आज लगभग सभी अखबारों में पाकिस्तानी एयरस्पेस खोले जाने की खबर प्रमुखता से है। ज्यादातर अखबारों ने इसे लीड बनाया है। अंग्रेजी अखबारों में, टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर छोटी सी खबर छाप कर अंदर विवरण होने की सूचना दी है। इसके अलावा, इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड है। दोनों टाइम्स में यह चार कॉलम में है पर एक्सप्रेस ने इसे पांच कॉलम में लीड बनाया है। अंग्रेजी अखबारों का शीर्षक सूचनाप्रद और भारत को राहत मिलने जैसी बात करता है पर हिन्दी अखबारों में, आखिर जमीन पर आया पाकिस्तान, खोला एयर स्पेस (नवभारत टाइम्स) और पाकिस्तान को खोलना पड़ा अपना एयरस्पेस (दैनिक जागरण) जैसे शीर्षक हैं। दैनिक भास्कर ने इस खबर को सिंगल कॉलम में छापा है। शीर्षक है, एय़रस्ट्राइक के 140 दिन बाद पाक ने भारत के लिए हवाई क्षेत्र खोला। मुझे लगता है कि यह शीर्षक, खबर और प्लेसमेंट तालमेल में है।
भारतीय अखबारों में इसे इतना बड़ा मुद्दा बनाना राजा का बाजा बजाने के अलावा कुछ नहीं है। जहां तक, “कंगाली ने इस्लामाबाद को किया मजबूर” जैसी खबरों की बात है, इसे खबर में स्पष्ट नहीं किया गया है। इसमें कैसी कंगाली और कंगाली नहीं होती तो अखबार या संवाददाता क्या उम्मीद करता था – दोनों बातें बताई जानी चाहिए थी। इसमें पत्रिका (और दूसरे अखबारों ने भी अपनी खबरों में ) लिखा है, “पाकिस्तान के उड्डयन सचिव शाहरुख नुसरत ने पिछले हफ्ते कहा था कि जब तक भारत की ओर से तनाव को कम नहीं किया जाता है, तब तक इस्लामाबाद अपने हवाई क्षेत्र को नहीं खोलेगा”। अखबार ने किसी अनजान और अनाम रिपोर्ट के हवाले से लिखा है, “आर्थिक रूप से कंगाली की हालत से जूझ रहे पाकिस्तान की एक दिन में 400 उड़ानें प्रभावित हो रही थीं। इस दौरान उसे 688 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ”। यह बात इस तथ्य के साथ बताई है कि इस बंदी से अकेले एयर इंडिया को 491 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
खबरों से लगता है कि पाकिस्तानी एयरस्पेस बंद होने के जवाब में भारतीय एयरस्पेस भी बंद रहे होंगे और पाकिस्तान को हुआ नुकसान इसी मद में होगा – पर यह लिखा नहीं गया है जबकि खबरों से स्पष्ट है कि पाकिस्तान ने जब इस बंदी को हटाया तो भारत ने भी स्वीकार किया (क्योंकि वह भी लगभग समान रूप से प्रभावित था और कुछ कर नहीं पा रहा था) इसे भी नहीं लिखा गया लेकिन कुछ अखबारों के शीर्षक देखिए – बिल्कुल राजा का बाजा बजाने वाले हैं। कुल मिलाकर, यह खबर ऐसे परोसी गई है जैसे पाकिस्तान मनमानी कर रहा था और उसे भारत ने मजबूर करके झुका दिया है। वास्तिवकता इसके बिल्कुल उलट है। पाकिस्तानी प्रतिक्रिया बालाकोट हमले के खिलाफ थी। स्वाभाविक और जरूरी थी। उसने इसे पर्याप्त समय तक जारी रखा और अब अपनी ओर से पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद उसे खत्म किया है। भारत के पास इसे झेलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था पर अखबारों ने इसे वीरता के रूप में प्रस्तुत किया है।
