स्टिंग ऑपरेशन और न्‍यूज़रूम की संस्‍कृति: जांच समिति के समक्ष दर्ज टीवी टुडे केे अधिकारियों के बयानात

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मुजफ्फरनगर दंगों के स्टिंग ऑपरेशन के संबंध में उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा गठित जांच समिति के समक्ष टीवी टुडे चैनल समूह के संपादकीय व प्रबंधकीय अधिकारियों ने जो साक्ष्य प्रस्तुत किए हैंं, उससे टी वी चैनलों के न्यूज रूम के भीतर के कामकाज की संस्कृति जाहिर होती है। दिनांक 17 सितम्बर 2013 को “आज तक” एवं “हेड लाइन्स टुडे” चैनलों पर मुजफ्फरनगर दंगों के विषय में प्रसारित किये गये स्टिंग ऑपरेशन में सदन के एक वरिष्ठ सदस्य/मंत्री मोहम्मद आजम खां के विरुद्ध लगाये गये आरोपों के परिप्रेक्ष्य में यह जांच समिति गठित की गई थी। जन मीडिया के सौजन्‍य से मीडियाविजिल जांच समिति के प्रतिवेदन के उस संपादित अंश को प्रस्तुत कर रहा है जिसमें न्यूज रूम के भीतर के कामकाज की संस्कृति उजागर होती है। पहली किस्‍त में स्टिंग ऑपरेशन के पीछे की राजनीति पर इस पोस्‍ट के बाद अगली किस्‍तों में आप पढ़ सकेंगे कि स्टिंग ऑपरेशन से जुड़े चैनल के अधिकारियों और पत्रकारों ने जांच समिति के समक्ष क्‍या बयान दिए हैं। 

 

दिनांक 17 सितम्बर 2013 को “आज तक” एवं “हेड लाइन्स टुडे” न्यूज चैनल पर क्रमशः “ऑपरेशन दंगा” एवं “Operation Riot for Vote” शीर्षकों के अन्तर्गत मुजफ्फरनगर दंगों के विषय में टी.वी. टुडे नेटवर्क द्वारा सम्पादित किये गये स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित किया गया। “आज तक” चैनल पर दिनांक 18 सितम्बर, 2013 को “ऑपरेशन ‘दंगा’ पार्ट-2” प्रसारित किया गया।  

मुजफ्फरनगर में तत्समय तैनात विभिन्न अधिकारियों के स्टिंग ऑपरेशऩ के आधार पर इन प्रसारणों में यह दर्शाया गया कि दंगों के मुख्य संदिग्धों को राजनैतिक दबाव के कारण रिहा कर दिया गया, जिसके कारण यह दंगे भड़के। प्रसारण में यह भी दिखाया गया कि मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा कतिपय संदिग्धों की तलाशी लेने के कारण उनका स्थानान्तरण कर दिया गया। स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर प्रसारण में यह प्रदर्शित किया गया कि मुजफ्फरनगर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक द्वारा यह माना गया कि दंगों के पीछे राजनीति थी। प्रसारण में यह भी प्रदर्शित किया गया कि कतिपय राजनैतिक व्यक्तियों द्वारा दबाव के अन्तर्गत दंगों की प्रथम सूचना  रिपोर्ट को संशोधित करवाया गया।

 

 

मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में दिनांक 27 एवं 28 अगस्त, 2013 को हुयी घटना के विषय से जुड़े प्रसारण में यह दर्शाया गया कि जानसठ तहसील के उपजिलाधिकारी आर.सी.त्रिपाठी तथा क्षेत्राधिकारी पुलिस जे.आर.जोशी ने यह खुलासा किया कि राजनैतिक साजिश के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट इस प्रकार से संशोधित की गई जिससे कि दंगों के मुख्य आरोपी छूट जायें तथा यह कि मुख्य संदिग्धों, जिनको कि दिनांक 27, अगस्त 2013 को गिरफ्तार किया गया था, को ऊपर से राजनैतिक दबाव के कारण रिहा कर दिया गया। स्टिंग ऑपरेशन पर आधारित इन प्रसारणों में इस पर बल दिया गया कि तत्कालीन जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक का तबादला कतिपय व्यक्तियों की तलाशी लेने के कारण किया गया एवं यदि उनका स्थानान्तरण नहीं किया जाता तो दंगा नहीं भड़कता।

