AP: WB ने ‘अमरावती कैपिटल सिटी परियोजना’ के लिए 300 मिलियन डॉलर का कर्ज़ किया रद्द

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विश्व बैंक ने आंध्र प्रदेश की राजधानी ‘अमरावती कैपिटल सिटी परियोजना’ के लिए 300 मिलियन डॉलर के कर्ज़ देने के फैसले को रद्द कर दिया है। विश्व बैंक के इस निर्णय को जमीन और पर्यावरण से जुड़े कार्यकर्त्ता लोगों की बड़ी जीत के रूप में देख रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (WGonIFI) के कार्य समूह और ‘अमरावती कैपिटल सिटी प्रोजेक्ट’ से प्रभावित समुदाय ने विश्व बैंक के इस निर्णय का स्वागत किया है। पिछले कई वर्षों से सिविल सोसाइटी और जनांदोलन प्रतिनिधियों से प्राप्त शिकायत के बाद विश्व बैंक ने यह फैसला लिया है।

वर्ल्ड बैंक के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन और नेशनल अलायंस ऑफ़ पीपुल्स मूवमेंट्स की ओर से मेधा पाटकर ने कहा कि ” हमें ख़ुशी है कि अमरावती कैपिटल सिटी परियोजना में शामिल लोगों की आजीविका और नाजुक वातावरण को होने वाले नुकसान जैसे व्यापक उल्लंघनों का विश्व बैंक ने संज्ञान लिया।”

2014 में जब अमरावती कैपिटल सिटी प्रोजेक्ट की संकल्पना की गई थी, तब से सामाजिक और पर्यावरण कानूनों के गंभीर उल्लंघन, वित्तीय अस्थिरता, उपजाऊ भूमि की बड़े पैमाने पर कब्जे के विरोध में लगातर सामाजिक, पर्यावरण और नागरिक कार्यकर्त्ताओं द्वारा किया जा रहा हैं।

बीते जून में आंध्रप्रदेश की YS जगन मोहन रेड्डी सरकार ने एक और कड़ा फैसला लेते हुए सैद्धांतिक तौर पर सहमति जताई थी कि अगर अमरावती में किसान चाहें तो सरकार उनकी जमीनें लौटा सकती है। दरअसल आंध्र प्रदेश के अमरावती में राजधानी निर्माण के नाम पर किसानों से जबरन हजारों एकड़ जमीनें ली गई थी।

आंध्र प्रदेश की तत्कालीन चंद्रबाबू नायडू सरकार ने राजधानी अमरावती निर्माण के नाम पर स्थानीय किसानों से लैंड पूलिंग स्कीम (एपीसीआरडीए, अधिनियम 2014) के तहत 34,000 एकड़ जमीनों का अधिग्रहण किया था।
राज्य में पहले से ही भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापना अधनियम, 2013 रहते हुए बाबू सरकार ने लैंड पूलिंग स्कीम के तहत किसानों की जमीनें जबरन ले ली थी।
चुनाव के वक्त ही YSRCP ने अपने घोषणापत्र में एलान किया था कि राजधानी निर्माण के नाम पर जमीनें गंवाने वाले किसानों को उनका हक दिलाया जाएगा।

ख़बर के अनुसार विश्व बैंक द्वारा अमरावती कैपिटल सिटी परियोजना’ से 300 मिलियन डॉलर के समझौते को रद्द किये जाने के बाद कैपिटल रीजन फार्मर्स फेडरेशन के मल्लेला शेषगिरी राव ने कहा,“अपनी जमीन और आजीविका के संबंध में हमारे ऊपर अनिश्चितता मंडराने के साथ, डर और दर्द से लोगों की रातों की नींद हराम हो गई थी।”
उन्होंने कहा कि संघर्ष ने लोगों के जीवन में एक ऐसी पहचान बनाई है जिसे हम कभी नहीं भूल सकते। उन्होंने उम्मीद जताई है कि विश्व बैंक के इस परियोजना से बाहर निकलने के बड़े संदेश को राज्य और अन्य फाइनेंसरों द्वारा सुना जाएगा और ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ लोगों की चिंताओं को दूर की जाएगी।

 

 


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