निश्चित रूप से अमर उजाला और कुछ अन्य अखबारों में इसे समान्य ढंग से प्रस्तुत किया गया है पर महत्व देने के मामले में कोई पीछे नहीं है। हिन्दी के अखबार भी नहीं जबकि उनके पाठक कहां अमेरिका और यूरोप जा रहे हैं और उन्हें कहां फर्क पड़ना है। इस मामले में दिलचस्प यह है कि शीर्षक खबर से तालमेल में नहीं है। उदाहरण के लिए नवभारत टाइम्स का शीर्षक है, “आखिर जमीन पर आया पाकिस्तान, खोला एयर स्पेस।” बालाकोट और घुस कर मारने जैसी धमकियों के बाद पाकिस्तान जमीन पर नहीं था यह सोचना भी बेमानी पर है खबर में नहीं बताया गया है कि पाकिस्तान क्यों जमीन पर नहीं था और क्यों जमीन पर आ गया। अखबार ने यह भी लिखा है कि इस दौरान पाकिस्तान ने अपने 11 में से केवल दो हवाई मार्ग खोल रखे थे। फिर भी वह जमीन पर कैसे नहीं था यह मुझे समझ में नहीं आया।
नभाटा की खबर में भी कहा गया है, “हाल में पाकिस्तान ने कहा था कि भारत जब तक सीमा के नजदीकी अड्डों से अपने लड़ाकू विमानों को नहीं हटाता, यह प्रतिबंध जारी रहेगा। हालांकि इस प्रतिबंध की वजह से आर्थिक मोर्चे पर हो रहे नुकसान के चलते उसे कदम पीछे खींचने पड़े। करीब 5 महीनों में 5 बार इस प्रतिबंध को बढ़ाने से पड़ोसी देश को 688 करोड़ रुपये से ज्यादा का घाटा हुआ है।” अखबार ने नहीं लिखा है कि भारत ने लड़ाकू विमान हटाए कि नहीं या यह भी कि हटाए बिना पाकिस्तान ने प्रतिबंध हटा लिए। इसके बदले अखबारों ने एक दूसरी खबर छापी है। अमर उजाला में यह थोड़े नरम शीर्षक से पहले पन्ने पर है। दैनिक भास्कर में आखिरी पन्ने पर। दूसरे अखबारों में भी यह इधर-उधर है ही। अमर उजाला का शीर्षक है, “दोबारा करगिल … तो आखिरी जंग होगी : धनोआ”। उपशीर्षक है, “वायुसेना प्रमुख ने इशारों में पाकिस्तान को चेताया, कहा – कहा हर तरह के युद्ध को तैयार”।
दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर लीड नहीं है लेकिन अंदर के पन्ने पर छपी खबर है, “करोड़ों का नुकसान होने के बाद झुका पाक”। पाकिस्तान की ओर से अपना हवाई क्षेत्र खोलने के पीछे आर्थिक तंगी बड़ा कारण रहा है। हवाई क्षेत्र बंद होने से पाकिस्तान को मार्च से जून तक 688 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। ऐसे में ज्यादा समय पाकिस्तान आर्थिक जोखिम नहीं उठा सकता था। साथ ही उसपर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी था। इसलिए उसे अपना हवाई क्षेत्र खोलने के लिए मजबूर होना पड़ा। शुरुआती दिनों में पूरी तरह हवाई क्षेत्र बंद रहने से पाक में कोई आंतरिक विमान सेवा ने काम नहीं किया। इससे वहां की विमान कंपनियों को आर्थिक नुकसान हुआ। मेरे ख्याल से यह बालाकोट का असर कहा जाएगा एयरस्पेस बंद करने का नहीं। फिर भी। किसी भी देश का हवाई क्षेत्र इस्तेमाल करने के लिए एक फीस चुकानी होती है। इतने समय तक बंद रहे हवाई क्षेत्र के कारण पाकिस्तान को वो फीस भी नहीं मिली है। इसके बावजूद, साढ़े चार माह में पाकिस्तान ने पांच बार हवाई क्षेत्र को बंद रखने की मियाद बढ़ाई थी। अखबार ने यह भी बताया है कि, भारतीय वायुसेना ने 31 मई को कहा था कि बालाकोट हमले के बाद भारतीय हवाई क्षेत्र पर लगे अस्थायी प्रतिबंध को हटा लिया गया है।