लोकसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं और मोदी सरकार भारी बहुमत के साथ फिर से सत्तासीन होने जा रही है। यूँ तो तमाम एक्जिट पोल में इसकी आहट पहले ही मिल चुकी थी पर वोटिंग मशीनों की गिनती जैसे-जैसे आगे बढ़ी और परिणाम आने आरंभ हुए, देश कई नये समीकरणों के साथ नयी करवट ले रहा था।पश्चिम बंगाल की राजनीति को भी इस चुनाव ने व्यापक स्तर पर प्रभावित किया है।
राज्य की कुल 42 सीटों में से सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को 22, भाजपा को 18 सीटें और कांग्रेस को दो सीटें मिली। कई बड़े उलटफेर इस चुनाव में देखे गए। 2014 के लोकसभा में 2 सीटें और 2016 के विधानसभा चुनाव में मात्र तीन सीटें जीतने वाली भाजपा को 18 सीटें मिली हैं। 2014 के 17% के मुकाबले इस बार 40% वोट शेयर के साथ सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में भाजपा उभरी है।
लोकसभा चुनाव के नतीजे ने ममता बनर्जी की सरकार के लिए जबरदस्त खतरा पैदा कर दिया है। ममता बनर्जी की ढुलमुल नीति के कारण साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बड़ी तेजी से हुआ है। सरकारी कर्मचारी नया वेतन कमीशन एवं भारी बकाया मंहगाई भत्ता न मिलने से बेहद नाराज है। कुल 42 सीटों में से 39 सीटों पर सरकारी कर्मचारियों द्वारा पोस्टल बैलट द्वारा किए गए मतदान में भाजपा आगे रही है। भाजपा के बड़े नेताओं ने भी चुनाव प्रचार के दौरान इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था।
लगभग 30% अल्पसंख्यक अबादी वाले इस राज्य में भाजपा का पैर फैलाना आसान न था जिनके वोट हर चुनाव में निर्णायक सिद्ध होते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं हिंदूवादी संस्थाओं ने पिछले कुछ वर्षों में यहाँ गहरी पैठ बनाई है एवं हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए हर तौर-तरीका आजमाया है।
राज्य के कुल 294 विधानसभा सीटों में से 129 सीटों पर बीजेपी आगे रही है। पिछले साल के पंचायत चुनावों में जिन स्थानों पर तृणमूल कांग्रेस ने बिना प्रतिद्वंदता के जीत हासिल की थी उनमें से अधिकांश में उन्हें इस बार हार का सामना करना पड़ा है। इससे पता चलता है कि वोटर शासक दल से कितने नाराज थे। उत्तर बंगाल एवं आदिवासी अंचलों में तो पिछले पंचायत चुनाव में ही भाजपा ने अपने पैर जमाना आरंभ कर दिया था।
गोरखा आंदोलन को शांत करने में ममता भले ही सफल रही पर दार्जिलिंग सीट फिर से भाजपा के हाथ आई। इधर 34 वर्षों तक राज्य पर शासन करने वाले वामपंथी दलों का खाता तक नहीं खुल पाना इस चुनाव की बड़ी घटना रही। वाममोर्चा के वोटरों का बहुत बड़ा अंश भाजपा की ओर चला गया।2011 में 40% वोट के बाद 2016 में घटते हुए 25% एवं वामदलों को इस लोकसभा चुनाव में महज 5% वोट मिले। वाममोर्चा एवं कांग्रेस के बीच सीटों पर तालमेल न बैठा पाने के कारण दोनों दलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।
कांग्रेस को भी महज 4% वोट मिले हैं। इस चुनाव में राज्य के युवा वोटरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। युवाओं के वोट का एक बहुत बड़ा हिस्सा भाजपा की ओर गया है।इसका एक बड़ा कारण था कि भाजपा ने अपने आईटी सेल को काफी मजबूत किया एवं वाट्सएप, फेसबुक एवं अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से अपना प्रचार तथा विपक्षी दलों पर प्रहार किया।इस मामले में भी यहाँ के अन्य दल काफी पीछे रह गये।
इधर चुनाव परिणाम आने के बाद से राज्य के कई हिस्सों में हिंसा की घटनाएं लगातार घट रही है। उत्तर 24 परगना, बर्दवान, बीरभूम,कूचबिहार, कोलकाता एवं अन्य जिलों से लगातार राजनीतिक संघर्ष की खबरें आ रही है।बैरकपुर लोकसभा केंद्र के अंतर्गत कांकिनारा, जगद्दल, नैहाटी एवं टीटागढ़ अंचल में हिंसक वारदात हो रहे हैं जहाँ भाजपा के अर्जुन सिंह ने तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी को बहुत ही नजदीकी अंतर से मात दी है। इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत भाटपाड़ा विधानसभा उपचुनाव के दिन 19 मई को आरंभ हुई हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है जहाँ अर्जुन सिंह के पुत्र पवन सिंह ने तृणमूल कांग्रेस के मदन मित्रा को हराया है।
मदन मित्रा तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं शारदा चिटफंड घोटाले में मुख्य अभियुक्त रहे हैं। भाटपाड़ा अंचल में कई दुकानों एवं घरों में लूटपाट एवं आगजनी की घटनाएं लगातार हुई है। 26 मई की रात चंदन साव नाम के युवा भाजपा कर्मी की हत्या कर दी गई है। यह भी बता दें कि इससे दो दिन पहले नदिया जिला के चाकदह अंचल में संटू घोष नाम के युवा भाजपा कर्मी की हत्या कर दी गई थी। फिलहाल इलाके में रैफ एवं भारी पुलिसबल की तैनाती है।
राज्य के कई हिस्सों में भाजपा एवं तृणमूल कांग्रेस द्वारा एक दूसरे के पार्टी ऑफिसों पर हमला एवं कब्जा कर लेने की खबरें लगातार आ रही हैं। यूँ तो यहाँ सत्ताधारी दल द्वारा विपक्षी दलों पर हमला करने की पुरानी परंपरा रही है पर इस बार भाजपा द्वारा तृणमूल को उनकी भाषा में ही जवाब दिया जा रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने हिंसा के लिए तृणमूल कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है एवं कहा है कि जैसे को तैसा की भाषा में जवाब दिया जाएगा। वहीं शासक दल ने इसके लिए भाजपा को जिम्मेवार ठहराया है। आने वाले समय में यह टकराव और ज्यादा बढ़ने की पूरी संभावना सामने दिख रही है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 25 मई को चुनाव बाद पहले प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि भाजपा राज्य में साम्प्रदायिकता का जहर फैला रही है। इसी प्रेस कान्फ्रेंस में उन्होंने यह कह कर विवाद फैला दिया कि मुझ पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया जाता है।हाँ ! मैं इफ्तार पार्टी के लिए जा रही हूँ। दूध देने वाली गाय की दुलत्ती भी सहनी पड़ती है। इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्य भाजपा नेता शमिक भट्टाचार्य ने कहा कि मुख्यमंत्री के वक्तव्य से जाहिर है कि साम्प्रदायिकता की राजनीति कौन कर रहा है।
इधर ममता ने तृणमूल के विभिन्न पदों पर भारी बदलाव किया है। अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी से कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेवारी छीन कर उन्होंने दल अन्य नेताओं को दिया है। शासक दल बैकफुट पर चली आई है और अगला हर कदम सावधानी से रखना चाहती है। आने वाले समय में राज्य के राजनीति की दिशा किधर जाने वाली है इसकी स्पष्ट झलक इस चुनाव से मिल रही है। बाकी हमें समय का इंतजार करना होगा।