कर्नाटक का मामला वैसे नहीं बढ़ रहा है जैसी उम्मीद थी। शुरू में ऐसा दिखाया गया कि विधायक अपने-आप इस्तीफा दिए जा रहे हैं और विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफों पर फैसला नहीं कर रहे हैं। अभी तक की खबरों से समझ में आ रहा है कि इस्तीफा देने वाले कर्नाटक के विधायक जल्दी में थे। क्यों? यह अखबारों के लिए मुद्दा नहीं था। सब जानते हैं कि किसी भी नौकरी से इस्तीफा देकर मुक्त होने में समय लगता है। पहले नोटिस देना होता है और यह कितनी अवधि के लिए हो यह तय होता है। विधायकों के मामले में क्या ऐसा कोई नियम नहीं है? क्या विधायक इस्तीफा देकर किसी भी समय मुक्त करने के लिए कह सकते हैं? मैं नहीं जानता वास्तविक स्थिति क्या है पर खबरों से यह पता नहीं चल रहा है। क्या विधायकों को किसी भी समय इस्तीफा देकर मुक्त होने या सरकार गिराने (इससे गिर सकती हो तो) की आजादी है? मामला सुप्रीम कोर्ट में है। शायद इसपर भी बात हो।
मैं जो अखबार देखता हूं उनमें किसी ने शीर्षक में इसे ठीक से बताने – समझाने का काम नहीं किया है। विधायक पांच साल के लिए चुने जाते हैं। मौजूदा सरकार एक देश एक चुनाव की बात कर रही है। यानी इस्तीफों की हालत में चुनाव नहीं होंगे, वे अपने समय पर ही होंगे। तब क्या होगा। दलबदल रोकने के लिए कानून है, उसके प्रावधान हैं। उसका क्या होगा। भिन्न स्थितियों में विधायकों की संख्या के आधार पर क्या सरकार को विश्वास मत लेना होगा। सरकार गिर सकती है या नहीं। क्या विधायकों को इस्तीफा देने की आजादी होनी चाहिए? इससे कौन सा जनहित सधेगा और अगर हां तो नौकरी छोड़ने के लिए एक या तीन महीने पहले नोटिस देने की शर्त क्यों होनी चाहिए। ऐसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब जनता को शिक्षित करने के लिए अखबारों को देना चाहिए था। टेलीविजन पर चर्चा होनी चाहिए थी। खबरें ऐसे लिखी जानी चाहिए थी जिससे इन जिज्ञासाओं का जवाब अपने आप मिल जाता। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। खबरें ऐसे आती रहीं जैसे विधायक स्वेच्छा से इस्तीफा दे रहे हैं और उनका अधिकार है कि उसपर शीघ्रता से फैसला होना चाहिए। इसी सोच के तहत वे सुप्रीम कोर्ट भी आए पर अब मामला हाथ से निकल गया लगता है। दैनिक भास्कर ने लिखा है, अब सुप्रीम कोर्ट देखेगा कि स्पीकर इस्तीफे पर पहले फैसला लें या अयोग्यता पर।
इंडियन एक्सप्रेस में भी यह खबर लीड है। मुख्य शीर्षक है, “बागी विधायकों के मामले में यथास्थिति के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कर्नाटक गर्माया, कुमारस्वामी विश्वास मत चाहते हैं”। उपशीर्षक है, “मुख्यमंत्री ने कहा कि बहुमत के बिना सत्ता में बने रहना सही नहीं है; सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर मु्द्दों को रेखांकित किया, विधानसभा अध्यक्ष को 16 जुलाई तक रुकने का निर्देश दिया ”। आप जानते हैं कि इंडियन एक्सप्रेस अपनी खबरों के साथ ‘एक्सप्लेन्ड’ भी छापता है। इसके तहत एक्सप्रेस ने आज बताया है, विधायकों के समक्ष दो स्थितियां हैं। इस्तीफे का उनका पत्र स्वीकार किया जाए या उन्हें अयोग्य ठहराया जाए। अगर उनके इस्तीफे मंजूर होते हैं तो बागी विधायक किसी भी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं, उन्हें