एस्सार काँड: संपादकों के मुँह पर अंबानी लॉक,अर्णव टाइप ‘बाज़ारू’ राष्ट्रभक्तों की खुली पोल !



कई सालों तक पीएमओ की फोन टैपिंग मामले ने कारपोरेट मीडिया की साख पर पूरी तरह बट्टा लगा दिया है। हद यह है कि सुप्रीम कोर्ट के वकील सुरेन उप्पल की शिकायत को इंडिया डॉयलाग काफ़ी पहले सार्वजनिक कर चुका था, और मीडिया विजिल इस मामले में मुख्यधारा की ख़ामोशी पर सवाल उठा रहा था, फिर भी चुप्पी तब तक नहीं टूटी जब तक इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर नहीं छापी। मजबूरी में कुछ चैनलों और अख़बारों को चुप्पी तोड़नी पड़ी लेकिन उनके अंदाज़ से साफ़ ज़ाहिर था कि यह काम उन्हें कितनी मजबूरी में करना पड़ रहा है। वैसे भी उनका ज़ोर कुछ तकनीकी पहलुओं पर ज़्यादा रहा न कि कॉरपोरेट लूट पर।

ग़ौरतलब यह है कि ‘राष्ट्ररक्षा’ को अपना मिशन घोषित कर चुके ‘जनरल’ अर्णव गोस्वामी की ‘टाइम्स सेना’ के लिए यह ख़बर ही नहीं थी। दिल्ली सरकार के 21 संसदीय सचिवों की सदस्यता रद्द होने की फ़र्ज़ी घोषणा तक कर देने वाला उत्साह इस मामले में बर्फ़ की तरह ठंडा पड़ गया। पाकिस्तान से रोज़ाना युद्ध की ललकार लगाने वाले अर्णव को भारत माता की इस लूट में कुछ ख़ास नज़र नहीं आया। हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी के चमचों की जो लिस्ट जारी की है, उसमें अर्णव का नाम यूँ ही नहीं है !

बहरहाल,17 जून की सुबह इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने अपने अंदाज़ में बैनर लगाते हुए ख़बर छापी – ‘एस्सार ने पीएमओ से लेकर मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी जैसे उद्योगपतियों के फ़ोन टैप किए। वक़ील सुरेन उप्पल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की शिकायत। जांच की माँग की।” थोड़ी ही देर में आउटलुक पत्रिका ने भी यह ख़बर अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दी। साथ ही दिए उन टेप्स के कुछ अंश।

लगा यह इस दशक की सबसे बडी ख़बर है। वजह भी थी क्योंकि कॉरपोरेट और सत्ता के गठजोड़ से सरकार के फ़ैसलों, नीतियों, राजनीति, मीडिया और न्यायपालिका को कॉरपोरेट के पक्ष में कैसे मैनिपुलेट किया जाता है, ये टेप उसकी बानगी हैं। यह आपराधिक मामला था। सांसदों, मंत्रियों, जजों, संपादकों आदि को घूस देने का। मारने की धमकी देने का। सरकारी फ़ाइलें ग़ायब कराने का। यह राडिया टेप्स से एकदम अलग था जिनमें सिर्फ राजनीतिक दलाली की बातचीत थी। देशभक्त चैनलों और राष्ट्रवादी एंकरों के लिए यह बड़ा मुद्दा होना चाहिए था।

अल्लसुबह 5 बजे से ही सुरेन उप्पल का फ़ोन घनघनाने लगा। मीडिया के लोग इंटरव्यू, बाइट आदि की माँग कर रहे थे । थोड़ी देर में ही लाइन लग गई। लेकिन फिर ऐसा कुछ हुआ जिसकी आशंका थी। बाइट और इंटरव्यू लिया तो सबने दिखाया किसी ने नहीं। वीडियो न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने तो उसे समाचार चैनलों के पास भेजा तक नहीं। एबीपी न्यूज़ ने दो बार प्रोमो दिया – सुबह ११ बजे और शाम नौ बजे। लेकिन दिखाया केवल सात मिनट की ख़बर जिसमें छह लोगों की बाइट थी। केवल इंडिया टुडे टीवी ने दो घंटे का प्रोग्राम किया जिसमें मुख्य रूप से तकनीकी पहलुओं पर बातें होती रहीं कि फ़ोन कैसे टेप होते हैं आदि आदि। हाँ, अगले दिन जरूर आज तक ने एक घंटे और इंडिया टुडे टीवी ने एक घंटे का प्रोग्राम दिखाया।

ज़ी टीवी, टाइम्स नाई और इंडिया टीवी ने इतना सब होने के बाद भी ख़बर चलाई नहीं। अर्णव गोस्वामी, दीपक चौरसिया, सुधीर चौधरी जैसे एंकरों की जो देशभक्ति  जेएनयू मामले में उफान पर थी, अचानक ग़ायब हो गई। जो लोग सड़क चलते लोगों से ही नहीं स्टूडियों में बैठे गेस्ट से भी भारत माता की जय के नारे लगवा रहे थे, उन्हें अचानक इस मुद्दे पर साँप सूँघ गया।

क्या इन ‘राष्ट्रभक्त’ एँकरों को देश का ख़ज़ाना लूटने वाले देशप्रेमी लग रहे हैं। क्या भारत माता का नारा लगाने वालों के लिए भारत माता को लूटने वाले राष्ट्रभक्त लग रहे हैं..अगर नहीं तो फिर इनकी चुप्पी का सबब क्या है। यह क्यों न माना जाये कि उनकी ‘राष्ट्रभक्ति’ बाज़ारू है और  उनके मुँह पर भी अंबानी ब्रांड का ताला लग गया है।

अख़बारों की हालत अलग नहीं है। पहले दिन सिर्फ टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने बड़ी ख़बर छापी, बाक़ी सभी जगह साफ़। अगर किसी ने छापा तो वह अंबानी और एस्सार के रुइया का खंडन कि यह सब ग़लत है, झूठ है। हिंदी अख़बारों में आमतौर पर यह एक कॉलम की ख़बर भी नहीं थी। जहाँ थी भी, वहाँ इस लूट से जुड़े कारपोरेट रिश्ते पर कोई रोशनी नहीं थी।

हा, हंत। पत्रकारिता के अंत के लिये हो सके तो आप भी कुछ दुख प्रकट कर लीजिए। चंद आँसू टपका दीजिये। खुद को, मालिकों को और सत्ता और मालिकों के गठजोड़ को कोस लीजिए। लेकिन ज़रा सोचिए। क्या यह रुक सकता है? कैसे रुक सकता है?

या संपादकों और मीडिया मालिकों की पैंट विज्ञापनदाताओं के सामने हमेशा ही गीली रहेगी…21वीं सदी का मीडिया, बताने से ज़्यादा छिपाने का खेल खेल रहा है।