आज के अखबारों में सबसे प्रमुख खबर है, सरकार ने अधूरी पड़ी आवास योजनाओं को पूर्ण करने के लिए 25,000 करोड़ रुपए के कोष को मंजूरी दी है। ये पैसे किस बिल्डर को किस परियोजना के लिए कैसे दिए जाएंगे यह सब अखबारों से तो ठीक से समझ में आने से रहा। पर अखबारों ने आज जो नहीं बताया है वह जान लेना और जो जानते हैं उनके लिए रेखांकित कर लेना जरूरी है। जनता से पहले पैसे लेकर घर बनाकर देने का वादा करने वाले ज्यादातर बिल्डर तथाकथित कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट प्लान के अनुसार पैसे लेते हैं और यह सुनने में बड़ा आदर्श लगता है। इसके बाद भी खरीदार फंसते हैं और आम जनता के नाम पर सरकार बिल्डर्स को फिर पैसे दे रही है। चोट उस पेमेंट प्लान पर होना चाहिए लेकिन घोर प्रचार से बना रेरा भी इस मामले पर अब तक चुप है। गोदी मीडिया के जमाने में अखबारों से क्या उम्मीद करना। मैं बताता हूं कि कैसे यह योजना दोषपूर्ण है और इसका वह लाभ नहीं मिलेगा जो दिखाया बताया जा रहा है।
आइए, देखें कैसे? सबसे पहले कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट प्लान को देखें और समझें। कोई भी कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट प्लान ऐसा ही होता है। बुकिंग पर दस प्रतिशत और भिन्न मौकों पर अलग-अलग लेकिन बिल्डिंग की संरचना पूरी होने में ही 100 प्रतिशत। इसमें निर्माता का मुनाफा, कोई विक्रेता या दलाल या एजेंट हो तो उसका कमीशन सब शामिल है। छूट अगर कोई दी गई तो वह भी। लेकिन निर्माण का काम आधा ही होता है। आम तौर पर लोग नया बनने वाला घर एक ही बार खरीदते हैं और ऐसी योजनाओं से धोखा खाते हैं। सुनने में यह जायज और आदर्श लगता है। पर इसमें पेंच यह है कि आप मुनाफा समेत 100 प्रतिशत भुगतान कर चुके होते हैं पर बिल्डिंग में ना लिफ्ट होती है ना बिजली ना बाथरूम ना खिड़की दरवाजे। देख लीजिए – इसमें इनकी कोई चर्चा है? आपको बिल्डर ईमानदार और खूब तेजी से काम करता दिखेगा लेकिन असल में वह संभवतः 50 प्रतिशत से भी कम काम करके आपसे 100 प्रतिशत भुगतान झटक लेगा। आपके लिए यह बिल्डिंग किसी काम की नहीं होगी। असल में ज्यादा खर्च फिनिश कराने में लगता है, वायरिंग से लेकर बाथरूम फिटिंग और टाइल तक। एक बाथरूम तीन लाख रुपए तक में तैयार होता है। लिफ्ट की कीमत लाखों में होती है। खिड़की दरवाजे शीशे आदि अलग। एक फ्लैट में लगने वाले बिजली के स्विच, सॉकेट आदि भी हजारों के होते हैं।
इसमें आम आदमी या फ्लैट खरीदने वालों का हित कम और बिल्डर का हित ज्यादा है। निर्मला सीतारमण ने तरह-तरह की परियोजना को सहायता देने की बात की है पर जहां खरीदार का 10 प्रतिशत ही लगा है औऱ जहां 100 प्रतिशत लग चुका है उसमें अंतर रखा जाना चाहिए। क्या होगा यह तो समय बताएगा पर आज अखबारों ने क्या बताया उसे आगे पढ़िए। भिन्न अखबारों ने इस खबर को अलग शीर्षक से छापा है। इनमें घरों को पूरा करने के लिए उदारीकृत कर्ज (द टेलीग्राफ) से लेकर घर अटका है? अब मिलने के बन रहे हैं चांस (नवभारत टाइम्स) जैसे शीर्षक है। इनमें मुझे जो शीर्षक सबसे आकर्षित करने वाला लगा है वह है, जिस टावर में सबसे कम काम बचा होगा उसे प्राथमिकता: सीतारमण। हालांकि, इससे मुझे लगता है कि यह निर्णय घर खरीदने वालों के लिए कम, बिल्डर्स के फायदे के लिए ज्यादा है। आइए देखें कैसे। इस खबर के मुताबिक, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि सरकार की मंशा अधूरी पड़ी आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने की है। इसमें कुछ गलत नहीं है और इससे सरकार की नेकनीयति का भी पता चलता है। पर इससे यह भी पता चलता है कि सरकार बिल्डर्स द्वारा खरीदारों से पैसे लेने का तरीका नहीं जानती है।