मंत्री भी बनाया जा सकता है पर उन्हें छब महीने में चुनाव जीतना होगा। दूसरी ओर, अगर उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं होता है औऱ सदन विश्वास मत पर मतदान करता है तो विधायकों को अपनी पार्टी के व्हिप का पालन करना होगा। अगर वे व्हिप का उल्लंघन करेंगे तो उनकी पार्टी स्पीकर से उन्हें अयोग्य करार देने के लिए कह सकती है। इस तरह अयोग्य ठहराए गए विधायक को पुनर्निवाचित होने तक मंत्री नहीं बनाया जा सकता है और ना लाभ के किसी पद पर रखा जा सकता है। कुछेक बागी विधायकों पर ऐसा मामला पहले से लंबित है और जल्दबाजी का कारण यही लगता है। जिसकी चर्चा ही नहीं हो रही है। जबकि एक देश एक चुनाव – के नए नारे के मद्देनजर भी इन मामलों को स्पष्ट करना जरूरी है।
नवभारत टाइम्स में भी यह खबर लीड है। शीर्षक है, “कोर्ट ने कहा, कर्नाटक के इस्तीफों पर अभी फैसला न लें स्पीकर।” कल अखबार का शीर्षक था, कर्नाटक में आज गिर सकता है पर्दा। यही नहीं, अखबार ने आज खबर का जो अंश हाईलाइट किया है, वह इस प्रकार है – “क्या हमें सुनवाई का अधिकार नहीं है, क्या आप कोर्ट के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं – सुप्रीम कोर्ट (स्पीकर के वकील से सवाल)”। इससे लगता है कि विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर सवाल है जबकि असल में उनकी भूमिका के कारण ही बुनियादी सवाल उठे हैं। दैनिक हिन्दुस्तान ने खबर के साथ राहुल गांधी की फोटो लगाई है और जो अंश हाईलाइट किया है वह इस प्रकार है, “…. भाजपा, सरकारें गिराने के लिए धन बल और डराने-धमकाने का सहारा लेती है। उन्होंने कहा, पहले आपने यह गोवा में और पूर्वोत्तर में देखा। अब यही कर्नाटक में करने की कोशिश की जा रही है। यह उनके काम करने का तरीका है जबकि कांग्रेस सच्चाई के लिए लड़ रही है।”
नवोदय टाइम्स ने शीर्षक लगाया है, मंगल तक कुमार की खैर! और इसके साथ कर्नाटक विधानसभा दलीय स्थिति बताई गई है जबकि आज प्रमुखता विधायकों की जल्दबाजी और उससे बनी स्थिति को दी जानी चाहिए थी। अमर उजाला और दैनिक जागरण के शीर्षक से भी स्पष्ट नहीं है कि विधायकों ने इस्तीफा क्यों दिया। यह भी नहीं कि जल्दी में क्यों थे और उसका असर क्या हुआ? दैनिक जागरण में लीड के साथ दो कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, कुमार स्वामी बोले विश्वास मत हासिल करने को तैयार। इसके मुकाबले टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक गौरतलब है, एचडी कुमारस्वामी ने भाजपा को चौंकाया, विधानसभा में विश्वास मत चाहा”। इंडियन एक्सप्रेस का उपशीर्षक आप पढ़ चुके है, “मुख्यमंत्री ने कहा कि बहुमत के बिना सत्ता में बने रहना सही नहीं है”। इसके मुकाबले दैनिक जागरण का यह शीर्षक गलत नहीं है पर अलग है। निश्चित रूप से यह मीडिया की आजादी और उसके उपयोग का उदाहरण हो सकता है। राजस्थान पत्रिका ने कल कर्नाटक की खबर का लीड लगाया था। शीर्षक था, “विधायकों ने बताया उन्हें धमकी दी गई थी, डर से गए थे मुंबई, सुप्रीम कोर्ट भेजूंगा वीडियो – स्पीकर”। आज अखबार में कर्नाटक की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। कुछ भी नहीं। कल की खबर का फॉलोअप भी नहीं। मेरे हिसाब से अंदर हो भी तो उसका कोई मतलब नहीं है।