भारतीय रिज़र्व बैंक ने बढ़ाया CRR और रेपो रेट: महंगाई पर अंकुश?
बुधवार 4 मई 2022 को RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौनिटरी पॉलिसी कमिटी (MPC) की ग़ैर-निर्धारित बैठक के बाद एक ऑनलाइन मीडिया सम्बोधन में औचक घोषणा करते हुए कहा कि रिज़र्व बैंक ने रेपो दर – जिस दर पर रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उधार देती है – में 40 बेसिस अंकों की बढ़ोतरी कर इसे 4.4 प्रतिशत कर दिया है। इसके साथ ही कैश रिज़र्व रेशियो (CRR) – (वह प्रतिशत जो हर बैंक को अपनी कुल जमा राशि का एक हिस्सा रिज़र्व बैंक के पास जमा रखना होता है) – में भी 50 बेसिस अंकों की बढ़ोतरी की गई है। यह फ़ैसला बाज़ार से कैश तरलता को कम करने के उद्देश्य से लिया गया है, ताकि बढ़ती महंगाई, और मुद्रास्फीती पर अंकुश लगाया जा सके।
ग़ौरतलब है कि रिज़र्व बैंक ने रेपो दर को 4% के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पिछले दो सालों से, कोविड-19 सम्बंधित लॉकडाउन के समय मई 2020 में किया था, और तब से इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया था। वहीं CRR में आख़िरी बदलाव अगस्त 2018 में किया गया था।
ख़ास बात यह है कि मौनिटरी पॉलिसी कमिटी (MPC) की बुधवार को हुई बैठक में सभी फ़ैसले बिना किसी विरोध के एकमत से लिए गए हैं।
प्रेस को सम्बोधित करते हुए RBI गवर्नर दास ने कहा कि यूरोप में चल रहे युद्ध और मुख्य निर्यातकों द्वारा लगाए प्रतिबंधों के कारण भारत में खाद्य तेलों की कमी, खाद की क़ीमतों मी उछाल और अन्य कारकों की बढ़ी क़ीमत से मुद्रास्फीती और खाने-पीने की चीजों के दाम पर सीधा असर पड़ा है। उन्होंने आगे जोड़ा कि हालाँकि देश में गेहूँ की सहज आपूर्ति है, इसके बावजूद वैश्विक तौर पर गेहूँ के कमी से घरेलू क़ीमत पर असर पड़ा है।
भारत में महंगाई और ब्याज दर
हालाँकि ये मान्य है कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी महंगाई को क़ाबू में करने का एक रास्ता है, पर यहाँ यह समझना ज़रूरी है, कि भारत में फ़िलहाल मुद्रास्फीती और महंगाई का कारण बाज़ार में उपलब्ध अत्यधिक कैश नहीं है। फ़िलहाल आम उपभोक्ता की रसोई पर भार है खाद्य पदार्थों और घरेलू गैस सिलेंडर का। खाद्य पदार्थों के दाम पर ब्याज दरों का असर कम पड़ता है, क्योंकि यह सीधी तौर पर माँग और आपूर्ति वाले सिद्धांत पर आधारित है। हालाँकि, जब मुद्रास्फीती बढ़ती है, तो व्यापारी जमाख़ोरी ज़रूर करते हैं, ताकि वो अपने बढ़े हुए खर्चे उपभोक्ताओं से वसूल कर सकें। घरेलू गैस सिलेंडर के दाम पिछले कुछ सालों में बढ़ कर ढाई गुना हो गए हैं, और इस पर मिलने वाली सब्सिडी भी ख़त्म कर दी गई है।
वहीं घर से बाहर निकलते ही पेट्रोल- डीज़ल के बेतहाशा बढ़े हुए दाम जो हर किसी पर सीधा प्रभावी हैं। पिछले कुछ महीनों में बढ़ी ईंधन की क़ीमतों का सीधा असर मोटरसाइकल और गाड़ियों से चलने वालों पर तो पड़ता ही है, साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट, साझी साधनों जैसे, ऑटो, बस, टैक्सी इत्यादि का इस्तेमाल करने वाले लोगों पर भी इन बढ़ी क़ीमतों का भार पड़ता ही है। इसके साथ ही, फल-सब्ज़ियाँ, अनाज जैसे खाद्य और दूसरे घरेलू या औद्योगिक सामानों की ढुलाई की लागत भी बढ़नी लाज़िमी है, जो अंतत: उनके खुदरा मूल्य में जोड़ ही ली जाएगी।
दवाइयों के दाम भी कच्चे माल की अंतर्राष्ट्रीय कमी से बढ़े हैं, और साथ ही, चूँकि कॉमर्शियल गैस की क़ीमत भी फ़िलहाल बहुत ज़्यादा बढ़ गई है, घर के बाहर से कुछ खाना (जो सिर्फ़ शौक़िया नहीं, बल्कि कई कामगारों और लोगों के लिए मजबूरी होती है) भी महँगा हो चला है।
क्या हैं इन बदलाव के मायने?
