मीडियाविजिल प्रतिनिधि
भोपाल। राजनीति में पढ़े-लिखे युवाओं का आना मौजूदा दौर में एक सुखद अनुभव है। ऐसे में उम्मीद की जाती है कि हमारे यह युवा हमें ईमानदार नेतृत्व देंगे। युवा नेतृत्व की एक उम्मीद बुंदेलखंड के सागर संसदीय क्षेत्र में भी जागी है लेकिन उम्मीदवार की पड़ताल के बाद यहां एक निराशा भी हाथ लगती है।
सागर संसदीय क्षेत्र के सांसद लक्ष्मीनारायण यादव भारतीय जनता पार्टी के उम्रदराज सांसदों की सूची में हैं। ऐसे में उनका टिकिट कटने का काफी संभावना है। इसके बाद सागर नगर निगम की सत्ताईस वर्षीय पार्षद श्वेता यादव का नाम अचानक सुर्खियों में आ गया है। श्वेता ने वकालत की पढ़ाई की है और वे अपने इलाके के लिए कुछ कर दिखाना चाहती हैं। बुंदेलखंड के जातिगत समीकरणों को साधते हुए तय की जाने वाली जीत की राह श्वेता के लिए आसान नहीं होगी। उनके रास्ते में पार्टी के लिए दशकों से काम करते रहे वे कई चेहरे हैं जिनपर टिकट के इंतजार में अब झुर्रिया पड़ गई हैं। ऐसे में यह नेता स्वभाविक तौर पर नाराज हैं और श्वेता का कितना सहयोग करेंगे यह कह पाना भी मुश्किल है। वहीं प्रदेश में सरकार के आने के बाद कांग्रेस के लिए भी सागर से जीतने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। ऐसे में बीना क्षेत्र से ठाकुर समाज के प्रभु सिंह को टिकट दिया है। उल्लेखनीय है कि सागर जिले में ठाकुर समाज के करीब तीन लाख वोट हैं। वहीं यादव समाज के वोटरों की संख्या करीब अस्सी हजार है। इसके अलावा यहां ब्राम्हण वोटों की संख्या भी काफी है।
पार्षद बनकर ही कर दी अनियमितता….
श्वेता के नाम की चर्चा जहां राजनीति में एक ताजा हवा है तो वहीं उनसे जुड़े विवाद राजनीति का एक कड़वा सच हैं। नगर निगम में पार्षद रहते हुए श्वेता यादव पर अनियमितता के आरोप लगे थे जो जांच के बाद सही भी पाए गए। प्रधानमंत्री आवास योजना में उन्होंने अपनी मां के नाम पर ही एक आवास की राशि ले ली। नियमों के अनुसार वे कहीं से भी इसके लिए पात्र नहीं थीं।
इस मुश्किल के दौरान सागर जिले के एक विधायक और भाजपा सरकार में गृह मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह ने भी उनकी कुछ मदद की। इसी नेता ने इस बार भी श्वेता का नाम सांसद के लिए आगे बढ़ाया है। दरअसल भूपेंद्र सिंह पहले अपनी पत्नी के नाम का टिकट चाहते थे लेकिन परिवारवाद पर भाजपा की प्रतिज्ञा उनके आड़े आ गई। अब उन्होंने श्वेता का नाम आगे बढ़ा दिया ताकि राज्य से भाजपा सरकार के जाने के बाद भी उनका थोड़ा-बहुत वर्चस्व जिले में बना रहे।
भूपेंद्र सिंह की इच्छा के आगे प्रदेश और केंद्र नेतृत्व भी कुछ झुकता नजर आ रहा है वहीं अब पार्टी के पुराने नेता चुनावों से कट सकते हैं। अब नेताओं की दलील है कि जिन्होंने पार्षद रहते अनियमितता कर दी वे अगर सांसद बनेंगी तो क्या करेंगी?