह आशंका जताई गई बिहार में नीतिश कुमार को निपटाने की भाजपाई राजनीति का भाग है मुजफ्फरपुर की रिपोर्टिंग।
नामुमकिन मुमकिन है के दावों के बीच मैं इस आरोप के विस्तार में नहीं जाकर आपको सिर्फ यह बताना चाहता हूं कि ये सब होते हुए मामला नियंत्रण से निकल गया लगने लगा था। आखिरकार चिकित्सकों की अखिल भारतीय हड़ताल पूरी हुई और बंगाल में चिकित्सकों की हड़ताल उससे पहले ही खत्म हो गई। मुजफ्फरपुर में मौतें जारी हैं और आज द टेलीग्राफ में खबर है कि गोऱखपुर में भी बच्चों की मौत हुई है। इस बीच पश्चिम बंगाल की खबरें छपने और पढ़ने से रह गईं। अब समझ में आ रहा है राज्य में भाजपा के पांव जमाने के बाद तृणमूल कांग्रेस के नेताओं (सांसद, राज्यसभा सदस्य से लेकर पार्षद और पंचायत सदस्य तक) पर आरोप है कि राज्य में इन लोगों ने जबरन पैसे लिए हैं। स्थानीय भाषा में इसे कट मनी कहा जाता है जो आम तौर पर पुलिस के हफ्ते या रंगदारी टैक्स की तरह है और कारोबारियों को सुरक्षित कारोबार करने देने के लिए उनसे जबरन वसूला जाता है। आरोप के लिहाज से यह कोई नई बात नहीं है लेकिन इसपर ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया दिलचस्प रही।
द टेलीग्राफ की आज की एक एक खबर के अनुसार 10 जून को उन्होंने एक ग्रीवांस सेल बनाने की घोषणा की थी और इसका एक टॉल फ्री नंबर, लिखित संदेश भेजने के लिए व्हाट्सऐप्प नंबर और एक ई मेल आईडी भी घोषित किया। इसके जरिए लोग वसूली की शिकायत कर सकते थे। 18 जून को टेलीविजन पर प्रसारित एक संदेश के जरिए पार्टी पार्षदों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “जिन लोगों ने पैसे लिए हैं, जाएं वापस करें”। इसके बाद से सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों द्वारा कट मनी दिए जाने के ढेरों आरोप सामने आए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि यह पार्टी के लिए अपमानजनक रहा है। पाठकों को याद दिलाऊं कि ऐसे मामलों में बचने के लिए यह शर्त जोड़ दी जाती है कि रिश्वत देना भी गैर कानूनी है इसलिए कार्रवाई पैसे लेने वालों और देने वालों के खिलाफ होगी। पर यहां चूंकि पैसे वापस किए जाने थे इसलिए मामला एकतरफा रहा है। इसे आप ममता बनर्जी की राजनीतिक कमजोरी, अनुभवहीनता या ईमानदारी मान सकते हैं। अभी उसपर चर्चा नहीं करके मैं अखबारों की रिपोर्टिंग की चर्चा करूंगा और जानना चाहूंगा कि दिल्ली के अखबारों में क्या है, कितना है।
पश्चिम बंगाल के अस्पतालों में चिकित्सकों की हड़ताल से पहले जिस ढंग से बंगाल की खबरें दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर छप रही थीं उस हिसाब से द टेलीग्राफ की निम्नलिखित खबरें दिल्ली में (पहले पन्ने पर भी) छप सकती थीं। आप देखिए, इनमें से कौन सी है और कौन सी नहीं। मैं आगे बता रहा हूं कि बंगाल में इसके बाद और क्या हुआ है और जो खबर टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है उसे भी बताता हूं। आप पढ़िए, समझिए और सोचिए कि क्या यह खबर नहीं है। पहले पन्ने पर नहीं तो क्या किसी पन्ने के लायक नहीं और अगर आपको लगता है कि खबर है – तो याद कीजिए कि छपी या नहीं और नहीं तो सोचिए कि क्यों? खबरें इस प्रकार हैं –
1. बांकुड़ा टीएमसी-भाजपा टकराव में किशोर को गोली लगी। (कक्षा आठ का बच्चा झगड़े में नहीं था, किताब खरीद रहा था।)
2. सांसदों की टीम ने कहा, पुलिस की गोली से दो मरे, भाजपा ने भाटपारा में पुलिस पर उंगली उठाई