खबर में भी कहा गया है कि इससे लोगों की समस्याओं को दूर किया जा सकेगा। सीतारमण ने कहा कि पिछले कुछ महीनों के दौरान घर खरीदारों, संगठनों, बैंकों और रिजर्व बैंक के साथ बैठकें हुई, जिसके बाद योजना में सुधार का फैसला किया गया। योजना में उन परियोजनाओं को भी शामिल करने का फैसला किया गया जिन्हें कर्ज देने वाले बैंकों और वित्तीय संस्थाओं ने गैर- निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया है। मुझे लगता है कि यही गड़बड़ है। उन्होंने कहा ‘परियोजना यदि शुरू ही नहीं हुई है तो ऐसी परियोजना को इस कोष से कोई राहत नहीं मिलेगी। मान लीजिए यदि किसी परियोजना में तीन टावर बनने हैं, उसमें एक टावर में 50 प्रतिशत काम हुआ है, दूसरे में 30 प्रतिशत और तीसरे में कोई काम नहीं हुआ है, तो हम सबसे पहले 50 प्रतिशत पूरी हुई परियोजना को कोष उपलब्ध कराएंगे।’ भले ही मंत्री ने 50 प्रतिशत कहा है पर 100 प्रतिशत वाले भी बहुत हैं। इस संबंध में नवभारत टाइम्स ने अपने शीर्षक, घर अटका है? अब मिलने के बन रहे हैं चांस से जो संकेत दिया है वह सही होते हुए भी पूरी खबर से नहीं लगता है कि खबर लिखने वाला यह समझ रहा है कि खरीदार क्यों फंसे हैं या परियोजनाएं क्यों अटकी हैं।
अखबार ने लिखा है, संकट से जूझ रहे रियल एस्टेट में जान फूंकने के लिए केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को नए राहत पैकेज को मंजूरी दी। इसके तहत अटके हुए हाउसिंग प्रोजेक्टों को पूरा करने के लिए 25 हजार करोड़ रुपये का स्पेशल फंड बनाया जाएगा। सबसे अहम बात यह कि इस पैकेज से उन प्रोजेक्ट को भी लाभ मिल सकेगा, जो डूब चुके हैं या फिर दिवाला प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा दिल्ली-एनसीआर में लटके हुए हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को मिलेगा। साफ है कि फायदा बिल्डर्स को होना है, फ्लैट खरीदारों को नहीं। पर शीर्षक? ठीक है कि खरीदारों को फ्लैट मिल जाएगा – पर यह फायदा तो नहीं है और यह बात शीर्षक में भी नहीं है। अखबार आगे लिखता है, सरकारी आंकड़ो के अनुसार देशभर में 1600 हाउसिंग प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं, जिनसे चार लाख 58 हजार घर खरीदार प्रभावित हैं। 25 हजार करोड़ के इस स्पेशल फंड में 10 हजार करोड़ केंद्र सरकार देगी, जबकि बाकी के 15 हजार करोड़ एसबीआई और एलआईसी से मिलेंगे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि स्पेशल फंड की राशि और बढ़ाई जा सकती है।
सरकार की मंशा है कि लाखों लोगों को घर मिले, जिसके लिए उन्होंने पैसा लगाया था। इस पैकेज के तहत एसबीआई में एक अकाउंट बनाया जाएगा और उसी अकाउंट में फंड डालकर अधूरे प्रोजेक्ट पूरे किए जाएंगे। किस प्रोजेक्ट में कितना पैसा लगाना है, अधिकारी प्रोजेक्ट की जांच के बाद यह तय करेंगे। इसमें और फंड आ सके इसके लिए एफडीआई नियम भी बदले जाएंगे। नवोदय टाइम्स में इस खबर का शीर्षक है, फ्लैट खरीदारों के सपने हो सकते हैं सच। दैनिक भास्कर ने इस खबर का शीर्षक लगाया है, अधूरे हाउसिंग प्रोजेक्ट को पूरा करने को सरकार बनाएगी 25,000 करोड़ का फंड। यह शीर्षक तो तथ्यात्मक रूप से सही है। पर इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, 1600 प्रोजेक्ट में फंसे 4.58 लाख घर खरीदारों को सरकार की सौगात। यह लोक लुभावन शीर्षक है। सौगात दरअसल खरीदारों के नाम पर बिल्डर को है और योजना के बारे में जो बताया जा रहा है और अभी तक मैंने ऊपर जो कुछ लिखा है उससे नहीं लगता है कि सभी खरीदारों को फायदा होगा।
दैनिक भास्कर ने आगे लिखा है, जैसे-जैसे पूरा होगा काम, चरणबद्ध तरीके से वैसे-वैसे जारी होगा पैसा। इसके तहत बताया गया है कि होम बायर्स मकान खरीदने के लिए लोन का ईएमआई भी दे रहे हैं और उन पर वित्तीय बोझ अधिक है। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि किस प्रोजेक्ट का काम कब तक पूरा कर दिया जाएगा। यह प्रोजेक्ट के मूल्यांकन पर निर्भर करेगा कि किसे जल्दी पूरा किया जा सकता है। सीतारमण ने बताया कि पिछले दो महीने से सरकार इस स्कीम पर विचार कर रही थी। इस संबंध में आरबीआई व बैंकों से कई राउंड की बैठक की गई। उन्होंने बताया कि ये प्रोजेक्ट रेरा में रजिस्टर्ड हैं। उन्होंने बताया कि मान लीजिए किसी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 400 करोड़ रुपए की आवश्यकता है तो ऐसा नहीं है कि एक बार में 400 करोड़ रुपए उन्हें दे दिए जाएंगे। जैसे-जैसे काम पूरा होता जाएगा, पैसे रिलीज होते जाएंगे। हालांकि इसी तर्ज पर बिल्डर ने लोगों से पैसे लिए हैं और धोखा खाए हैं। अब सरकार फिर उन्हें इसी तर्ज पर पैसे दे रही है और इसमें सावधानी नहीं बरती गई तो सरकार भी धोखा खा सकती है। और सरकार का धोखा खाना दरअसल आपका धोखा खाना है।