चंद्रयान टू के सफल प्रक्षेपण के दिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने मध्यस्थता का गोला दागकर भारतीय अखबारों के लिए एक अलग किस्म की समस्या खड़ी कर दी। कश्मीर मामले में मध्यस्थता को लेकर असल में उन्होंने क्या कहा और क्या हुआ यह अखबारों से समझना मुश्किल है पर अखबारों ने जो लिखा है उसे जानना दिलचस्प है। ज्यादातर अखबारों ने दोनों मामलों को अलग रखा है और अमर उजाला में पहले पन्ने पर चंद्रयान के अलावा कुछ नहीं है। इसमें तस्वीर के साथ यह भी बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रक्षेपण को लाइव देखा। अमर उजाला में पहले पन्ने पर आज एक बॉक्स है, “कलाम का सपना … चांद का चक्कर लगा सकते हैं तो उतर भी सकते हैं”। यह खबर कल राजस्थान पत्रिका में पहले पन्ने पर थी। छह कॉलम की इस खबर का शीर्षक था, “कलाम ने दी थी चांद की परिक्रमा के बजाय सतह पर उतरने की सलाह”। चंद्रयान से संबंधित खबर पर अमर उजाला का यह पन्ना अच्छा प्रयोग है। हालांकि, इस चक्कर में कश्मीर मामले में मध्यस्थता करने से संबंधित अमेरिकी राष्ट्रपति की खबर पहले पन्ने पर नहीं है।
हिन्दुस्तान टाइम्स ने चंद्रयान की खबर को लीड बनाया है, ज्यादा जगह दी है पर ट्रम्प की खबर को भी साथ ही टॉप पर रखा है। ऐसा ही इंडियन एक्सप्रेस में भी है। चंद्रयान की खबर तो सभी अखबारों में लगभग एक सी है और टीवी देखने वालों को टीवी से सब मालूम होगा। ट्रम्प की खबर आज महत्वपूर्ण है। इसलिए उसी के शीर्षक की चर्चा करता हूं। वह इसलिए भी कि कश्मीर मामले में भारत को किसी की मध्यस्थता स्वीकार नहीं है, जनमत संग्रह से मना करता रहा है और भारत को अपना अभिन्न अंग मानता है। ऐसे में रक्षा मंत्री ने पिछले दिनों जो कहा उसके मद्देनजर ट्रम्प की यह इच्छा सामान्य नहीं है। पत्रकार रवीश कुमार ने फेसबुक पर रात में ही रायटर्स के ट्वीट के हवाले से यह सूचना थी और लिखा है, “देखना है कि क्या भारत इसका खंडन करता है या राष्ट्रपति ट्रंप की बात का स्वागत करता है।” भारत ने खंडन कर दिया है पर खबर बनी हुई है।
अब आज के अखबारों के शीर्षक पर आता हूं। हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है, “ट्रम्प ने इमरान से कहा : कश्मीर विवाद में मध्यस्थता कर सकता हूं।” फेसबुक पर पत्रकार रवीश कुमार ने रायटर का ट्वीट शेयर किया है (अनुवाद मेरा), “…. ट्रम्प ने कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी उनसे विवादास्पद कश्मीर क्षेत्र में सहायता करने के लिए कहा है। वे मध्यस्थ होना पसंद करेंगे।” टाइम्स ऑफ इंडिया में शीर्षक है, “कश्मीर मसले पर मध्यस्थता की ट्रम्प की पेशकश पर विवाद”। इंट्रो है, “दावा किया कि मोदी ने उनसे कहा है, दिल्ली ने मना किया”। इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, “दिल्ली ने ट्रम्प के दावे से इनकार किया कि प्रधानमंत्री ने उनसे कश्मीर पर मध्यस्थता करने के लिए कहा है”। द टेलीग्राफ ने चंद्रयान की खबर के साथ ट्रम्प के दावे की खबर को मिलाकर शीर्षक लगाया है, ह्यूस्टन, वी हैव अ कश्मीर प्रॉबलम। (यह एक अंग्रेजी मुहावरे पर है। इस बारे में आगे)। उपशीर्षक है, “चंद्रयान के प्रक्षेपण के दिन ट्रम्प ने मध्यस्थता का गोला दागा”। टेलीग्राफ के विवरण में यह भी बताया गया है कि गए महीने ओसाका में मोदी और ट्रम्प की मुलाकात हुई थी।
अखबार ने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार (दोनों रवीश अलग है) के ट्वीट का हवाला दिया है और बताया है कि विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी राष्ट्रपति के दावे या पेशकश का खंडन किया है। अंग्रेजी में किए गए ट्वीट का हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह होगा, “हमलोगों ने प्रेस में अमेरिकी राष्ट्रपति का मंतव्य देखा है कि कश्मीर मसले पर भारत और पाकिस्तान कहे तो वे मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से ऐसा कोई आग्रह नहीं किया है। भारत का हमेशा से यह मानना रहा है कि पाकिस्तान के साथ सभी मामलों पर चर्चा सिर्फ द्विपक्षीय होगी और पाकिस्तान से किसी भी चर्चा के लिए जरूरी है कि सीमा पार से आतंकवाद खत्म हो। शिमला समझौता और लाहौर घोषणा भारत और पाकिस्तान के बीच सभी मसलों को आपस में सुलझाने का आधार हैं।”