रेपो दर में बढ़ोतरी का सीधा असर बैंक के लोन रेट पर पड़ता है। ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सबसे पहला असर दिखेगा –
रियल इस्टेट
फ़िलहाल कम ब्याज दरों के कारण रियल इस्टेट, और घरों की ख़रीद-फ़रोख़्त ने कुछ हद तक अर्थव्यवस्था को सम्भाल रखा है – निर्माण कार्य जारी हैं और मज़दूरों के पास काम है। ब्याज दर बढ़ने से घरों की बिक्री पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जो निर्माण कार्य को धीमा कर सकता है, और जिसका असर असंगठित श्रमिकों पर सबसे पहले पड़ेगा, जो पहले ही कोविड-19 और लॉकडाउन के दौरान बेरोज़गार रहे हैं। इसके साथ ही कच्चे माल (जैसे सिमेंट, ईंट, गिट्टी, लकड़ी, छड़) के निर्माताओं और विक्रेताओं, इत्यादि पर भी घाटी हुई बिक्री का प्रभाव ज़रूर पड़ेगा। यदि बिक्री में कमी आती है, तो सरकार को मिलने वाले टैक्स में भी कमी ज़रूर आएगी।
यहाँ यह भी बता दूँ, कि मौजूदा गृह-ऋणधारकों को भी बढ़ी ब्याज दर का सामना करना पड़ेगा।
व्यापार
बढ़ी ब्याज दर से व्यापारियों का लागत मूल्य बढ़ जाएगा, जिसका सीधा असर विक्रय मूल्य पर पड़ेगा, जो अंतत: उपभोक्ता को ही चुकाना होगा। मार्केट में कैश की कमी से उपभोक्ता की ख़रीददारी भी कम हो जाएगी, जिसका सीधा असर बाज़ार पर पड़ेगा।
बचत
ब्याज दरों में बढ़ोतरी से उन लोगों को ज़रूर फ़ायदा होगा, जो अपना पैसा बैंक में सावधि जमा (यानी fixed deposit) के रूप में रखते हैं।
शिक्षा
उच्च शिक्षा पिछले कुछ दशकों में काफ़ी महँगी हो चली है, जिसके कारण एक बड़ी संख्या में विद्यार्थी एजुकेशन लोन पर निर्भर हैं। आपको बता दूँ, कि शिक्षा ऋण की ब्याज दर अस्थाई होती है, और बाज़ार (और बैंक दर) पर निर्भर करती है। बढ़ी हुई ब्याज दर ना सिर्फ़ नए ऋणधारक पर, बल्कि मौजूदा ऋणधारकों को भी सताएगी।
कृषि
जैसा पहले हमने दूसरे ऋणों के बारे में बताया, कृषि ऋण की ब्याज दरों में बढ़ोतरी किसानों पर सीधा वार करेगी, जो पहले ही कई वजहों से आर्थिक संकट झेल रहे हैं।
दूसरी तरफ़, CRR के बढ़ाए जाने से बैंकों के पास तरल राशि में कमी आएगी, जिससे उनकी ऋण प्रदान करने की क्षमता घट जाएगी। इससे जरूरतमंदों को नुक़सान तो होना ही है, क्यूँकि ये सभी जानते हैं कि बैंक असल जरूरतमंदों को ऋण सबसे अंत में देता है।
तो फिर?
ख़ैर, यह देखना होगा कि रिज़र्व बैंक के फ़ैसले का असर मुद्रास्फीती पर क्या होता है, क्यूँकि जैसा हमने पहले बताया है, भारत में कैश की अधिकता फ़िलहाल महंगाई का कारण नहीं लगती, और यह ईंधन, खाद्य और अंतर्राष्ट्रीय कारणों से प्रभावित है। इनपर लगाम लगाने के लिए निर्यात-आयात नीति पर काम करने की ज़रूरत, ईंधन के दामों पर टैक्स में कमी, और सब्सिडी जैसे समाज-कल्याणकारी फ़ैसलों की आवश्यकता है।