इन प्रसारणों में इस पर बल दिया गया कि मुजफ्फरनगर जनपद के फुगाना थाने में तैनात सेकेण्ड ऑफिसर के अऩुसार उत्तरप्रदेश सरकार के एक बड़े नेता द्वारा दंगों में गिरफ्तार किये गये मुख्य आरोपियों को रिहा करने के निर्देश दिये गये थे। प्रसारण में यह भी कहा गया कि इस बड़े नेता ने फोन पर यह कहा कि “जो हो रहा है उसको होने दो।” प्रसारण में यह दर्शाया गया कि यह बड़े नेता उत्तर प्रदेश शासन के वरिष्ठ माननीय मंत्री मोहम्मद आजम खां थे। प्रसारण में यह दर्शाया गया कि स्टिंग ऑपरेशन से यह परिलक्षित होता है कि दिनांक 08 सितम्बर, 2013 को उत्तर प्रदेश में कोई सरकार नहीं थी तथा कानून का कोई राज भी नहीं था।

“आज तक” चैनल पर प्रसारित “ऑपरेशन ‘दंगा’ पार्ट-2” में यह भी दर्शाया गया कि पुलिस की उपस्थिति में हिंसा हुई एवं दंगाइयों को पुलिस राजनैतिक दबाव के कारण नहीं छू सकी। “आज तक” चैनल में बार-बार यह जोर दिया गया कि “जो हो रहा था, उसे होने दिया जाये” के निर्देशों के कारण पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई एवं पुलिस फायरिंग भी नहीं की गई तथा किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया, जिससे कि दंगे ने वीभत्स स्वरूप ले लिया एवं निर्दोषों को मारा गया। यह सब ऊपर से राजनैतिक दबाव के कारण हुआ।

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इसी प्रकार टी.वी टुडे नेटवर्क के अंग्रेजी समाचार चैनल “हेड लाइन्स टुडे” में भी इस स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर “Operation Riot for Vote” कार्यक्रम प्रसारित किया गया। इस चैनल के प्रसारण में उत्तर प्रदेश शासन के वरिष्ठ माननीय मंत्री मोहम्मद आजम खां को विशिष्ट रूप से आरोपित करते हुए यह कहा गया कि उन्होंने सीधे उप-थानाध्यक्ष के स्तर पर फोन करके मुख्य आरोपियों को रिहा करवाया तथा यह निर्देश दिये कि एक सम्प्रदाय विशेष के लोगों को गिरफ्तार न किया जाय। इस प्रसारण में यह भी बल दिया गया कि मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट को जानबूझकर असत्य रूप से दर्ज कराया गया।

प्रसारण के अन्तर्गत इसे एक राजनीतिक षड्यन्त्र बताया गया तथा यह कहा गया कि कनिष्ठतम स्तर के पुलिस अधिकारी को वरिष्ठतम राजनैतिक व्यक्ति द्वारा इस प्रकार का फोन किया जाना सर्वथा अऩुचित एवं आपत्तिजनक एवं शर्म की बात है। “हेड लाइन्स टुडे” चैनल द्वारा प्रश्नगत स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर सच को उजागर करने का दावा किया गया।

मीडिया में प्रसारण के बाद की राजनीति

उत्तर प्रदेश विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली, 1958 के नियम-56 के अन्तर्गत दिनांक 18 सितम्बर, 2013 के उपवेशन में जनपद मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के संबंध में माननीय नेता विरोधी दल एवं अन्य दलों की ओर से सूचना प्रस्तुत की गई जिस पर चर्चा हुई। चर्चा के दौरान उक्त मुजफ्फरनगर दंगों के विषय में कतिपय इलेक्ट्रॉनिक चैनलों पर प्रसारित किये गये स्टिंग ऑपरेशन की जैन्यता एवं सत्यता के विषय में जांच कराये जाने हेतु संसदीय समिति गठित करने पर भी चर्चा की गई। नेता विरोधी दल द्वारा सदन में यह वक्तव्य दिया गया-

“मुजफ्फरनगर की घटना से सम्बन्धित और उसमें एक माननीय मंत्री को इंगित करने का काम, इसकी भी जांच होनी चाहिए। जिस मीडिया ने इस बात को दर्शाया है, तमाम अधिकारियों की बातों को लेकर के और उसे जीवंत दिखाने का काम किया है, तो उसका भी परीक्षण आपके स्तर से होना चाहिए। अगर कहीं पर मा. मंत्री को, उन्होंने इंगित किया है। अगर मा. मंत्री जी को कठघरे में खड़ा किया है और यह गलत है तो मीडिया को यहां पर कोड किया जाय और उसको यहां पर मान्यवर, आप की तरफ से इस बार इस तरह की व्यवस्था की जाय। आपके परीक्षण में यदि मीडिया की बात सही है, तो मंत्री जी, जिसको इंगित किया गया है उनको पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।”

(जारी)