3. रीयलटर (भू-संपदा के कारोबारी) ने टीएमसी सांसद, कौंसिलर पर आरोप लगया। आरोप है कि टीएंमसी के राज्यसभा सदस्य और पार्टी के पार्षद उससे 2012 से लाखों रुपए का वसूली कर रहे थे। अब वह पैसे वापस करने की मांग कर रहा है।
इसके अलावा टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर इस पूरे मामले से संबंधित दो और खबरें हैं। दोनों खबरों के लिए साझा फ्लैग शीर्षक है, गर्भवती पंचायत सदस्य के फरार होने से डर बढ़ा। इसके साथ दो कॉलम की दो खबरें हैं। पहली का शीर्षक है, पैसे वापस करने की मांग जारी है और दूसरी खबर का शीर्षक एक कॉलम में ही लिखा है, कट मनी वापस मांगने की चेतावनी एक गाने में। पहली खबर तो शीर्षक से ही स्पष्ट है कि तृणमूल पार्टी की पुलुर ग्राम पंचायत सदस्य एक गर्भवती पंचायत सदस्य, 29 साल की मणिमाला बागड़ी पैसे (वापस) मांगने वालों से डर कर घर छोड़कर भाग गई है। मणिमाला ने गए साल यह सीट निर्विरोध जीती थी। अखबार ने बताया है कि बीरभूम की इस पंचायत सदस्य के घर की छत टिन की है और उसे डर था कि पैसे मांगने के लिए उसके घर का घेराव किया जाएगा। इस स्थिति के मद्देनजर अधिकारियों ने कहा है कि इससे ऐसी स्थिति की शुरुआत होगी जिससे राज्य में कानून का शासन नहीं रह जाएगा।
यह जानने पर कि भाजपा के स्थानीय नेता पंचायत सदस्यों का घेराव करने की योजना बना रहे हैं। मणिमाला डर गई। इसकी तुलना भाजपाई पंचायत सदस्यों की स्थिति और दंबगई से कीजिए पर खबर यह है जो उसके पति ने कहा है, हम गरीब हैं और कट मनी य राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। मेरी पत्नी कभी-कभी घर से निकलती है। स्थानीय तृणमूल नेताओं ने उससे नामांकन भरने के लिए कहा था क्योंकि यह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित थी। अखबार ने फुलुर में कई सूत्रों के हवाले से लिखा है कि भाजपा ने पंचायत सदस्यों के घरों का घेराव किया। मणिमाला के पड़ोसी ने कहा कि भाजपा नेता घेराव के लिए आए तो थे पर जब उन्हें पता चला कि पति-पत्नी घर में नहीं हैं तो वे चले गए। खबर में आगे की सूचनाएं दिलचस्प हैं और भाजपा की राजनीति समझना चाहें तो पढ़ना चाहिए। अगर आप यह नहीं समझ पा रहे हैं कि भाजपा कैसे लोकप्रिय हो रही है तो भी यह खबर काम की है।
दूसरी खबर गायक नचिकेता से संबंधित है जो लंबे समय तक तृणमूल समर्थक के रूप में जाने जाते रहे हैं। उन्होंने एक गीत लिखा है तथा पार्टी छोड़ दी है। अखबार ने गीत के बोल बांग्ला में छापे हैं और उसका अंग्रेजी अनुवाद भी है। एक लाइन अंग्रेजी से हिन्दी करूं तो इस प्रकार है, मंत्री हों या संतरी, जनता है इस बार गुस्से से भरी …। एक और है, जो अभी तक आपका सम्मान करते थे, डर से आज्ञाकारी गुलाम बने हुए थे, वे अब सवाल पूछ रहे हैं क्या आपके पास जवाब है।
कहने की जरूरत नहीं है कि यह दिलचस्प राजनीतिक सूचना है। पहले पन्ने पर भी हो सकती थी। पर क्या आपके अखबार में है? बंगाल तो छोड़िए, टेलीग्राफ की खबर है कि गोरखपुर में एनसेफ्लाइटिस से 16 बच्चे मर गए आपको आपके अखबार ने बताया? टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर खबर है कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश एसएन शुक्ल को हटाने की कार्रवाई शुरू करने के लिए कहा है। एक इनहाउस पैनल ने 18 महीने पहले उन्हें मेडिकल कॉलेज के पक्ष में काम करने का दोषी पाया था और तब उनसे इस्तीफा देने और स्वेच्छा से रिटायरमेंट लेने के लिए कहा था। उन्होंने कुछ नहीं किया। क्या यह खबर आपको याद थी? 18 महीने में कहीं कुछ छपा था?