टेलीग्राफ ने अपनी खबर में लिखा है, इमरान खान के साथ बैठे ट्रम्प से एक सवाल के जवाब में कहा, दो हफ्ते पहले मैं प्रधानमंत्री मोदी के साथ था। हमलोगों ने इस विषय पर बात की। असल में उन्होंने कहा, क्या आप मध्यस्थ होना चाहेंगे। मैंने कहा, कहां उन्होंने कहा कश्मीर में मैं समझता हूं कि वे भी इस मसले को निपटाना चाहते हैं। और मुझे लगता है कि आप भी इसे निपटाना चाहेंगे। और अगर मैं सहायता कर सकूं तो मैं मध्यस्थ होना पसंद करूंगा। अखबार का शीर्षक एक लोकप्रिय पर गलत मुहावरे पर आधारित है। और अंग्रेजी के पाठक समझ जाएंगे कि अखबार का शीर्षक वैसा ही है जैसा इस मामले ने रंग लिया।
दैनिक हिन्दुस्तान में आज पहले पन्ने पर ऊपर से नीचे तक चार कॉलम का विज्ञापन है। चंद्रयान की खबर लीड पर ट्रम्प की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। नवभारत टाइम्स में अंग्रेजी अखबारों की तरह साथ-साथ है। चंद्रयान को ज्यादा जगह, ट्रम्प को कम पर लीड के साथ। टॉप पर। नभाटा में फ्लैग शीर्षक है, “इमरान से कहा, मोदी ने भी मदद मांगी थी, भारत ने किया खंडन।” मुख्य शीर्षक है, “ट्रम्प बोले, भारत पाक राजी तो कश्मीर पर मध्यस्थता को तैयार”। नवोदय टाइम्स में भी चंद्रयान की खबर लीड है जबकि ट्रम्प की खबर टॉप पर दो कॉलम में है। ट्रम्प मामले में नवोदय टाइम्स का शीर्षक है, ट्रम्प ने की कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश।
अमर उजाला ने अगर चंद्रयान की खबर को पूरा पन्ना दिया है तो दैनिक जागरण ने इसे आधा पन्ना ही दिया है और आधे में कर्नाटक के सियासी नाटक के साथ कश्मीर पर मध्यस्थता चाहते हैं मोदी : ट्रंप, शीर्षक खबरें हैं। जयप्रकाश रंजन की बाईलाइन, नई दिल्ली डेटलाइन वाली यह खबर इस प्रकार है, “अपने बयानों से कई बार कूटनीतिक हलचल मचाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर ऐसी बयानबाजी कर दी है जो ना सिर्फ घरेलू राजनीति में पीएम नरेंद्र मोदी को विपक्ष के हमले का शिकार बना सकता है बल्कि भारत व अमेरिका के बीच रिश्तों में तनाव घोल सकता है। ट्रंप ने कहा है कि भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने का प्रस्ताव रखा था। ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की वाशिंगटन स्थित व्हाइट हाउस में आगवानी करने के बाद औपचारिक प्रेस वार्ता में यह उद्गार व्यक्त किए।”
अखबार ने आगे लिखा है, “ट्रंप का बयान बेहद अहम इसलिए है कि अभी तक भारत ने कश्मीर पर किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करने की नीति अख्तियार कर रखी है जबकि पाक दुनिया के हर देश व संस्थान से मध्यस्थता की बात करता रहा है।ट्रंप के इस बयान के करीब 50 मिनट बाद ही भारतीय विदेश मंत्रलय ने अपनी कश्मीर नीति में बदलाव से इन्कार कर दिया।” खबर में पर्याप्त भाषण है पर दैनिक भास्कर की तरह तथ्य नहीं हैं। राजस्थान पत्रिका में चंद्रयान की खबर लीड है पर ट्रम्प की खबर पहले पन्ने पर नहीं दिखी। पहले ही पन्ने में एक खबर प्रमुखता से दिखी जो दूसरे अखबारों में नहीं है। खबर है, आरटीआई में संशोधन पर घमसान, “केंद्र तय करेगा आयुक्तों का कार्यकाल, वेतन।” दैनिक जागरण में एह खबर पहले पन्ने पर है। यहां शीर्षक है, आरटीआई संशोधन बिल पर सरकार और विपक्ष आमने-सामने।
इतना सब पढ़कर भी यह समझ में नहीं आया कि भारत को जब मध्यस्थता की जरूरत नहीं है तो अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह पेशकश क्यों की और की तो भारत सरकार के खंडन में पेशकश लिखा क्यों नहीं है। खंडन में रीमार्क्स लिखा है जिसे मैंने हिन्दी में मंतव्य लिखा है। आप इरादा भी मान सकते हैं। पर क्या यह जैसा भास्कर ने लिखा है, “गैर जिम्मेदाराना” बयान है। या जैसा दैनिक जागरण ने लिखा है, “… फिर ऐसी बयानबाजी कर दी है जो ना सिर्फ घरेलू राजनीति में पीएम नरेंद्र मोदी को विपक्ष के हमले का शिकार बना सकता है” बल्कि भारत व अमेरिका के बीच रिश्तों में तनाव घोल सकता है। भारतीय अखबारों में इसे प्रमुखता मिलने का कारण विदेश मंत्रालय की अतिसक्रियता के अलावा वह भी हो सकता है जो दैनिक जागरण ने लिखा है, नरेंद्र मोदी को विपक्ष के हमले का शिकार बना सकता है।